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This Article is From Aug 06, 2016

लेह यात्रा पार्ट-1 : लेह जा रहे हैं क्या? मैं भी गया था...

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 06, 2016 18:00 pm IST
    • Published On अगस्त 06, 2016 17:54 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 06, 2016 18:00 pm IST
पहले की तस्वीरें युग-युगांतर की मानी जाती थीं, या कम से कम दिखती थीं, मोटे-मोटे बख़्तरबंद एलबम में. आजकल होता यह है कि एक तस्वीर की उम्र दो से ढाई घंटे रह जाती है. मतलब टाइमलाइन से नीचे सरके तो फिर इतिहास का हिस्सा हो जाती हैं. बशर्ते एक दो साल बाद कोई अचानक लाइक बटन न दबा दे, और फिर मामला गनगना जाता है. वैसे फेसबुक भी आजकल आपके फोटो की एनिवर्सरी मनाने तो लगा है. खैर इस प्राक्कथन का मतलब यह है कि मेरे पास कुछ तस्वीरें थीं, कुछ अनुभव थे. तो मैंने सोचा क्यों न वे बांटे जाएं आपसे, इससे पहले कि उनके बारे में कुछ कहने के लिए, कुछ याद ही न रहे मुझे. जिसके लिए ब्लॉग ही सही रास्ता लगा मुझे.
 

तो यह कहानी रही लद्दाख़ की... लेह की...

मैंने दुनिया के कुछेक हिस्से ही देखें हैं, कुछेक देशों में ही गया हूं. लेकिन जहां भी गया हूं, जितनी जगहें देखी हैं, उनमें अब तक सबसे खूबसूरत यही इलाका लगा. लेह, शहर तो नहीं कहूंगा लेकिन वह शहर है ही कितना बड़ा. चार कदम दाएं चार कदम बाएं और फिर नज़ारा चेंज. तो बेसिकली वहां खींची तस्वीरें और अनुभव बांट रहा हूं. अगर वहां गए तो फिर हो सकता है दो-तीन चीज़ें काम आ जाएं.
 

सबसे अच्छा मौसम तो जुलाई-अगस्त ही माना जाता है लेह जाने के लिए. तो अब तो हो सकता है देर हो गई हो अभिभावकों के लिए, बाकियों के लिए तो स्कोप है अभी. तो लेह पहुंचने के तीन तरीके कहे जाएंगे. एक तो हवाई रास्ता है, दूसरा है सड़क के द्वारा, जिसमें दो ऑप्शन हैं। अब मैं तो दोनों बार गया था हवाई रास्ते, तो उसके बारे में कुछ बता ही सकता हूं. वैसे सड़क के रास्ते जाने वालों के लिए भी कुछ टिप्स तो दे ही सकता हूं.
 

सड़क के रास्ते हम या तो अपनी कोई एसयूवी लेकर जाएं या फिर मोटरसाइकिल से जाएं. मोटरसाइकिल की कहानी तो हमें और आपको पता ही होती है कि कैसी होती है. हर साल हजारों की संख्या में बाइकर्स लेह का रास्ता पकड़ते हैं. और यह संख्या कुछ ज्यादा इसलिए लगने लगती है क्योंकि सबके सब फेसबुक रंग देते हैं. जब तक आप त्राहिमाम-त्राहिमाम न करने लगें टाइमलाइन से फोटो की क्लाउड बर्स्ट खत्म नहीं होता है. तो अब वह मामला थोड़ा ज्यादा ही क्लीशे हो गया है. एनफ़ील्ड बाइक लेकर दिल्ली में चलना मुहाल हो गया है कि जिसे देखो वही सवाल करता है कि बुलेट पर लेह गए क्या? लेकिन इस भीड़ और मोटरसाइकलिंग की अति पार होने के बावजूद बुलेट से लेह जैसी जगह पर जाना जीवन का ऐसा अनुभव होगा जिसे आप भूल नहीं पाएंगे. और मेरा मतलब अच्छी वजहों से यादगार यात्रा होगी.
 

अगर अपनी गाड़ी से जाना चाहते हैं तो बता दें कुछ बात. एक तो यह कि अगर लेह-लद्दाख अपनी गाड़ी से घूमना है तो फिर एसयूवी ही चलेगी. वह एसयूवी जिसकी सर्विसिंग और पार्ट-पुर्ज़े का खर्च आप अफोर्ड कर सकते हैं. क्योंकि लेह के इर्द गिर्द आप चाहे पैंगोंग झील जाना चाहें या फिर नुब्रा घाटी, बीच में सड़कों की हालत ऐसी है कि कारें तो रो पड़ती हैं. वैसे यह बात अलग है कि लेह के किसी भी कोने में आपको आती जाती ऑल्टो कार जरूर दिख जाती है जिसके जीवन की एक ही अभिलाषा जान पड़ती है कि वे आसपास की इनोवा, एक्सयूवी या सफारी को कुंठित करती चलें.
 

खैर... तो अपनी कार अगर एसयूवी है तो फिर यह मत सोचिएगा कि आप वहां कहीं से कहीं जा सकते हैं. लेह के ट्रांसपोर्टेशन की कहानी में एक बड़ा रोल यूनियनबाजी को दिया गया है, जो बार बार आपकी इस ईस्टमेनकलर फिल्म में आएगा. पिछले साल भी रिपोर्ट आई थी कि सेल्फ़ ड्रिवेन कार जो रेंट पर लेकर लोग लेह गए थे उनके साथ लेह में टैक्सी वालों ने लड़ाई की थी, और गाड़ी तोड़ दी थी. इस साल भी मारपीट की खबर आई थी जब मैं लेह में था. तो यह समझ लीजिए कि आपकी अपनी या फिर रेंटल सेल्फ़ ड्रिवेन कार लेह के कई इलाकों में टैक्सी यूनियनों को गवारा नहीं और पता नहीं चला कि प्रशासन इस पर क्या कहता है. तो यह आपको ध्यान रखना होगा। हां वैसे एक प्रैक्टिकल रास्ता हो सकता है कि लोकल ड्राइवर लें, या फिर गाड़ी होटल में पार्क कर टैक्सी से लद्दाख घूमें.
 

अगर हवाई जहाज़ से आ रहे हैं लेह तो फिर तो मेरी सलाह यही होगी कि कहीं नहीं घूमें. सिर्फ पहले दिन के लिए यह सलाह है. सिर्फ एक काम करेंस, बेड रेस्ट. सच कह रहा हूं मैं... बेड रेस्ट करें, हल्का खाना खाएं, लेकिन खाली पेट बिल्कुल न रहें. और इन सबमें सबसे जरूरी यह कि हर पांच मिनट पर दो-चार घूंट पानी पीते रहें. यह सब लेह में एक्लाइमेटाइज़ेशन की प्रक्रिया है. क्योंकि हवाई यात्रा के बाद लेह पहुंचने पर हमारी बॉडी शॉक में होती है. क्योंकि वातावरण में इतने बदलाव होते हैं जो हमारा दिमाग कैलकुलेट नहीं कर पाता है. और इस वजह से पहले दिन बहुत एहतियात की जरूरत होती है जिससे बाकी का ट्रिप टिप-टॉप गुजरे.

तो ऐसी ही कुछ टिप्स भी देता चलूंगा, लेह की तस्वीरों के साथ... लेकिन अगले हिस्सों में.
 
लद्दाख की तस्वीरें. 

असल में लेह की अद्भुत खूबसूरती इतनी आसानी से आप तक नहीं आती है. वहां की हवा में ऑक्सीजन कम है, जिससे हमें शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बनाए रखने के लिए ज्यादा सांसें लेनी पड़ती है. वैसे कई लोग पहले दिन के लिए कई दवाइयां लेने की सलाह देते हैं. खासकर डाइमॉक्स ( DIAMOX) टैबलेट का नाम आप बारबार सुनेंगे. लेकिन ध्यान रखिए, पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लीजिए.

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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