विश्व के सबसे अशांत क्षेत्र पश्चिम एशिया में एक बार फिर युद्ध और मानवीय संकट के बादल मंडराने लगे हैं. एक ओर जहां इजरायल-फ़ीलस्तीन, या कहें कि गाजा में इजरायली सेना और हमास के बीच का संघर्ष अभी पूरी तरह से समाप्त भी नहीं हुआ है, और इजरायल-ईरान के बीच भी तनाव की स्थिति बनी हुई है, इस बीच ऐसी ख़बरें आईं कि इजरायल ने सीरिया पर भी हमला शुरू कर दिया है. सीरिया की राजधानी दमिश्क में रक्षा मंत्रालय को भी निशाना बनाया गया.
सीरिया और इजरायल के बीच 19 जुलाई तड़के एक अहम युद्ध विराम समझौता हुआ. इसकी घोषणा तुर्की में अमरीका के राजदूत टॉम बैरक ने की. यह समझौता दक्षिणी सीरिया के सूवैदा प्रांत में द्रूज अल्पसंख्यकों और बेदुईन कबीलों के बीच चल रही हिंसक झड़पों के बाद हुआ है. जानकारों के अनुसार इन झड़पों में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. चूंकि इस समझौते को तुर्की, जॉर्डन और सीरिया के अन्य पड़ोसी देशों का समर्थन प्राप्त है, इसलिए इस समझौते से इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता आने की थोड़ी उम्मीद जगी है. परंतु इस घटना ने एक बार पश्चिम एशिया की फ़ॉल्टलाइंस को उजागर करते हुए यह दिखाया है कि इस क्षेत्र की राजनीतिक जटिलता को सुलझाना तो दूर,इसको समझना भी बहुत आसान नहीं है.

सीरिया और इजरायल के बीच 19 जुलाई को हुए समझौते के दौरान जार्डन के विदेश मंत्री अयमान सफादी (बीच में), सीरिया के लिए अमेरिकी दूत थॉमस बैरक (दाएं) और सीरिया के विदेश मंत्री असद अल-शिबानी.
द्रूज कौन हैं?
द्रूज लगभग दस लाख लोगों का एक अरब धार्मिक समूह है. यह मुख्य तौर पर सीरिया, लेबनान और इजरायल में रहते हैं. ग्यारहवीं शताब्दी में मिस्र में पैदा हुआ यह समूह आंतरिक रूप से दो शाखाओं में विभाजित है. यह इस्लाम की एक ऐसी शाखा का पालन करता है जो किसी भी तरह के धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं देता है, चाहे वह धर्म में शामिल होने का हो या उससे अलग होने की और न ही किसी भी अंतरजातीय विवाह की इजाजत देता है. सीरिया में द्रूज समुदाय देश के दक्षिण में इजरायल के कब्जे वाले गोलान हाइट्स के निकट तीन मुख्य प्रांतों में केंद्रित है. दक्षिणी सीरिया में, जहां सूवैदा प्रांत में द्रूज बहुसंख्यक हैं, यह समुदाय सीरिया के दस साल के गृहयुद्ध के दौरान कई बार पूर्व सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के शासन की सेनाओं और इस्लामिक चरमपंथी समूहों के बीच पिस चुका है.
सनद रहे कि गोलान हाइट्स में 20,000 से अधिक द्रूज रहते हैं, जो एक रणनीतिक पठार है. इसे इजरायल ने 1967 में छह दिवसीय युद्ध के दौरान सीरिया से छीन लिया था. इजरायल ने गोलान हाइट्स को औपचारिक रूप से 1981 में अपने में शामिल कर लिया था. द्रूज इस क्षेत्र को करीब 25 हजार यहूदी प्रवासियों के साथ साझा करते हैं, जो 30 से अधिक बस्तियों में फैले हुए हैं. गोलान में रहने वाले ज्यादातर द्रूज लोग खुद को सीरियाई मानते हैं. जब इजरायल ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने इजरायली नागरिकता की पेशकश ठुकरा दी. जिन लोगों ने इनकार किया, उन्हें इजरायली निवास कार्ड तो दिए गए, लेकिन उन्हें इजरायली नागरिक नहीं माना गया.
सीरियाई द्रूज के विपरीत इजरायल की सीमाओं के भीतर रहने वाले द्रूज बड़े पैमाने पर इजरायल के प्रति वफादार हैं, जिनमें से कुछ इजरायली सेना में उच्च पदों पर कार्यरत भी हैं. इजरायल के साथ उनकी पहचान का एक हिस्सा इस भावना से उत्पन्न होता है कि यहूदी और द्रूज दोनों ही इस क्षेत्र में मुसलमानों द्वारा सताए गए अल्पसंख्यक हैं. इजरायली द्रूज अब भी महसूस करते हैं कि किसी भी अन्य समुदाय या देश से जुड़ने की तुलना में उन्हें इजरायल से जुड़े रहने पर कहीं अधिक लाभ होगा. इस गठबंधन की आधारशिला द्रूज समुदाय की सुरक्षा है.'

इजरायल के गोलन हाइट्स में सीरिया के द्रूज समुदाय के समर्थन में प्रदर्शन करती लड़कियां.
हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी द्रूज इजरायल में पूर्णतः संतुष्ट ही हैं. 2018 में इजरायल के 'राष्ट्र-राज्य कानून' के पारित होने ने द्रूज समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया. साल 2018 के कानून ने इजरायल को यहूदी लोगों के राष्ट्र-राज्य के रूप में तो परिभाषित किया, लेकिन देश की लोकतांत्रिक विशेषताओं को परिभाषित नहीं किया गया. आलोचकों का मानना है कि इस कानून ने गैर-यहूदी अल्पसंख्यकों, जिसमे द्रूज भी शामिल हैं, के खिलाफ और अधिक भेदभाव को बढ़ावा दिया है.
इजरायल चाहता क्या है
2024 में असद सरकार के अचानक पतन के बाद से इजरायल सीरिया के अल्पसंख्यकों के साथ गठबंधन बनाने के लिए अपनी उत्तरी सीमा के पास रहने वाले द्रूज समुदाय से लगातार संपर्क कर रहा है. उसने सीरिया में सैन्य ठिकानों और सरकारी बलों पर हमला करते हुए खुद को सीरिया में कुर्दों, द्रूज और अलवाइट लोगों सहित अल्पसंख्यकों के क्षेत्रीय रक्षक के रूप में स्थापित किया है. सनद रहे कि इस साल मई में हुई सांप्रदायिक झड़पों के दौरान इजरायल ने दमिश्क में राष्ट्रपति भवन के पास यह कहते हुए कई हमले किए कि यह द्रूज पर हमलों के खिलाफ इजरायल की ओर से सीरिया के नए निजाम के लिए एक कड़ी चेतावनी है. हालांकि, सीरिया और लेबनान के कुछ द्रूज नेताओं ने इजरायल पर इलाके में अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाने के लिए सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया है.
सूवैदा सीरिया में सबसे बड़ी द्रूज आबादी का क्षेत्र है, जिनमें से कई को अल-शरा शासन के तहत उत्पीड़न का डर सता रहा है. आलोचकों ने सीरिया की अल शरा सरकार पर द्रूज को 'शुद्ध इस्लाम' में जबरन शामिल कराने और उनकी जीवन शैली को खत्म करने का आरोप लगाया है. दोनों के बीच इसी साल अप्रैल में ही हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं. इसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे. हालांकि मई में एक युद्धविराम समझौता हुआ था. इससे द्रूज लड़ाकों को अब तक प्रांत में सुरक्षा नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति मिली हुई थी. सूवैदा पर नियंत्रण व्यापक सीरियाई संघर्ष में न केवल एक महत्वपूर्ण बिंदु बना हुआ है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है.

इजरायल के हमले में छतिग्रस्त हुए रक्षा मंत्रालय की इमारत के सामने अपना झंडा फहराते सीरियाई सैनिक.
कैसे हुई लड़ाई की शुरुआत
दक्षिणी सीरिया के सूवैदा प्रांत में ड्रूज अल्पसंख्यक और बेदुईन जनजातियों के बीच 13 जुलाई, 2025 के आसपास संघर्ष भड़क उठा, जब दमिश्क जाने वाले राजमार्ग पर एक ड्रूज व्यापारी का अपहरण कर लिया गया. इस घटना ने द्रूज सैन्य गुटों और बेदुईन लड़ाकों के बीच प्रतिशोधी हिंसा का चक्र शुरू कर दिया, जिससे द्रूज़-बहुल क्षेत्र में लंबे समय से चला आ रहा तनाव तेजी से बढ़ गया.
सूवैदा शहर में केंद्रित इस संघर्ष में भारी हताहत हुए, जिसमे 300 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें आम नागरिक और लड़ाके शामिल थे. सीरियाई सरकार द्वारा व्यवस्था बहाल करने के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती ने हिंसा को और बढ़ा दिया, और द्रूज लड़ाकों और सीरियाई सैनिकों के भी टकराव हुआ क्योंकि द्रूज समुदाय सीरिया की नई सरकार पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करता है. इस दौरान मानवाधिकार उल्लंघनों की खबरें आईं, जिनमें सरकारी बलों द्वारा द्रूज नागरिकों की कथित हत्याएं और द्रूज प्रतीकों का अपमान जैसे सांप्रदायिक कृत्य शामिल थे. इससे अविश्वास और गहरा गया.
16 जुलाई, 2025 को सीरियाई अधिकारियों, शेख यूसुफ जारबो जैसे वरिष्ठ द्रूज नेताओं और अमेरिका, तुर्की और जॉर्डन जैसे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों की बातचीत के बाद एक युद्धविराम की घोषणा की गई. इस समझौते का उद्देश्य शत्रुता को रोकना, सूवैदा से सीरियाई सरकारी बलों को वापस बुलाना और द्रूज गुटों को क्षेत्र में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने की अनुमति देना था. हालांकि यह युद्धविराम नाजुक था, क्योंकि 15 जुलाई को घोषित पिछला युद्धविराम समझौता कुछ ही घंटों में टूट गया था. शेख हिकमत अल-हजरी ने नए समझौते को अस्वीकार करते हुए सरकारी बलों के खिलाफ प्रतिरोध जारी रखने का आह्वान किया था. इसके बावजूद 18 जुलाई को एक अलग समझौते ने युद्धविराम को मजबूती दी, जिसमें सूवैदा में 48 घंटों के लिए सीमित सीरियाई सुरक्षा बलों की तैनाती की अनुमति दी गई. इसे इजरायल ने अनिच्छा से स्वीकार किया. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और राजदूत टॉम बैरक ने हिंसा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए संवाद को बढ़ावा दिया. हाल की खबरों में यह संकेत मिला है कि लड़ाई काफी हद तक थम गई है और सीरियाई बलों ने आंशिक रूप से वापसी कर ली है और द्रूज लड़कों को सूवैदा को सुरक्षित करने का काम सौंप दिया गया है.

सुवैदा प्रांत में हथियार लहराता एक बेदुईन लड़ाका.
कैसी है सीरिया के लिए आगे की राह
इस संघर्ष और युद्धविराम के परिणाम बहुआयामी है. इस हिंसा ने अल शरा की सरकार के तहत तत्कालीन सीरिया राज्य की नाजुकता को उजागर किया है, जो एक दशक से अधिक के गृहयुद्ध के बाद विविध नस्लीय और धार्मिक समूहों को एकजुट करने में संघर्ष कर रहा है. द्रूज -बेदुईन टकराव और इसके बाद सरकारी हस्तक्षेप ने गहरे सांप्रदायिक तनाव को भी रेखांकित किया है, जिसमें द्रूज जैसे अल्पसंख्यक सुन्नी-नेतृत्व वाली प्रशासन में हाशिए पर जाने के डर से ग्रस्त हैं.
सीरिया के नए हुक्मरान अहमद अल शरा को कहीं न कहीं तुर्की, अमरीका और इजरायल का समर्थन प्राप्त था जिसके दम पर वो पूर्व सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब हो पाया. सनद रहे कि ये तीनों ही देश असद की सरकार के धुर विरोधी थे और उसको सत्ता से हटाने पर आमादा थे. परंतु इजरायल के लिए अपने सबसे बड़े शत्रु बशर अल असद को सत्ता से बेदखल करने से भी अधिक ज़रूरी है कि वो सीरिया को अपने पैरों पर ठीक से खड़े होने ही न दे क्योंकि इजरायल यह भली-भांति समझता है कि भले ही अल शरा को सीरिया की गद्दी दिलवाने में इजरायल का योगदान रहा हो और वो स्वयं भी इजरायल से जंग ने करने या उसके विरुद्ध ना जाने की बात कर रहा हो, लेकिन अंत में यह भी एक सच्चाई है कि अल शरा और उसके साथी जिहादी आतंकवादी परिवेश से आते हैं जिनके लिए इजरायल सदा से नंबर वन शत्रु रहा है. इसकी कोई गारंटी नहीं है की वो कब तक अपने इस विचार से खुद को अलग कर पाएंगे. वहीं दूसरी ओर यह भी माना जा रहा है कि इस पूरे प्रसंग में सीरिया की सरकार इजरायल की मंशा को समझ नहीं पाई. दमिश्क का मानना था कि उसे अमेरिका और इजरायल दोनों से अपनी सेनाएं दक्षिण में सूवैदा भेजने की हरी झंडी मिल गई है, जबकि इजरायल ने महीनों तक ऐसा न करने की चेतावनी दी थी. दरअसल सीरिया की अल शर सरकार अमेरिका के इस संदेश से उत्साहित थी कि सीरिया को एक केंद्रीकृत राज्य के रूप में शासित किया जाना चाहिए. परन्तु इजरायल नहीं चाहता है कि सीरिया एक मजबूत और संगठित देश के रूप में खड़ा रहे. एक बात तो तय है कि अल शरा के नेतृत्व में एकीकृत सीरिया का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि इजरायल कब तक सीरिया में हस्तक्षेप करने से खुद को रोकता है.
अस्वीकरण: डा पवन चौरसिया,इंडिया फाउंडेशन में रिसर्च फेलों के तौर पर काम करते हैं और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर लगातार लिखते रहते हैं. इस लेख में दिए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.