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This Article is From Jun 22, 2019

Blog: क्या बिहार में बच्चों की मौत के बहाने नीतीश कुमार की आलोचना की जगह अब न्यूज चैनल अपने राजनीतिक आकाओं का एजेंडा तो पूरा नहीं कर रहे हैं?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    June 22, 2019 14:23 IST
    • Published On June 22, 2019 14:23 IST
    • Last Updated On June 22, 2019 14:23 IST

बिहार में चमकी बुखार (Acute Encephalitis Syndrome) से  अब तक 150 बच्चों की मौत हो गयी है. निश्चित रूप से इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार की सबसे अधिक आलोचना हो रही है. उसके बाद उप मुख्यमंत्री  सुशील मोदी जो विपक्ष के नेता के रूप में किसी भी घटना के बाद सबसे आक्रामक होके इस्तीफ़ा मांगते थे. इन सबके बाद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय जो अपने संवेदनहीनता के कारण मज़ाक़ के पात्र बन बैठे हैं उनकी आलोचना हो रही है. ये तीनों नेता मीडिया से परेशान हैं क्योंकि मीडिया वाले इनका पीछा करते हैं और कुछ तो इनसे इन्हीं के पूर्व के बयानो का हवाला देते हुए पूछ देते हैं कि आख़िर इस्तीफ़ा कब देंगे. मीडिया ख़ासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कई दिन तक सुबह से शाम तक प्राइम टाइम में बच्चों की मौत, अस्पतालों की बदहाल स्थिति के बहाने सरकार की निश्चित रूप से जायज बिंदुओं  पर चैनल के पत्रकार से संपादक तक एक स्वर से आलोचना करते हैं. लेकिन बिहार के सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड का कहना है कि मीडिया ने आलोचना की आड़ में या तो पत्रकारों को  इस बीमारी के नाम पर अपना व्यक्तित्व बढ़ाने या चैनल का एजेंडा केवल नीतीश कुमार के छवि को धूमिल करने की है और इस प्रयास में जनता दल यूनाइटेड के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह की मानें तो अब कुछ चैनल भाषा की मर्यादा और और पत्रकारिता के सारे मापदंड को ताक पर रखकर गाली गलौच पर उतर आए हैं.

संजय सिंह के अनुसार जिस तरह कुछ चैनल के पत्रकारों ने ICU को अपना न्यूज़ स्टूडियो बनाया और कुछ संपादकों ने न्यूज़ स्टूडियो से अंग्रेज़ी हो हिंदी जैसी भाषा और शब्दों का प्रयोग किया वो उनके बच्चों के प्रति संवेदनशीलता नहीं बल्कि एक एजेंडा के तहत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे को ख़राब करने की एक राजनीतिक साज़िश की बू आ रही थी. शिवानंद का कहना है कि जो चैनल नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा आक्रामक हैं उनका पिछले कुछ वर्षों का इतिहास उठा के देख लीजिए कि क्या उन्होंने भाजपा सरकार  ख़िलाफ़ ऐसी भाषा और शब्दों के प्रयोग किये हैं. गोरखपुर में भी बच्चों की मौत हुई तब उनका क्या लाइन थी यह भी पलट कर देखिए. 

लेकिन संजय सिंह के पास निश्चित रूप से इस बात का जवाब नहीं कि आख़िर उनके नेता इस मुद्दे पर मीडिया से कन्नी क्यों काट रहे हैं. लेकिन उनकी सफ़ाई है कि वो हालात पर नज़र रखे या मीडिया के साथ तू-तू मैं-मैं शामिल हों. वहीं राष्ट्रीय जनता दल जिसके अपने ख़ुद के नेता तेजस्वी यादव का इस पूरे प्रकरण में मौन उनकी पार्टी के परेशानी का कारण बना हुआ है. उसके वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी का कहना हैं कि हम लोग भी इस बात से हतप्रभ हैं कि जिस भाजपा के साथ मिलकर नीतीश सरकार चला रहे हैं उसी भाजपा के अंगुली पर नाचने वाले चैनल और संपादक जिस प्रकार मुज़फ़्फ़रपुर प्रकरण पर ख़ासकर नीतीश कुमार के प्रति आक्रामक हैं वो एक तरह से उन्हें चेतावनी दी जा रही हैं कि आप अपने सीमा में रहिएअन्यथा आप छवि की जो पूंजी है उसे ख़राब करने में किसी भी हद तक जा सकते हैं. हालांकि शिवानंद तिवारी का कहना हैं कि नीतीश ख़ुद इतने परिपक्व नेता हैं जो आलोचना और एजेंडा में फ़र्क़ और कौन किससे निर्देशित होता हैं सब जानते हैं.

वहीं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने मुजफ्फरपुर में पीड़ित बच्चों एवं वहां परिजनों के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया के साथ जो नीतीश कुमार के द्वारा दुर्व्यवहार हुआ वह अशोभनीय है. उन्होंने कहा कि मीडिया को भी अपने दायरा और मर्यादा का पालन करना चाहिए. मांझी ने कहा कि मुजफ्फरपुर में ज्यादातर गरीब अभी वंचित वर्ग और अंतिम पायदान पर रहने वाले लोगों की मौतें हुई हैं. मौत पर अफसोस व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि समय रहते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जाना चाहिए था. अपनी कमियों को छुपाने के लिए नीतीश कुमार मीडिया को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं. हाल के दिनों में जो हाल बिहार का रहा है। निश्चित तौर पर सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन की तस्वीर बयां करता है. पूरी तरह सत्ता एवं शासन खोखला हो चुका है.

लेकिन जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना हैं कि आख़िर अगर हॉस्पिटल में मीडिया काम कर रहा हैं या कुछ कमियां दिखा रहा है. क्योंकि सरकार ने मीडिया को ये स्वतंत्रता दी हुई है अन्यथा क्या यही देश और बिहार के मीडिया वाले किसी अन्य राज्य में  दिल्ली हो या मुंबई हो,लखनऊ या भोपाल किसी सरकारी या निजी अस्पताल में ICU तो छोड़िये क्या जनरल वॉर्ड से भी ऐसी रिपोर्टिंग कर सकते हैं. उनका कहना है कि निश्चित रूप से बहुत कुछ किया जा सकता था कुछ आभाव रहा होगा जिसके कारण मौत हुई जिसका सबको दुख है लेकिन इसके लिए कोई आलोचना के नाम पर गाली की भाषा अपने प्राइम टाइम में दिखाए तो यह कहां कि पत्रकारिता है.

वहीं मीडिया जगत के जानकारों का मानना है कि इस पूरे मुद्दे पर नीतीश कुमार और उनकी सरकार की आलोचना लाज़िमी है. कई ऐसे क़दम हैं जैसे मुज़फ़्फ़रपुर स्थित अस्पताल देर से या तो स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय या मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का जाना, वहां उन्होंने अपनी आलोचना एक तरह से निमंत्रित की. इसके अलावा पर्याप्त संख्या में डॉक्टरों का ना होना वो भी एक ऐसा मुद्दा था जहाँ अगर शुरुआत में फ़ैसला लिया होता तो कई बच्चों की जान बच सकती थी. यह सब मुद्दे ऐसे हैं जहां आलोचना जायज़ है. लेकिन साथ-साथ स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का पूरे सीन से नदारद रहना या केंद्र सरकार की अपने घोषणा जैसे 2014 में मुज़फ़्फ़रपुर अस्पताल के लिए किए गए घोषणा हो या बिहार में दूसरे AIIMS की स्थापना हो. इन सब मुद्दों को एजेंडा से ग़ायब करना निश्चित रूप से किसी को पच नहीं रहा है. जिस आयुष्मान योजना का पीएम मोदी ने पूरे चुनाव में ढिंढोरा पीटा था उसको भी मुजफ्फरपुर में ठीक से लागू नहीं किया गया. 

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है 


 

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