1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों को लगा कि हिन्दू और मुसलमान जब तक एक रहेंगे, भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए मुश्किलें बनी रहेंगी। इस समस्या का निदान ढूंढा, तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने, जिन्होंने अंग्रेजों की प्रसिद्ध कूटनीति 'फूट डालो और राज करो' को अपनाया। हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता खत्म करने के लिए दोनों धर्मों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काया। इसी अभियान में कहीं न कहीं राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भी जुड़ गए।
विवाद की कहानी 486 साल पुरानी है। वर्ष 1528 में मुगल शासक बाबर का जनरल मीर बाक़ी अपने विजय अभियान के दौरान अयोध्या पहुंचा, जहां उसने राममंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद का निर्माण किया, जिसका नाम उसने अपने मालिक के नाम पर बाबरी मस्जिद रखा। हिन्दुओं और मुसलमानो के बीच यह विवाद अंग्रेज़ों के लिए एक हथियार बन गया।
मंदिर-मस्जिद विवाद पहली बार अदालत में सन 1885 में पहुंचा। बाबरी मस्जिद के साथ लगते राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण के लिए महंत रघुबर दास ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया के खिलाफ फैज़ाबाद कोर्ट में मुकदमा दायर किया। 18 मार्च, 1886 को फैज़ाबाद डिस्ट्रिक्ट जज ने ऑर्डर पास किया, जिसमें उन्होंने लिखा, "कल मैं सभी पक्षों को साथ लेकर विवादित ज़मीन पर गया... मैंने पाया कि बाबर द्वारा बनाई गई मस्जिद अयोध्या की सीमा पर खड़ी है, यानि पश्चिम की तरफ और दक्षिण की तरफ बस्तियां हैं... यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि मस्जिद उस जगह बनाई गई, जो हिन्दुओं के लिए पूजनीय थी... लेकिन इस घटना को घटे 356 साल हो चुके हैं, इसलिए शिकायत को सुनने के लिए बहुत देर हो गई है..." (कोर्ट का फैसला, कर्नल एफईए चैमिएर द्वारा, डिस्ट्रिक्ट जज, फैज़ाबाद, 1886)
अदालत के इस फैसले ने भी दोनों धर्मों के बीच हुए विवाद को खत्म करने की बजाए बढ़ाने का ही काम किया।
वर्ष 1949 से लेकर अब तक यह विवाद अदालत में ही घूम रहा है। सैंकड़ों दंगे हुए, हज़ारों मारे गए, कई घर बर्बाद हुए। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं... हिन्दू मंदिर बनाना चाहते हैं, मुस्लिम मस्जिद, और सेक्युलर लोग स्कूल या हॉस्पिटल बनाना चाहते हैं। कोई भी झुकना नहीं चाहता। अब राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद मामले में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के वकील हाशिम अंसारी ने दोनों धर्मों के बीच हुई दूरी को कम करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि अब रामलला को वह आजाद देखना चाहते हैं। वह अब किसी भी कीमत पर बाबरी मस्जिद के मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि रामलला तिरपाल में रहें और लोग महलों में... लोग लड्डू खाएं और रामलला इलायची दाना, यह नहीं हो सकता। ज़ाहिर है, कुछ लोग उनके इस फैसले का स्वागत करेंगे और कुछ विरोध।
अंग्रेज़ चले गए, लेकिन उनकी फूट डालो और राज करो वाली नीति को हमारे नेताओं ने अच्छी तरह इस्तेमाल किया, खासकर, वर्ष 1985 के बाद। किसी ने हिन्दुओं का हमदर्द बनकर, किसी ने मुसलामानों का रहनुमा बनकर, लेकिन सभी ने राजनीति की रोटियां खूब सेंकी। अपनी सहूलियत के हिसाब से राम मंदिर को अपने घोषणापत्र में रखते और हटाते रहते हैं। इस विवाद का निपटारा अदालत के फैसले से नहीं हो सकता। निपटारा तभी होगा, जब दोनों धर्मों के लोग एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए मिल-बैठकर बात करेंगे। अगर दोनों पक्ष अंसारी जैसा ही फैसला ले पाएंगे, तो सदियों पुराना विवाद खत्म हो सकता है।
This Article is From Dec 03, 2014
मनीष की नज़र से : अंसारी ने की है एक 'कारगर' शुरुआत
Manish Sharma, Vivek Rastogi
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Updated:दिसंबर 03, 2014 21:13 pm IST
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Published On दिसंबर 03, 2014 21:08 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 03, 2014 21:13 pm IST
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