यह ख़बर 24 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

मनीष शर्मा की नज़र से : कैसे प्रधानमंत्री थे वाजपेयी?

अटल बिहारी वाजपेयी की फाइल फोटो

नई दिल्ली:

जवाहर लाल नेहरू के बाद अगर कोई व्यक्ति लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बना था तो वे अटल बिहारी वाजपेयी थे। 1996, 1998 और 1999 में वे भारत के प्रधानमंत्री बने। हालांकि वाजपेयी प्रधानमंत्री पद के लिए बीजेपी की पहली पसंद नहीं थे। 1995 में बीजेपी में अगर कोई सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति था तो वह लालकृष्ण अडवाणी थे, परन्तु ये बात अडवाणी भी जानते थे कि प्रधानमंत्री पद के लिए अगर एक नाम पर सभी सहमत हो सकते हैं, तो वह सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी हैं।

इसीलिए 1995 में बीजेपी की मुंबई में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अडवाणी ने चुनाव अभियान का नेता और प्रधानमंत्री के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का प्रस्ताव पेश किया। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी उपल्बधियों और नाकामियों पर नजर डालते हैं।

उपलब्धियां:

- अमेरिका और विश्व के विरोध के बावजूद पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। अमेरिका द्वारा लगाये आर्थिक प्रतिबंधों का भारत पर असर नहीं हुआ जिसे बाद में अमेरिका ने खिसिया कर हटा लिए।

- 1998-99 की वैश्विक आर्थिक मंदी होने पर भी भारत ने सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 5.8 हासिल की। 1998-99 से लेकर  2003-04 के बीच भारत की औसत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर प्रति वर्ष 6% थी।

- वाजपेयी सरकार ने महंगाई पर भी लगाम कस रखी थी। पूरे राजग कार्यकाल के दौरान मुद्रास्फीति की औसत दर 4.8% थी। 2002 और 2004 के सूखे के बावजूद वाजपेयी सरकार ने मुद्रास्फीति की दर 2002 में 4.1% और 2004 में 3.9% पर बनाये रखी।

- बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे में निवेश किया गया। स्वर्णिम चतुर्भुज और पूर्व-पश्चिम और उत्तर से दक्षिण राजमार्ग योजना बनाकर उनपर काम शुरू किया गया।

(नोट - 2013 में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में माना कि राजग ने आपने पांच साल के कार्यकाल दौरान 23,814 किलो मीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण किया जो तीन दशकों में निर्मित राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई का लगभग 50% है।)

नाकामियां :

- राजग सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे जैसे ताबूत घोटाला, टेलीकॉम घोटाला। पार्टी के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। पार्टी के उस समय के अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को इसी कारण इस्तीफा देना पड़ा।

- 2002 में गुजरात दंगे हुए। वाजपेयी ने हालांकि नरेंद्र मोदी को राजधर्म का निर्वाह करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटने की सलाह भी दी।

वाजपेयी की पाकिस्तान के प्रति उदारता और पाकिस्तान की बेरुखी

- वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा और कारगिल युद्ध- फरवरी 1999 में वाजपेयी सरकार ने दिल्ली-लाहौर बस सेवा का उद्घाटन किया और नवाज शरीफ के साथ लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए, लेकिन मई 1999 कारगिल युद्ध हुआ। पाकिस्तान ने केवल 453 सैनिकों को खोया, जबकि 527 भारतीय सैनिक मारे गए थे। अब जाकर तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने माना और आरोप लगाया कि बांग्लादेश गठन में भारत की भूमिका के विरोध के फलस्वरूप था कारगिल युद्ध...

- कंधार हाईजैक और 2008 के मुंबई हमलों के बीच में कनेक्शन - दिसम्बर 1999 में इंडियन एयरलाइन्स के विमान को तालिबान के आंतकवादी हाईजैक कर कंधार ले गए। अत्यधिक दबाव के तहत भाजपा सरकार ने अंततः मसूद अज़हर सहित सभी तीन आतंकवादियों को रिहा कर दिया। मौलाना मसूद अजहर मुंबई में नवंबर 2008 के आतंकवादी हमलों के साथ सीधा संबंध है। आलोचकों का मानना है कि वाजपेयी सरकार का उग्रवाद को लेकर ढुलमुल रवैया था।

- भारत का युद्धविराम और लाल क़िले पर हमला- दिसंबर 2000 में लश्कर-ए-तैयबा से संबंधित आतंकवादियों के एक समूह ने नई दिल्ली में प्रसिद्ध लाल किले पर धावा बोल दिया। यह भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा के बाद सिर्फ दो दिन से बाहर किया गया था।

- मुशर्रफ को आगरे का न्योता और संसद पर हमला - जुलाई 2001 में वाजपेयी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को आगरा समिट में भाग लेने के लिए न्योता दिया। हालांकि दोनों देशों के बीच वार्ता सफल न हो सकी। वार्ता के ठीक चार महीने बाद दिसंबर 2001 में आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला कर दिया। इस के मद्देनजर वाजपेयी सरकार ने भारत-पाक सीमा पर भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती की। करोड़ों रुपये खर्च करने पर कुछ हासिल नहीं किया और सैनिकों को वापिस बैरक में बुला लिया।

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आज भारत सरकार ने स्वंतत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीय के साथ अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की घोषणा की है। हालांकि उनको भारत रत्न देने की बात उनके कार्यकाल में भी उठी थी। उनको को ये दलीलें दी गईं कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को भारत रत्न दिलवाया था। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था।