आज कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़े 26 साल हो गए। 1990 की जनवरी के यही दिन थे, जब उनका सामूहिक पलायन शुरू हुआ। आज भी उनकी कसक ये है कि उनको लेकर राजनीति बहुत हुई, लेकिन उनकी घर वापसी का रास्ता नहीं बना।
दिल्ली के जंतर-मंतर से जम्मू-कश्मीर तक अपने घर से बेदखल कश्मीरी पंडितों का दुख और गुस्सा दिखता रहा। वो याद करते रहे कि 26 साल पहले इन्हीं सर्दियों में वो कैसे अपना राज्य छोड़कर भागने को मजबूर हुए। कश्मीरी पंडितों को इस बात का भी अफ़सोस है कि इन 26 सालों में किसी ने उनकी वापसी की क़ायदे से कोशिश नहीं की।
1989-90 के उस दौर में 50,000 से ज़्यादा कश्मीरी पंडितों के परिवार घाटी छोड़ने को मजबूर हुए। गिनती के परिवारों ने वापसी की- बाकी अब भी राह देख रहे हैं। हालांकि कश्मीर की राजनीति उनको लेकर बेपरवाह रही है, ये कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फ़ारूक अब्दुल्ला का बयान बताता है।
फ़ारूक अब्दुल्ला ने एनडीटीवी से सोमवार को कहा कि घाटी में वापस लौटने की ज़िम्मेदारी पंडितों की है। कोई कटोरा लेकर पंडितों के पास वापस लौटने की भीख मांगने नहीं जाएगा। लेकिन, ये विरोध प्रदर्शन बताता है कि घर छोड़ने की कसक भी है और घर वापसी का इंतज़ार भी।
(शारिक खान एनडीटीवी इंडिया में एंकर हैं)
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This Article is From Jan 19, 2016
कश्मीरी पंडित : घर छोड़ने की कसक भी, घर वापसी का इंतज़ार भी
Sharik Rahman Khan
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 19, 2016 20:46 pm IST
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Published On जनवरी 19, 2016 19:43 pm IST
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Last Updated On जनवरी 19, 2016 20:46 pm IST
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