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This Article is From Aug 28, 2014

तिब्बत डायरी : नब्ज के जरिये मर्ज पकड़ना

Kadambini Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2014 15:57 pm IST
    • Published On अगस्त 28, 2014 09:13 am IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2014 15:57 pm IST

जब डॉक्टर साहब ने नाड़ी पकड़ी तो मुझे जरा भी नहीं लगा था कि वह इस वक्त कोई डायग्नोसिस दे पाएंगे, लेकिन मैं गलत थी।  
असल में तिब्बती चिकित्सा पद्धति के बारे में जानने के लिए हमें शैनन प्रिफेक्चर के ज़ेडांग शहर में तिब्बती चिकित्सा पद्धति के अस्पताल में लाया गया था।

यह अस्पताल आम अस्पतालों जैसा नहीं है। बिल्कुल साफ-सुथरा और इस इतिहास से लैस कि पूर्वजों ने इस चिकित्सा पद्धति के लिए क्या-क्या किया। अस्पताल के गेट पर ही पारंपरिक तरीके से स्वागत के बाद सबसे पहले हमें एक विशालकाय हॉल में ले जाया गया। इस हॉल में कोई चार्ट नहीं लगे थे इंसानी शरीर की संरचना और बीमारियों को बताते हुए, बल्कि तंखा पेंटिग्स के जरिये एक-एक चीज बताई गई है। सर्दी, खांसी, जुकाम, घुटने का दर्द, कमजोर दिल या फेफड़े, पेट में बच्चे का विकास सब कुछ है इन पर।

इनमें से एक पेंटिंग जो मानव शरीर के अंदर की संरचना विस्तार में बताती है, करीब बारह सौ साल पुरानी है। ज़रा सोचिए कितना वक़्त, कितनी मेहनत लगी होगी, एक-एक चीज जानने समझने में, क्या-क्या करना पड़ा होगा और ये सब जानने के बावजूद कितनी कुशलता चाहिए होगी इलाज करने के लिए।

उस समय कोई मॉर्डन मशीनें तो थी नहीं अंदर का हाल बताने के लिए। बाकी तन्खा पेंटिंग्स जो यहां लगी हैं, वह सब औसतन 600 साल पुरानी हैं।

तिब्बती चिकित्सा की खास बात यह है कि इसमें अधिकतर वनस्पतियों, जड़ियों, हिरण के सींग वगैरह से ही दवाइयां बनती हैं। इस हॉल में इन वनस्पतियों के भी सैंपल मर्तबानों में रखे गए हैं। वैसे यहां के डॉक्टरों का कहना है कि तिब्बती चिकित्सा पद्धति पर कुछ असर पड़ोसी देशों जैसे भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार का भी है।

इस अस्पताल में वे सभी कपड़े और कागज पर लिखी पांडुलिपियां भी हैं, जिन पर पहले के वक्त में किया हुआ रिसर्च दर्ज है और एक और चीज़ जो आपने पहले कभी नहीं देखी होगी - तिब्बती चिकित्सा पद्धति के जितने महान डॉक्टर हुए हैं, सबकी छोटी-छोटी मूर्तियां यहां एक कमरे में लगी हैं। मैं सोचने लगी कि अगर हमारे यहां ऐसी मूर्तियां लगनी हों तो क्या हो।

वैसे, डॉक्टर ताशी हमें बताते हैं कि अब यह एक आधुनिक अस्पताल हो चुका है। यहां 300 बेड हैं। यहां पिछले साल इलाज के लिए एक लाख मरीज आए थे, लेकिन नब्बे फीसदी ने तिब्बती इलाज ही कराया। क्या भरोसा है। पर जब हमने पूछा कि तरीका क्या बाकियों जैसा है या कुछ अलग भी है तो पता चला कि नाड़ी सुबह जागने के साथ जांची जाती है या जब आप कम से कम आधा घंटा स्थिर बैठे हों, कभी भी नहीं। शरीर के जिस भी अंग में तकलीफ हो उसे कुछ गिनकर ऑब्जर्व किया जाता है, दिनचर्या वगैरह पूछी जाती है।

मेरे सहयोगी उमाशंकर सिंह ने तुरंत यह जानना चाहा कि क्या वजन घटाने का कोई शॉर्ट कट है तो जवाब मिला कि उसके लिए तो मेहनत करनी ही पड़ेगी और हां अगर आप सोच रहे हों कि बड़ा आसान है इस पद्धति का डॉक्टर बनना तो ऐसा नहीं है। इसके लिए पांच-छह साल पढ़ाई करनी पड़ती है।

यह पद्धति तिब्बत में इतनी मानी जाती है कि चीनी सरकार ने न सिर्फ यहां के अस्पताल में नए विंग स्पॉन्सर किए हैं, बल्कि शैनन सरकार की मदद से तिब्बती पद्धति का अस्पताल बीजिंग में भी खोल दिया है। इन दवाइयों की लोकप्रियता ऐसी है कि इन्हें बनाने के लिए दो फैक्टरी भी हैं, एक इटली में और दूसरी स्विट्ज़रलैंड में और हारवर्ड में इस पर रिसर्च के लिए अलग डिपार्टमेंट बनाया है। और डॉक्टर ने मेरा डायग्नोसिस बिल्कुल सही किया है।

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