केपीएस गिल नहीं रहे. इसके साथ हॉकी का एक अनमोल अध्याय भी ख़त्म हो गया. भारतीय हॉकी संघ के पूर्व अध्यक्ष गिल के कार्यकाल में हॉकी ने कई उतार-चढ़ाव देखे. एक वो भी दौर रहा जब हॉकी को लेकर गिल की प्रतिक्रिया बेहद अहम मानी जाती थी. 2004 के एथेंस ओलिंपिक्स की टीम के चयन को लेकर (ओलिंपिक्स से 100 दिन पहले तक ख़ासकर धनराज पिल्लै के चयन को लेकर) बवाल मचा हुआ था. गिल खिलाड़ियों को टीम से ड्रॉप करने के लिए मशहूर हो गए थे. गिल अपने फ़ैसलों की सफ़ाई देना ज़रूरी नहीं समझते थे. इसलिए उनके एकतरफ़ा फ़ैसलों पर जवाब पाना मुश्किल होता था.
NDTV से इस संवाददाता को केपीएस गिल का इंटरव्यू लेकर आना था. गिल ने बहुत समझाने पर इंटरव्यू के लिए अपनी रज़ामंदी दे दी. NDTV और Zee के संवाददाता शिवेंद्र सिंह को एक साथ 15 मिनट का वक्त मिला. गिल के बंगले पर दो कैमरों के सामने गिल बैठे तो हमने तय किया कि शिवेंद्र तीखे सवाल करेंगे और मैं उन्हें इंटरव्यू में बांधे रखने की कोशिश करूंगा.
गिल बहुत गुस्से में ज़रूर थे. लेकिन उस दिन उन्होंने अपनी बातों को तर्कसंगत रखने के लिए कभी मिल्टन तो कभी डब्लू बी यीट्स की कविताओं की पंक्तियां दुहराते रहे. गिल को कई कविताएं याद थीं. वो अंग्रेज़ी भाषा के अच्छे जानकार थे.
गिल का मीडिया के साथ संबंध भी उतार-चढ़ाव भरा रहा. मीडिया में उनके कई अच्छे दोस्त थे. वो हमेशा आरोप लगाते रहे कि मीडिया हॉकी के साथ न्याय नहीं करता. उन्हें जब कभी याद दिलाया जाता कि मीडिया ने हॉकी को काफ़ी तवज्जो दी है, तो वो कहते, "ये मीडिया की मजबूरी है. क्या मीडिया भारत-पाकिस्तान मैच की उपेक्षा कर सकता है? मीडिया हॉकी को तभी कवर करती है जब वो उसे अनदेखा नहीं कर सकती."
गिल गुस्सैल तो थे लेकिन उनमें हास्य की कमी नहीं थी. उनकी एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के ख़त्म होते-होते दोपहर के 12 बज गए. उस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में मीडिया और गिल के बीच तीखे सवाल-जवाब से माहौल तनाव भरा हो गया. तभी वरिष्ठ पत्रकार हरपाल सिंह बेदी (देरी से) कमरे के अंदर आये. गिल ने उन्हें तपाक से आड़े हाथों लिया, "बेदी साहब अब आ रहे हैं जब सब ख़त्म हो गया?" बेदी ने उसी अंदाज़ में उन्हें जवाब दिया, "आपने ऐसे वक्त पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस रखी. 12 बज गए उसके बाद ही आ सका." उस कमरे का गर्म माहौल अचानक गिल और बेदी के हास्य की वजह से तब्दील हो गया. हॉकी के पूर्व अध्यक्ष गिल मज़ाक को अपने ऊपर भी स्पोर्टिंगली ले सकते थे.
गिल के वक्त भारतीय हॉकी ने उतार-चढ़ाव के कई दौर देखे. भारतीय हॉकी टीम 32 साल बाद एशियन गेम्स चैंपियन बनी (1998), भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी ही ज़मीन पर हराया, भारतीय हॉकी टीम ने कई बार उसके सुनहरे दिनों की वापसी के संकेत दिए. लेकिन हमेशा गिल के कुछ फ़ैसलों ने विवादों का पिटारा खोल दिया. उनके 14 साल के कार्यकाल के दौरान भारतीय हॉकी टीम पहली बार ओलिंपिक्स में क्वालिफ़ाई नहीं (2008 बीजिंग ओलिंपिक्स) कर पाई और भारतीय हॉकी अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंचती दिखी.
82 साल की उम्र में गिल का स्वास्थ्य आख़िरी दिनों में अच्छा नहीं रहा. वो लंबे समय तक डायलिसिस पर रहे और शुक्रवार 21 मई को 2 बजे दिन में अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.
गिल बोल्ड फ़ैसले लेते थे. जब IOA के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने अपने घर पर मीटिंग बुलाकर उन्हें हॉकी से बाहर का रास्ता दिखाया तो मीटिंग से बाहर आकर उन्होंने कहा, ये "क्रुक्स (धोखेबाज़)" हैं. गिल ईमानदारी से इस खेल को ऊंचाइयों पर पहुंचाना चाहते थे. लेकिन कभी उनका अहम, कभी टीम और कॉरपोरेट्स की कमज़ोरी, कभी कोचिंग के ग़लत फ़ैसले और कभी मीडिया और स्पांसर्स की बेरुख़ी ने हॉकी को वहां नहीं पहुंचने दिया जहां वो पहुंच सकती थी.
गिल ये भी दावा करते रहे कि क्रिकेट की इंडियन प्रीमियर लीग से पहले उन्होंने प्रीमियर हॉकी लीग लॉन्च की. उनके मुताबिक इंडियन प्रीमियर लीग उनकी नकल है. नकल की बात क्रिकेट फ़ैन्स को शायद ज़्यादती लग सकती है. लेकिन ये सच है कि 2005 से लेकर 2008 तक सात टीमों के बीच प्रीमियर हॉकी लीग के टूर्नामेंट आयोजित होते रहे. गिल को इसका श्रेय तो देना ही पड़ेगा.
This Article is From May 26, 2017
गिल साहब की मृत्यु के साथ हॉकी का एक दौर ख़त्म
Vimal Mohan
- ब्लॉग,
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Updated:मई 26, 2017 19:04 pm IST
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Published On मई 26, 2017 19:04 pm IST
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Last Updated On मई 26, 2017 19:04 pm IST
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