सेंसर बोर्ड के निलंबित सीईओ राकेश कुमार
सेंसर बोर्ड के सदस्य सतीश कल्याणकर ने आरोप लगाया है कि 'पीके' फिल्म के पास होने से पहले उन्होंने हिंदुओं की भावनाओं पर प्रहार करने वाले दृश्य हटाने को कहा था। उनकी राय को अनसुना कर सीईओ राकेश कुमार ने फिल्म को रिलीज कर दिया।
दूसरी ओर, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने इस मामले की सीबीआई जांच करने की मांग की है और आरोप लगाया है फिल्म में कुछ अश्लील दृश्य भी हैं, लेकिन सेंसर बोर्ड ने फिल्म को 'ए' के बजाय 'यूए' ग्रेड का सर्टिफिकेट दिया है। निर्माता ने फिल्म पास कराने के लिए बोर्ड सदस्यों से सौदा किया है।
कौन है राकेश कुमार?
जिस शख्स पर पीके फिल्म को पास करने का आरोप लगा है उन पर इस समय रिश्वत लेकर फिल्मों को सर्टिफिकेट देने का केस चल रहा है। राकेश कुमार जनवरी 2014 में सेंसर बोर्ड के सीईओ बने थे।
अगस्त 2014 को सीबीआई ने राकेश कुमार को बिचौलियों के जरिये एक छत्तीसगढ़ी फिल्म 'मोर डौकी के बिहाव' को सेंसरबोर्ड का प्रमाणपत्र देने के लिए 70 हजार रुपये की घूस लेने के लिए गिरफ्तार किया था, लेकिन अक्टूबर में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनको जमानत दे दी। सीबीआई ने उनके पास से 10 लाख नकद और रोलेक्स और राडो की महंगी घड़ियां भी बरामद कीं जिनकी बाजार में कीमत लाखों में है।
कैसे पास करता था फिल्में?
सीबीआई को अपनी जांच से पता चला है कि कुमार किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से पहले उसके प्रोड्यूसर पर पैसे देने का दबाव बनाता था और रिश्वत नहीं देने की सूरत में फिल्म के सीन्स को काटने की धमकी देता था। कोई प्रोड्यूसर अपनी फिल्म के लिए कितने दिन में सर्टिफिकेट चाहता है, इसके लिए सीईओ ने अलग-अलग रकम तय कर रखी थी।
सीबीआई के सूत्रों के अनुसार जिस भी प्रोड्यूसर को फिल्म जल्द पास करवानी होती थी तो उनको राकेश कुमार के एजेंटो से मोलभाव करना होता था। छोटे बजट की फिल्मों को उसके एजेंट देखते थे और बड़ी-बड़ी बजट की फिल्मों को वह खुद देखकर सौदेबाजी करता था। विवादित दृश्यों के लिए वह एक्स्ट्रा चार्ज करता था।
यह तो तय है कि फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य सतीश कल्याणकर के खुलासे के बाद से ‘पीके’ पर चल रहा विवाद और बढ़ेगा और राकेश कुमार पर अबतक लगे आरोपों को देखते हुए शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के इस दावे को भी खारिज नहीं कर सकते कि 'पीके' को पास करवाने के लिए निर्माता और बोर्ड सदस्यों में सौदेबाज़ी हुई होगी।