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This Article is From Jan 18, 2024

लोकसभा चुनाव विश्लेषण पार्ट-3 : ...तो फिर किन राज्यों से बढ़ सकती हैं बीजेपी की सीटें?

Rajendra Tiwari
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 18, 2024 11:04 am IST
    • Published On जनवरी 18, 2024 10:04 am IST
    • Last Updated On जनवरी 18, 2024 11:04 am IST

लोकसभा चुनाव में कैसी रहेगी तस्वीर ये जानने के लिए आइए, उन राज्यों की बात करते हैं, जो पिछले चुनाव में 300 सीटों का आंकड़ा छूने में बीजेपी के लिए मददगार रहे थे. इन राज्यों की 186 सीटों में से बीजेपी ने 81 सीटें जीती थीं. 2014 में इन राज्यों से 62 सीटें बीजेपी को मिली थीं और 28.6% वोट मिले थे. 2019 में यह वोट 5.91% बढ़ा और 19 सीटें बढ़ीं. बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीद इन्हीं राज्यों से है. अन्य राज्यों में अगर बीजेपी को कोई नुकसान होता है तो ये राज्य न सिर्फ उसकी भरपाई की क्षमता रखते हैं बल्कि कुल सीटों का आंकड़ा बढ़ाने का काम भी कर सकते हैं. इनमें चार राज्य ऐसे हैं, जहां राम मंदिर का माहौल तो जबरदस्त काम करेगा ही साथ ही बीजेपी का नैरेटिव भी. इन चार राज्यों से 144 सीटें आती हैं, जिनमें 67 सीटें इस समय बीजेपी के पास हैं.

इन आठ राज्यों में से पांच राज्य इंडिया गठबंधन के प्रभाव वाले हैं और एक राज्य उड़ीसा है, जहां क्षेत्रीय दल बीजू जनता दल का प्रभाव है. इसके अलावा, असम व गोवा में बीजेपी-कांग्रेस का सीधा मुकाबला रहा है.

असम व गोवा से कोई बड़ी बढ़त का स्पेस बीजेपी के लिए  नहीं दिखाई दे रहा है. इसी तरह की स्थिति पंजाब में है. इंडिया गठबंधन के प्रभाव वाले राज्यों में बीजेपी की दमदार उपस्थिति है, ये राज्य हैं - बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और पंजाब. इन राज्यों में कुल 149 सीटें हैं और इनमें से 63 सीटें बीजेपी ने जीती थीं और उसका वोट प्रतिशत 29.78 रहा. इनमें पंजाब एक ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी कमजोर है. अगर हम पंजाब को छोड़ दें तो बाकी चार राज्यों में बीजेपी का वोट 34.8% था और कुल 133 सीटों में से 61 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. इन सभी राज्यों में इंडिया गठबंधन की मजबूत उपस्थिति तो है लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर जो पैंतरेबाजी चल रही है, उससे भी बीजेपी को फायदा हो सकता है.
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बिहार में इस बार स्थिति 2014 जैसी

बिहार में कागज पर इंडिया गठबंधन बहुत मजबूत दिखाई दे रहा है. 2019 में बीजेपी ने यहां 17 सीटें और एनडीए ने कुल 39 सीटें जीती थीं. सिर्फ एक ही सीट एनडीए हारा था और वह सीट किशनगंज थी, जो कांग्रेस के खाते में गई. लेकिन अब तस्वीर बदली हुई है. जेडीयू अब एनडीए में नहीं है और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में दो धड़े हैं. इस बार, स्थितियां 2014 जैसी हैं. 2014 में बीजेपी, एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी. जबकि राजद, कांग्रेस व एनसीपी यूपीए का हिस्सा थे और जदयू अलग से लड़ रहा था. तब भाजपा ने 22 सीटें और एनडीए ने कुल मिलाकर 31 सीटें जीती थीं, यूपीए ने सात और जदयू को दो सीटें मिली थीं. इन आकड़ों से जेडीयू का असर स्पष्ट देखा जा सकता है.

 आकड़ों में जेडीयू ही यहां पर एक्स-फैक्टर नजर आता है जो इस बार न बीजेपी के साथ है और न ही अलग-थलग. अन्य बातों के अलावा एक फैक्टर और बीजेपी के हक में दिखाई देता है और वह है इंडिया गठबंधन को परेशान करने वाली जेडीयू की बयानबाजी. बीजेपी इस गठबंधन की फॉल्ट लाइंस को चौड़ा करने की हरसंभव कोशिश कर रही है. यहां हिंदुत्व का नैरेटिव भी एक स्तर तक प्रभावी रहता है. इसके चलते आंकड़ों में मजबूत दिखाई देने वाला इंडिया गठबंधन व्यवहार में उतना प्रभावी नजर नहीं आ पा रहा है और, चुनाव में अभी और समय बाकी है.

बंगाल में बीजेपी को बढ़त सीटें बढ़ाने में करेगी मदद

बंगाल भी बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. बीजेपी ने यहां की 42 सीटों में से 2019 में 18 सीटें जीती थीं. उस समय भी बीजेपी के आंकड़े 300 से ऊपर ले जाने में बंगाल की अहम भूमिका रही थी. इस बार भी यदि बंगाल से सीटें बढ़ीं तो बीजेपी न सिर्फ अपनी कुल सीटों की संख्या बरकरार रख सकती है बल्कि ठीकठाक वृद्धि की संभावना बन सकती है. बिहार के विपरीत यहां इंडिया गठबंधन का एकजुट रहना यहां बीजेपी  के लिए फायदेमंद हो सकता है, यही वजह है कि इंडिया गठबंधन के भीतर से यहां उठ रहे विपरीत स्वरों पर बीजेपी उतनी आक्रामक नहीं दिखाई देती जितनी बिहार में है.

ओडिशा में क्या है बीजेपी की स्थिति?

पिछली बार बीजेपी की सीटें बढ़ाने में दूसरा अहम राज्य ओडिशा था, यहां बीजेपी को 21 में से आठ सीटें मिली थीं. इससे पहले 2014 में सिर्फ एक सीट पर उसे संतोष करना पड़ा था. यहां भी पूरी गुजाइंश है बशर्ते वह पुनर्जीवित हो रही कांग्रेस को दबाने में कामयाब रहे क्योंकि कांग्रेस के मजबूत होने पर ज्यादा नुकसान बीजेपी को होगा. जब एक-एक सीट महत्वपूर्ण दिख रही हो, अविभाजित जम्मू-कश्मीर (लद्दाख समेत) की छह सीटें भी खासी अहम हो जाती हैं. पिछली दोनों दफा बीजेपी ने यहां की छह में से तीन सीटें जीती थीं. यहां भी इंडिया गठबंधन (नेशनल कांफ्रेस, पीडीपी और कांग्रेस) समीकरण गड़बड़ा सकता है. अभी कश्मीर की तीनों सीटें नेशनल कांफ्रेंस के पास हैं, लेकिन नए समीकरणों में यह गठबंधन जम्मू संभाग की दो सीटों में से एक (जम्मू-पुंछ) और लद्दाख की सीट पर बीजेपी के लिए चुनौती पेश कर सकता है. हालाकि जम्मू में गुलाम नबी आजाद का एक्स-फैक्टर बीजेपी के पक्ष में नजर आता है.

इसके अलावा, केंद्रशासित क्षेत्रों और पूर्वोत्तर के सात राज्यों की 17 सीटें हैं, जिनमें बीजेपी के पास अभी सात सीटें हैं.  इक्का-दुक्का को छोड़कर इन सारी सीटों पर स्थानीय राजनीतिक समीकरणों और उम्मीदवारों का प्रभाव काम करता है.

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कुल मिलाकर, बीजेपी के लिए बिहार, बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और असम ही ऐसे राज्य हैं, जिन पर निर्भर करेगा कि दूसरे राज्यों में यदि नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई करते हुए भी लोकसभा में बीजेपी अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़कर आगे बढ़ेगी या नहीं.

(राजेंद्र तिवारी वरिष्ठ पत्रकार है, जो अपने लम्बे करियर के दौरान देश के प्रतिष्ठित अख़बारों - प्रभात ख़बर, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान व अमर उजाला - में संपादक रहे हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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