आज पाकिस्तान से भारत आए करीब 450 हिन्दू परिवारों पर अपनी सहयोगी अदिति राजपूत की एक खास रिपोर्ट देख रहा था, जो इस समय दिल्ली के अंतरराज्यीय बस अड्डे के करीब मजनूं का टीला में शरण लिए हुए हैं। पाकिस्तान में भेदभाव से तंग होकर ये लोग भारत आए हैं, और यहीं रहना चाहते हैं, लेकिन इनके पास न नौकरी है, न रहने-खाने की व्यवस्था। यहां तक कि सिर्फ दिल्ली का वीज़ा है, इसलिए दिल्ली से बाहर भी नहीं जा सकते। वैसे, इन लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार की है, और इनकी परेशानी के जल्द समाधान के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह 23 दिसंबर को 10 संगठनों के साथ बैठक करने वाले हैं। यह कहानी सिर्फ इन हिन्दू परिवारों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान से पलायन कर भारत आए हिन्दुओं की संख्या लाखों में है।
वर्ष 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, लाखों की संख्या में हिन्दू और मुसलमानों ने धर्म के आधार पर मुल्क बदला। फिर भी कुछ मुसलमान ऐसे थे, जो भारत में ही रह गए, और इसी तरह कुछ हिन्दू पाकिस्तान में। भारत ने हिन्दू राष्ट्र बनने की बजाए धर्मनिरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया, ताकि भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित न समझें, उन्हें समान अधिकार मिलें और इसके लिए भारत ने अपने संविधान में धर्म चुनने की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकारों की सूची में स्थान दिया है। भारत विभाजन से पहले मुसलमानों की संख्या भारत की कुल आबादी का 10 प्रतिशत थी, जो आज बढ़कर लगभग 15 प्रतिशत हो गई है।
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देखें विशेष रिपोर्ट : पाकिस्तान से आए हिन्दुओं का दर्द...
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लेकिन पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं की किस्मत भारतीय मुसलमानों जैसी न तब थी, न आज है। पाकिस्तान में बसे हिन्दुओं में से लगभग 96 फीसदी सिंध प्रान्त में ही रहते हैं। वर्ष 1956 में पाकिस्तान का संविधान बना और पाकिस्तान प्रगतिशील और उदारवादी विचारधाराओं को त्यागकर इस्लामिक देश बन गया, और तभी से हिन्दुओं का वहां रहना दुश्वार हो गया।
पाकिस्तान जब भी भारत के आगे मुंह की खाता, या भारत में सांप्रदायिक दंगे होते, सभी घटनाओं का दुष्परिणाम पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं को भुगतना पड़ता। चाहे वह भारत-पाक युद्ध रहा हो, या अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंस, या गुजरात में हुए दंगे, पाकिस्तान के हिन्दुओं को वहां की सरकार और अवाम ने अपने गुस्से का निशाना बनाया। भारत में 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने से पाकिस्तान में हिन्दुओं के खिलाफ तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं। माइनॉरिटी राइट ग्रुप इंटरनेशनल के मुताबिक 2-8 दिसंबर, 1992 के दौरान पाकिस्तान में तकरीबन 120 हिन्दू मंदिरों को गिराया गया।
ज़िया-उल-हक की तानाशाही से लेकर अब तालिबान के अत्याचारों तक पाकिस्तानी हिन्दुओं का जीवन दूभर ही रहा है। आज़ादी के वक्त पाकिस्तान में कुल 428 मंदिर थे, जिनमें से अब सिर्फ 26 ही बचे हैं। पाकिस्तान में ज़्यादातर हिन्दू मंदिर या गिरा दिए गए, या उन्हें होटल बना दिया गया है। पाकिस्तान के नेशनल कमिशन फॉर जस्टिस एंड पीस की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक 74 प्रतिशत हिन्दू महिलाएं यौन शोषण का शिकार होती हैं। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हर महीने 20 से 25 हिन्दू लड़कियों का अपहरण होता है और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है।
जब पाकिस्तान में जीने के लिए अनुकूल स्थिति नहीं रही तो मजबूरन हिन्दुओं को बड़ी संख्या में पाकिस्तान छोड़ना पड़ रहा है। पाकिस्तान की जनगणना (1951) के मुताबिक पाकिस्तान की कुल आबादी में 22 फीसदी हिन्दू थे, जो 1998 की जनगणना में घटकर 1.6 फीसदी रह गए हैं। ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1965 से लेकर अब तक तकरीबन सवा लाख पाकिस्तानी हिन्दुओं ने भारत की तरफ पलायन किया है।
वैसे, जब पाकिस्तान में मुस्लिम ही सुरक्षित नहीं हैं, तो हिन्दुओं के लिए शिकायत कहां करें...? वहां मंदिरों में ही नहीं, मस्जिदों में भी धमाके होते रहते हैं। शियाओं और सुन्नियों के बीच आएदिन दंगे होते हैं, सो, ऐसे में हिन्दुओं के मानवाधिकारों की बात करना मूर्खतापूर्ण लगता है।
भारत आए इन परिवारों को अभी तक किसी राजनैतिक दल से कोई सहारा नहीं मिला है। उनका दोष इतना है कि वे भारत आकर अल्पसंख्यकों के गणित से बाहर हो जाते हैं। किसी पार्टी का वोट बैंक नहीं बन पाते। इन लोगों को पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होने का दुष्परिणाम भुगतना पड़ा और भारत में बहुसंख्यक होने की वजह से राजनैतिक दलों की उदासीनता झेलनी पड़ रही है। मोटे तौर पर मीडिया भी उन्हें नज़रअंदाज़ किए हुए हैं। यहां तक कि सारे देश में सभी वर्गों का ध्यान रखने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बंगाल की चुनावी रैली में बांग्लादेशी हिन्दुओं का स्वागत करना तो याद रख पाए, लेकिन पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को शायद वह भी भूल गए। सो, अब देखना यह है कि क्या मोदी, या कोई और इनकी मुश्किलों को दूर कर पाएगा...