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This Article is From Sep 10, 2016

जुमला शाश्वत है, उसका न ओर है न छोर

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 10, 2016 05:56 am IST
    • Published On सितंबर 10, 2016 01:17 am IST
    • Last Updated On सितंबर 10, 2016 05:56 am IST
जुमला शाश्वत है. न उसका ओर है न छोर. न वो दिखाई देता है न सुनाई देता है, उसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है. तेज़ गति से आता है और कान में वैक्यूम सा बनाता चला जाता है. न उसका रूप है न रंग.  आदि काल से आज तक कोई ये नहीं बता पाया है कि ये जुमला है या वो जुमला है. कहा ये भी जाता है कि कुछ मौक़े हुए हैं जब इंगित हुआ है लेकिन ये भी कहा जाता है जुमले ने स्वयं को पहचानने से इंकार कर दिया.

जुमला एक अमूर्त थ्योरम है, जिसे न तो काटा जा सकता है न प्रूव किया जा सकता है क्योंकि वो परसाई के ट्रक की तरह सत्य के अनंत पहलुओं का वाहक है. ये न तो ठोस है, न द्रव्य है. कुछ किविदंतियां इसे गरम हवा की कैटगरी में डालती हैं, पर आज तक कोई दावे के साथ जुमले के बारे में कुछ कह नहीं पाया है, वो भी एक किविदंती ही बन गया है.

जुमला किसी का नहीं है लेकिन वो सबका है, जो उसे मन से ग्रहण करता है, जुमला उसी का है. समाजवादी है. साम्यवादी है. वादी है, प्रतिवादी है. गाय भी है. आय भी है. सिन्हा भी है, शर्मा और सहाय भी. साइकिल भी है और लैपटॉप भी है.

जुमले का कोई अहं नहीं है, वो ये नहीं जानना चाहता है कि उससे किसी को क्या लाभ है, उसे इसकी भी चिंता भी नहीं कि उससे किसका नुक़सान होगा. वो निश्चिंत, निष्काम कर्म के क्रम में आगे बढ़ते जाता है. वो शराब भी है. वो ताड़ी भी है. आटा भी है. डाटा भी है. अगड़ा भी है. पिछड़ा भी है.

जुमला एक गमला है. उसमें खरपतवार उगते हैं. उसे न तो फूल की आशा है न किसी पत्ते की. वो किसी से कोई आसक्ति नहीं रखता. आसक्ति नहीं पर शक्ति है. शक्ति अपने संवाहकों से. जुमला उपेक्षित है पर उसे किसी से अपेक्षा हो ये भी किसी ने नहीं सुना है. वो दलित भी नहीं. द्रवित भी नहीं . शहज़ादा भी है. चायवाला भी.

आकांक्षाओं के क्षितिज के पार से आने वाला जुमला आनंद और परमानंद से मुक्त है. जुमला वोट बैंक भी है. जुमला स्विस बैंक भी. राशन कार्ड भी. आधार कार्ड भी. जुमला सर्ज भी है. मर्ज़ भी. जुमले के लिए कोई सत्य नहीं. उसके लिए सत्य भी कोई नहीं. मार्क्स भी. मार्क ज़ुकरबर्ग भी. पुत्रजीवक भी. शिलाजीत भी.

उसे किसी के मन में आशा जगाने या किसी को निराश करने को लेकर, वो मन में कोई अपराधबोध भी नहीं रखता है. वो मायावी भी है इसीलिए जिसकी आशा टूटती भी है वो भी जुमले से नहीं टूटते. जुमले स्वरूप बदल लेते हैं. वो चरखा बनते हैं, फिर चरखा चलाने वाला हाथ. कभी हाथ में पकड़े हंसिया. कभी हथौड़ी. कभी कमल का स्वरूप होता है. कभी कीचड़ का. हर स्वरूप में वो मानवता के लिए पूजनीय होता है. जुमला आस्था है. ऐसी सत्यता जिसकी वास्तविकता ही कल्पना है. वास्तविकता ढुलमुल है, कल्पना ठोस. इतनी ठोस की कूट-कूटकर सपनों के हवामहल खड़े कर दिए जाए.

हर युग में अलग-अलग दल, अलग कबीले के युगपुरुषों की जिव्हा पर जुमले ने वास किया है और हर बार उन्हें पास किया है. जुमला कभी राशि के रूप में आता है, कालाधन कहलाता है. कभी सांख्यिकी यांत्रिकी के तौर पर आता है जैसे एक संप्रदाय के हिसाब से दर्जन लाख सीसीटीवी कैमरे भी अवतार हैं. कई संप्रदायों की किंविदंतियों में क्रियात्मक भाववाचक अवतार का भी स्मरण किया जाता है, गरीबी हटाओ के नारे की तरह. वहीं विद्वानों की राय में जुमले का सबसे चर्चित अवतार एक कालखंड के टुकड़े के तौर पर देखा गया, जिसे मानवता ने अच्छे दिन के तौर पर जाना. इस अवतार को वेदव्यास के चक्रव्यूह की तरह देखा गया जिसमें आक्रमण करने के रास्ते कई थे लेकिन उससे निकलने का रास्ता गर्भ में ही रह गया.

विद्वानों में कुछ का मत है कि ये अवतार में दुधारी नहीं मल्टीधारी तलवार है. क्योंकि अगर इस्तेमाल के समय सही मंत्र का प्रयोग नहीं किया तो खेल ख़राब हो सकता है. जैसे आजकल के नक्षत्र में इसके इस्तेमाल के समय प्रधानमंत्री को टैग करने के मंत्र से बचना होगा, क्योंकि जुमला निर्लिप्त है. उसे किसी से लिप्त होना अप्रसन्न करता है और ऐसी स्थिति में वो किसी को भी सन्न कर सकता है.

जुमला भावशून्य होता है, वो शत्रु को भी काटता है, मित्रों को भी. ट्रैजिडी किंग को भी काट सकता है और कॉमेडी किंग की भी कुटाई कर सकता है. जो पाठ आर्यावर्त के पश्चिमी क्षेत्र के एक व्याकुल विदूषक ने सीखा है. ये वो तलवार है जो केक काट सकती है तो घास भी. इस्तेमाल करना आना चाहिए.जुमला यूज़ भी है. मिसयूज़ भी.

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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