अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में हुए कार्यक्रम में शामिल होने वाले अधिकांश युवा ही थे। अलग-अलग कॉलेजों से, अलग विश्वविद्यालयों से। कई ऐसे भी युवा थे, जो एनजीओ के साथ या किसी थिंक टैंक का हिस्सा थे। उत्साह और उत्सुकता से भरे इन युवाओं के मन में न सिर्फ करीब से ओबामा को देखने की चाह थी, बल्कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति को सुनने-समझने की ललक भी।
ओबामा आए, भाषण भी दिया और उनका भाषण काफी हद तक उन्हीं युवाओं को संबोधित करता हुआ था, जो भारत की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। उन्होंने न सिर्फ भारत के छात्रों के अमेरिका जाकर पढ़ने की बात की, बल्कि अमेरिकी छात्रों के भी भारत में पढ़ने की बात कही। महिलाओं की सुरक्षा की बात की। यह भी कहा कि जिस देश की नारियां सफल होती हैं, वही देश भी सफल होता है।
जब यह भाषण सुनकर छात्र बाहर निकले तो उन्हें दो बातों का मलाल था - एक, कोई सवाल पूछने का मौका नहीं मिला, क्योंकि अधिकतर को उम्मीद थी कि उन्हें ओबामा से सवाल पूछने का भी मौका मिलेगा। ठीक वैसे ही, जैसे 7 नवंबर, 2010 को मुंबई के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज के छात्रों को मिला था। किसी को यह पूछना था कि वह स्कॉलरशिप के लिए क्या कर सकते हैं तो किसी को यह कि इतने बड़े देश को संभालते हुए परिवार के लिए भी वक्त कैसे निकालते हैं। कोई यह जानना चाहता था कि अमेरिका-चीन रिश्तों में भारत कहां फिट होता है, तो किसी को पाकिस्तान पॉलिसी पर जवाब चाहिए था।
खैर, इस बार यह तो नहीं हो पाया, लेकिन सामने बैठकर ओबामा को देखने और सुनने की खुशी सबको हुई और नरेंद्र मोदी से उनके भाषण की तुलना भी। हां, पीछे की पंक्तियों में बैठे छात्रों को एक और दुख ज़रूर था - ओबामा के साथ सेल्फी नहीं ले पाए!
This Article is From Jan 27, 2015
कादम्बिनी की की-बोर्ड से : ओबामा के भाषण से छात्रों की ललक पूरी हुई, चाह नहीं...
Kadambini Sharma, Vivek Rastogi
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Updated:जनवरी 27, 2015 18:48 pm IST
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Published On जनवरी 27, 2015 18:45 pm IST
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Last Updated On जनवरी 27, 2015 18:48 pm IST
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