अदब के शहर की बेअदब टीम

खेल में और खास कर आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में आक्रामक होना अच्छी बात है. मगर यह टीम गाहे बगाहे उस लक्ष्मण रेखा को पार कर जाती है, जो खेलों में होनी चाहिए..

अदब के शहर की बेअदब टीम

खेल भावना से खेला गया खेल ही लोगों को भाता है

लखनऊ को अदब का शहर कहा जाता है...शहर-ऐ-अदब है लखनऊ, नबाबों की नगरी, तहजीब नजाकत और नफासत का शहर इसलिए तो कहते हैं मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं... मगर यहां की एक टीम है लखनऊ सुपर जाइंट जो आईपीएल के एलीमीनेटर में मुंबई से हार कर बाहर हो गई है. लखनऊ की इस टीम का इस शहर के मिजाज से कुछ लेना देना नहीं है. इस टीम के मेंटर यानि उस्ताद हैं गौतम गंभीर और कोच हैं ऐंडी फ्लावर. गंभीर अपने उतने ही गंभीर उग्र स्वाभाव के लिए जाने जाते हैं. खेल में और खास कर आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में आक्रामक होना अच्छी बात है. मगर यह टीम गाहे बगाहे उस लक्ष्मण रेखा को पार कर जाती है, जो खेलों में होनी चाहिए..टीम का यह अंदाज ना तो लखनऊ शहर के मिजाज से मेल खाता है और ना ही क्रिकेट की खेल भावना से.

लखनऊ और बंगलौर के टीम के मैच के दौरान विराट कोहली और गौतम गंभीर के बीच जो कुछ हुआ, वो अब इतिहास है. वैसे इन दोनों खिलाड़ियों का भी अपना इतिहास है जो किसी ना किसी रूप में मैदान पर गाहे बगाहे दोनों के हाव भाव के रूप में फूटता रहता है. इस मैच में गंभीर और विराट के व्यवहार को देख कर उनकी पूरी मैच फीस बीसीसीआई ने जब्त कर ली थी. मगर अपने मेंटर के देख कर खिलाड़यों के भी व्यवहार में बड़ा बदलाव देखने को मिला. कहते हैं ना खरबूजे को देख कर खरबूजा भी रंग बदलता है. इसी मैच में जीतने के बाद आवेश खान ने हेलमेट मैदान पर जोर से पटक कर अपनी खुशी या गुस्से का इजहार किया था. उनकी भी मैच फीस कटी थी. यही नहीं एलीमिनेटर मैच में मुंबई के खिलाफ विकेट लेने पर अफगान गेंदबाज नवीन उल हक का अपनी दोनों अंगुलियों से अपने कान बंद कर के जश्न मनाने का अंदाज लोगों को समझ में नहीं आया..

इस पर कमेंटरी कर रहे सुनील गावस्कर ने भी अचरज जताया कि यह किस बात के लिए है, क्योंकि मैच चेन्नई में हो रहा था जो तटस्थ जगह थी. ये नवीन उल हक वही गेंदबाज हैं, जो विराट से उलझ गए थे. लखनऊ के कुछ और खिलाड़यों का व्यवहार भी कई बड़े खिलाड़यों को हैरत में डाल दिया. चैन्नई के खिलाफ मैच में लखनऊ के आयुष बदोनी ने 50 रन बनाए और अपना अर्द्ध शतक पूरा करने के बाद अपने कोच और साथी खिलाड़ियों की तरफ फ्लाईंग किस भेजा. अभी तक लखनऊ के लिए यह काम निकोलस पूरण करते थे. 

विकेट के पीछे खड़े बेचारे धोनी अपने हाथ बांधे धोनी यह सब हैरत भरी निगाहों से देख रहे थे, जितना प्यार दर्शकों ने धोनी और तेंदुलकर को दिया है, उतना शायद पूरी दुनिया में किसी खिलाड़ी को नहीं मिला है. मगर इन दोनों ने कभी भी क्रिकेट यानि खेल की बेअदबी नहीं की. इन्होंने क्रिकेट की इज्जत की, तो दर्शकों ने भी इन्हें खूब प्यार से नवाजा. खैर बात लखनऊ की करते हैं, हैदराबाद में लखनऊ के खिलाफ मैच में 'कोहली कोहली' के नारे लगे..और ये सिलसिला उन मैचों में भी जारी रहा, जहां-जहां लखनऊ की टीम गई..हैदराबाद में जब दर्शकों के बुरे वर्ताव के बाद मैच रोका गया, तो लखनऊ के कोच ऐंडी फ्लावर पर अंपायर को अपनी बीच की अंगुली दिखा कर चिढ़ाने का भी आरोप लगा.

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खेल में हार जीत तो होती रहती है, मगर कहा जाता है कि खेल भावना से खेला गया खेल ही लोगों को भाता है. तभी क्रिकेटरों को अपने देश में भगवान का दर्जा मिला हुआ है. सुनील गावस्कर, कपिल देव से लेकर सचिन और धोनी तक को. लखनऊ की टीम भले ही अपने खेल से लोगों को अपना प्रशंसक बनाने में सफल रही हो, मगर खेल भावना में उनका लोगों का दिल जीतना अभी बाकी है. लखनऊ ज्‍वाइंट्स मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं.