गंदगी और बूचड़खानों से पहले क्या भ्रष्टचार दूर करना जरूरी नहीं?

गंदगी और बूचड़खानों से पहले क्या भ्रष्टचार दूर करना जरूरी नहीं?

'नवरात्र शुरु हो गए हैं देखना मीट की दुकानों में भीड़ कम हो जाएगी' समाजवादी पार्टी के नेता का आशय यह था कि हिंदू मीट ज्यादा खाते हैं और अगर योगी आदित्यनाथ सरकार के निशाने पर सिर्फ मुस्लिम समाज है तो बूचड़खाने बंद करने का दांव सही नही होगा. एक बड़े नेता ने कहा यूपी के 'तमाम बूचड़खानों को बंद करना चाहिए, किसी जानवर को मारा नहीं जाना चाहिए, इस्लाम में मीट खाना अनिवार्य नहीं है.' यह तंज था योगी सरकार पर लेकिन शायद  जब ये पिछली सरकार में मंत्री थे, इन्हीं के पास वह महकमा था जो बूचड़खानों के लाइसेंस रिन्यू करता था. कितनों के लाइसेंस बरसों से रिन्यू नहीं हुए थे. अब बताया जा रहा है कि ऊपरी कमाई का यह बड़ा जरिया था. बहरहाल कल ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है कि जो लाइसेंस पेंडिंग हैं, उनको रिन्यू करने के लिए कदम उठाए गए हैं या नहीं?

हालात यह हैं कि बूचड़खानों पर कार्रवाई से मीट विक्रेताओं की हड़ताल जारी है. मीट, मुर्गे, मछली वाले तमाम छोटे बड़े कारोबारी राज्य सरकार की अचानक कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं. आज सरकार में मंत्रीजी से मिलकर गुजारिश की कि जब तक नए सरकारी बूचड़खाने नहीं खुल जाते तब तक पुरानों को काम करने दिया जाए. अब बीजेपी का चुनावी वादा था कि अवैध बूचड़खाने बंद करना, तो सरकार आ गई है और उत्साह हर ओर से दिख रहा है. क्या आदेश देने वाले, क्या अमल करने वाले... ज्यादती ये हो गई कि लाइसेंस वालों पर भी कार्रवाई हो गई. घबराहट में कुछ ने खुद दुकानें बंद कर लीं. कई के लाइसेंस थे लेकिन रिन्यू नहीं हुए थे, कई पीढ़ियों से इसी काम में लगे रहे हैं. वे आय का दूसरा जरिया क्या ढूंढें. कुछ दिनों का नोटिस मिल जाता तो कमाई का इंतजाम कर लेते. तमाम राजनीतिक दल हिमायती बनकर खड़े हो जाते हैं लेकिन इस काम में लगे लोगों को उबारने की कोशिश नहीं की गई. और तो और लाइसेंस रिन्यू नहीं किए तो हालात सामने हैं.

राज्य में 25 लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं. यूपी देश का सबसे  बड़ा मीट निर्यातक है और हमारा देश इस मामले में दुनिया में तीसरे नम्बर पर है. राज्य में बूचड़खानों के आंकड़े साफ नहीं हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी में 41 लाइसेंसी बूचड़खाने हैं. लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने कहा कि 126 हैं जिनमें से 27 के पास एफ्लयूएन्ट  ट्रीटमेन्ट प्लान्ट हैं. यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का कहना है कि 58 हैं. पूरे देश में सरकारी मान्यता प्राप्त 72 हैं जिनमें से 32 यूपी में हैं. और जो नजर में आते हैं वे इनकी संख्या को बहुत ज्यादा बना देते हैं.

इन सबके बीच लाइसेंस पाने की प्रक्रिया और भी पेचीदा है. हरी झंडी के लिए 19 से ज्यादा मंजूरियां लेनी पड़ती हैं. डीएम आफिस, पुलिस, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, फायर सेफ्टी, लेबर डिपार्टमेंट, वैट, एक्साइज, म्युनिसिपल, लोकल पंचायत...फेहरिस्त काफी लम्बी है...

अब सरकार की कार्रवाई ऐसों पर भी हो रही है जिनसे कोई एक चूक हो गई. किसी का सीसीटीवी खराब मिला तो किसी की नाली बंद. अब  इतनी अलग-अलग मंजूरियां लेना सबके बस की बात नहीं है. केवल पैसे वाले या बड़े कारोबारी ही यह कर पाते होंगे. यह सही है कि गंदगी पर भी काबू पाना है, लेकिन क्या सरकार को पहले लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान नहीं बनाना चाहिए था. क्या कुछ दिन का नोटिस दिया जा सकता  था. पैसे के बदले लाइसेंस राज्य में भ्रष्टाचार का बड़ा जरिया था. इस भ्रष्टाचार के खात्मे पर अमल होना चाहिए था. बहरहाल अब कोर्ट में राज्य सरकार को तीन अप्रैल तक जवाब देना है. देखना होगा कि योगी सरकार क्या रास्ता अपनाती है.

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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