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मलाला दिवस: फिर से कोई भारतीय लड़की राधिका यादव न बने

Himanshu Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 13, 2025 21:11 pm IST
    • Published On जुलाई 13, 2025 21:11 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 13, 2025 21:11 pm IST
मलाला दिवस: फिर से कोई भारतीय लड़की राधिका यादव न बने

राधिका और मलाला की कहानियां अलग-अलग देशों की हैं पर पितृसत्तात्मक मानसिकता की राह से होकर ही गुजरती हैं. 
महिलाओं की प्रगति के खिलाफ सामाजिक और हिंसक बाधाएं दुनिया के कई देशों में एक सी हैं.

दुनिया ने शनिवार को 'मलाला दिवस'मनाया, यह मलाला यूसुफजई के शिक्षा और लैंगिक समानता के संघर्ष को सम्मानित करता है. मलाला की कहानी भारतीय लड़कियों को राधिका जैसे मामलों के खिलाफ साहस और शिक्षा के साथ लड़ने की प्रेरणा देती है.

एक थी राधिका, भारत में पितृसत्ता की क्रूरता

हरियाणा की 25 साल की टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई थी. 23 मार्च 2000 को जन्मी राधिका ने ITF डबल्स रैंकिंग में 113वां स्थान हासिल किया. इसके बाद उसने गुरुग्राम में अपनी टेनिस अकादमी शुरू की. 10 जुलाई 2025 को उनके पिता दीपक यादव ने घर की रसोई में खाना बनाते वक्त कथित तौर पर उनकी पीठ में गोलियां दागकर उनकी हत्या कर दी. पुलिस के मुताबिक, दीपक को राधिका की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया सक्रियता से आपत्ति थी. 'बेटी की कमाई खाने वाला' जैसे तानों ने उनकी मानसिकता को और जहरीला बना दिया. अभी तक घटना के बारे में जितनी भी जानकारी प्राप्त हुई है, उससे यही लगता है कि यह घटना भारतीय समाज में गहरी जड़ें जमाए पितृसत्तात्मक सोच की क्रूरता का एक और नमूना है. 

मलाला का साहस और शिक्षा की मशाल

मलाला यूसुफजई का जन्म 12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान के स्वात में हुआ, उन्होंने 11 साल की उम्र से तालिबान के खिलाफ लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठाई. 2012 में स्कूल जाते वक्त तालिबान ने उन पर जानलेवा हमला किया, जिसमें वे सिर में गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हुईं.फिर भी मलाला ने हार नहीं मानी और वैश्विक स्तर पर शिक्षा के लिए संघर्ष किया. 

साल 2014 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला और उनकी आत्मकथा 'आई एम मलाला' ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया. संयुक्त राष्ट्र ने साल 2013 में उनके 16वें जन्मदिन पर 'मलाला दिवस' घोषित किया, जो शिक्षा और लैंगिक समानता के लिए उनके योगदान को सम्मानित करता है. 

मलाला की कहानी राधिका जैसे मामलों को देखते हुए भारतीय लड़कियों के लिए एक प्रेरणा है. 

फलस्तीन के जहाज से सहायता का समर्थन

मलाला ने हाल के वर्षों में फीलस्तीन में शिक्षा और मानवीय सहायता के लिए सक्रियता दिखाई है. जून 2025 में मलाला ने 'फ्रीडम फ्लोटिला' जैसे प्रयासों का समर्थन किया, जिसमें 'मदलीन' नामक जहाज गाजा के लिए रवाना हुआ था, जहाज में किताबें, शैक्षिक सामग्री और चिकित्सा आपूर्ति थी. हालांकि, इजरायली नाकेबंदी के कारण जहाज को अंतरराष्ट्रीय जल में रोक लिया गया, जिसकी मलाला ने सार्वजनिक रूप से निंदा की.इस जहाज पर सवार लोगों में जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग भी शामिल थीं.

उन्होंने विश्व नेताओं से गाजा में निर्बाध सहायता की मांग की. उनके इस कदम ने शिक्षा के साथ-साथ मानवता और न्याय के लिए उनके समर्पण को दर्शाया. मलाला की यह पहल वैश्विक स्तर पर शिक्षा के लिए मलाला की प्रतिबद्धता को दर्शाती है. 

राधिका और मलाला से समाज ने क्या सीखा!'

राधिका और मलाला की कहानियां अलग-अलग देशों की हैं पर पितृसत्तात्मक मानसिकता की राह से होकर ही गुजरती हैं. 
महिलाओं की प्रगति के खिलाफ सामाजिक और हिंसक बाधाएं दुनिया के कई देशों में एक सी हैं.राधिका ने खेल के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, लेकिन पितृसत्तात्मक मानसिकता ने उनके सपनों को कुचल दिया. दूसरी ओर मलाला ने तालिबान की गोली का सामना किया और वैश्विक मंच पर शिक्षा की वकालत की. मलाला का संदेश 'एक किताब,एक कलम दुनिया बदल सकती है', भारतीय लड़कियों को प्रेरित करता है कि वे राधिका जैसी त्रासदियों के बावजूद अपने अधिकारों के लिए लड़ें. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, 2020-21 के अनुसार भारत में 24 फीसदी ग्रामीण युवा लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं, मलाला की कहानी इन लड़कियों को सिखाती है कि साहस और शिक्षा ही सामाजिक बदलाव का आधार है.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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