शिनजियांग डायरी का ये आखिरी हिस्सा चीन से लौटने के करीब महीने भर बाद लिख रही हूं. इसलिए नहीं कि वक्त नहीं मिला या इच्छा नहीं हुई, बल्कि इसलिए कि इस बीच इस पर मेरी बनाई डॉक्युमेंट्री 'चीन का चाबुक' ऑन एयर हो गई और मैं देखना चाहती थी कि इस पर प्रतिक्रिया क्या होती है. क्योंकि सीधे तौर पर भारत से जुड़ा मुद्दा नहीं है तो यह भी लगा कि पता नहीं लोग देखें ना देखें. लेकिन यूट्यूब पर सवा लाख से भी ज्यादा लोगों ने देखा और अधिकतर ने सराहा. कुछ ने कुछ सवाल भी पूछे.
तो शिनजियांग डायरी का आखिरी पन्ना इन सवालों के जवाब के लिए. इनमें एक सवाल था कि मैं तो चीन के न्योते पर गई थी फिर निष्पक्ष कैसे हो सकती हूं? लेकिन सच ये है कि ऐसा कई बार होता है कि कोई देश या संस्था अपने यहां पत्रकारों को न्योता देती है क्योंकि वो या तो अपने बारे में दुनिया को बताना चाहती है या अपने बारे में कोई सफाई देना चाहती है. चीन के साथ फिलहाल यही समस्या है कि उसके उइघर मुस्लिमों के साथ व्यवहार को लेकर पश्चिमी देशों के मीडिया में काफी सवाल उठे हैं. उनके दमन का आरोप है और इसलिए चीन भी अपना पक्ष रखना चाहता है. इसलिए कई देशों के पत्रकारों को बुलाकर वो अपना पक्ष भी रख रहा है.
मेरे साथ जो पत्रकारों का दल था उसमें जापान, अल्बानिया, तुर्की, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, दक्षिण कोरिया, चेक रिपब्लिक और रूस के पत्रकार भी थे. हर पत्रकार ने लगभग एक जैसी ही चीजें देखीं और ये पत्रकारों के ऊपर था कि वे किस नज़रिए से देखते. हर पत्रकार ने अपने हिसाब से रिपोर्ट फाइल की. इन सवालों से जुड़ीं टिप्पणियां भी मेरी डॉक्युमेंट्री पर आईं कि मैंने या तो चीन का पक्ष लिया है, या उइघरों के साथ ऐसा ही करना चाहिए था. लेकिन असल में मैंने किसी का पक्ष नहीं लिया है. जो मैंने देखा वही इसमें बताया है, न ज्यादा न कम. ये भी समझने वाली बात है कि बिना चीन सरकार की इजाज़त के आप शिनजियांग जा नहीं सकते. हमारे साथ के दो विदेशी पत्रकारों को आक्सू हवाईअड्डे पर रोका गया, बावजूद इसके कि चीनी अधिकारी साथ में थे. उन्हें भी ये बात साबित करनी पड़ी कि इन्हें चीन सरकार ने ही बुलाया है. ये आतंक के एक वक्त का आफ्टर इफेक्ट है.
दूसरी बात ये कि अधिकतर उइघर सिर्फ उइघर भाषा बोलते हैं, बहुत कम मैंडेरिन बोलते हैं. इनसे बात करने के लिए कई बार दो दुभाषियों की ज़रूरत पड़ी. तो भाषा के मामले में हम इन पर निर्भर थे. लेकिन ये भी सच है कि हमने हर प्रकार का सवाल पूछा और जवाब पाया, जैसे आप डॉक्युमेंट्री में देख सकते हैं. यहां पर चीनी अधिकारियों या चीनी दुभाषिए के बिना हमें कोई उइघर नहीं मिला. जिनसे हमने बात की उनकी बातों को स्वतंत्र रूप से वेरिफाय करने का कोई तरीका नहीं था, इसलिए बिना टीका-टिप्पणी के वो ही दिखाया. और जो Between the Lines लगा वो भी बताया. कल को, चीन के बाहर अगर कोई उइघर मुस्लिम पुख्ता सबूत के साथ दमन की कहानी बताए तो वो भी सामने रखने में कोई गुरेज़ नहीं.
हमें वहां इससे जुड़े ऐसे किस्से भी मिले जहां कुछ उइघर युवा ये कह रहे हैं कि उनके मित्र भी ऐसे वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर में आना चाहते हैं क्योंकि बाहर से इस प्रकार की ट्रेनिंग काफी महंगी पड़ती है. कुछ हान चीनियों का ये भी कहना है कि उनके बच्चों को ऐसी ट्रेनिंग मुफ्त क्यों न मिले? तो ये भी तस्वीर का एक रुख है.
शिनजियांग में आतंकी हमले हुए यह भी सच है और अब तेजी से विकास किया जा रहा है, ये भी. और यही सब मैंने अपनी डॉक्युमेंट्री में दिखाया है. हम हमेशा पश्चिमी मीडिया की ही बात क्यों मानें? क्योंकि सच के भी कई पक्ष होते हैं, मैंने हर पक्ष सामने रख दिया है.
(कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...)
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