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This Article is From Apr 05, 2022

महंगाई एक सच्चाई, नौकरी एक सपना, ऐसे कॉपी पेस्ट से बनेगा भारत विश्व गुरु?

  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 05, 2022 23:30 pm IST
    • Published On अप्रैल 05, 2022 23:30 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 05, 2022 23:30 pm IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार, नौकरी का सपना क्या होता है, हम इस सवाल को अपने नज़रिए से नहीं देख सकते. हर व्यक्ति अपना सपना देखता है. जो सेना में जवान बनने का सपना देखते हैं आप उन्हें नहीं कह सकते कि पकौड़ा बेचने का सपना देखो. कोई इंजीनियर बनने का सपना देखता है तो कोई नेता बनने का. राजस्थान के सीकर के सुरेश भींचर का सपना है सेना में भर्ती होना. इसके लिए वे हर दिन दौड़ते हैं. कोविड के कारण भारतीय सेना में दो साल से भर्ती स्थगित है. भर्ती शुरू करने की मांग को लेकर सुरेश भींचर राजस्थान के सीकर से दिल्ली तक दौड़ कर आ गए. इस गर्मी में तीन सौ किलोमीटर दौड़ कर दिल्ली आने का इरादा कोई सामान्य बात नहीं है. 29 मार्च की रात नौ बजे से दौड़ शुरू की और दो अप्रैल की शाम छह बजे दिल्ली आ गए. देश के लाखों नौजवान इसी तरह अपने अपने गांवों में सेना में भर्ती के लिए दौड़ते रहते हैं. इनका सपना है सेना में भर्ती होना. और यह सपना इतना हल्का होता तो यह नौजवान 300 किमी की दौड़ नहीं लगाता. क्या आप मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र से कह सकते हैं कि डाक्टर की सीट कम है डाक्टर बनने का सपना मत देखो, तो फिर इन नौजवानों से भी नहीं कह सकते कि सरकार कितने लोगों को भर्ती कर सकती है, कुछ और करो. 
28 मार्च को राज्य सभा में दीपेंद्र हुड्डा के पूछे सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि सेना में गैर अधिकारी वर्ग के 1 लाख से अधिक पद खाली हैं. नौ सेना में 11 हज़ार से अधिक पद खाली हैं. सेना में अफसरों के भी 8000 से अधिक पद खाली हैं. भर्ती के लिए होने वाली रैलियों का नंबर बता रहा है कि सेना में भर्ती धीरे धीरे कम होती जा रही है. 

कब कितनी भर्ती रैली----
2017-18 - 106
2018-19 - 92
2019-20 - 95
2020-21 - 47
2021-22 - 04 

सरकार कहती है कि रैलियां रद्द नहीं हुई हैं बल्कि कोविड के कारण स्थगित की गई हैं. दो साल से सेना में भर्ती स्थगित होने का नतीजा यह हुआ है कि लाखों छात्र ओवरएज हो गए हैं. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में लिखा है कि राजस्थान के सीकर और झुंझुनूं में तैयारी करने वाले एक लाख से अधिक छात्र ओवर एज हो गए. अब इन्हें मौका नहीं मिलेगा तो इनके सपने बर्बाद हो जाएंगे.

इन्हीं सब मांगों को लेकर सेना में भर्ती की तैयारी करने वाले छात्र जंतर मंतर पर जमा हुए हैं. छात्रों की मांग है कि भर्ती फिर से शुरू हो और कोविड के कारण जो छात्र ओवर एज हुए हैं उन्हें फिर से मौका मिले. यूपी चुनाव के समय भी यह मुद्दा उठा था तब बीजेपी के सांसद संजीव बलियान ने रक्षा मंत्री को पत्र लिखा था कि भर्ती शुरू हो और उम्र की समस्या का समाधान किया जाए. कोविड के दौरान लाखों लोगों को जुटाकर रैलियां होती रहीं मगर भारतीय सेना भर्ती नहीं कर सकी, क्या यह कम गंभीर बात है कि भर्ती स्थगित होने से इन नौजवानों की उम्र सीमा समाप्त हो गई. क्या ये नौजवानों की ग़लती थी, जिस तरह से चुनाव हुए क्या दूसरा कोई विकल्प ही नहीं बचा था कि भर्ती होती

सवाल यह भी है कि क्या सरकार के पास आर्थिक क्षमता बची है कि वह इन भर्तियों को पूरी करे? आखिर क्यों भर्तियों को लेकर इस तरह के हालात बने हुए हैं. अभी भी कई भर्तियां ऐसी हैं जिनकी सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है मगर महीनों से नियुक्ति पत्र नहीं मिल रहे हैं. पिछले साल इन्हीं महीनों में जब पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने लगे थे तब महंगाई के सपोर्टरों ने मोर्चा संभाल लिया था. उन्होंने महंगाई के पक्ष में एक से एक तर्क गढ़े और लोगों ने यकीन भी किया. बेरोजगार युवाओं को महंगाई के सपोर्टरों के पास जाना चाहिए, उनसे समझ लेने के बाद वे कभी रोज़गार की मांग के लिए आंदोलन नहीं करेंगे.

देखते देखते फिर से भारत के कई राज्यों में पेट्रोल 115 रुपये लीटर और 117 रुपये लीटर से अधिक मिल रहा है. आंध्र के चित्तूर में पेट्रोल 121 रुपये 14 पैसे लीटर है. आज भी 80 पैसे महंगा हो गया. सीएनजी भी पिछले छह महीने में 37 प्रतिशत महंगी हो चुकी है. सत्तर रुपये लीटर होने पर आपा खो देने वाली जनता अब उस अतीत से दूर निकल आई है. यह वो जनता है जो अंतर्राष्ट्रीय कारणों को घरेलु मुद्दों से ज़्यादा समझती है. इसलिए महंगाई को लेकर उसमें धीरज आ गया है. जब भी पेट्रोल महंगा होता है, जनता खुद को ग्लोबल लीडर समझने लगती है. पिछले एक साल से भारत की जनता पेट्रोल के बढ़े हुए दाम दिए जा रही है. केरल के अखबार मनोरमा की वेबसाइट पर एक न्यूज़ है.

इसके अनुसार जून 2020 में श्रीलंका में पेट्रोल भारतीय मुद्रा में 66 रुपये 21 पैसे लीटर था और तब भारत में 87  रुपया प्रति लीटर पेट्रोल मिल रहा था. ये मुंबई की क़ीमत है जो सबसे ज़्यादा रहती है इस साल मार्च में वहां पेट्रोल 250 रुपी लीटर हो गया,भारतीय रुपये में 63 रुपए लीटर पेट्रोल मिल रहा है जबकि भारत में मुंबई में पेट्रोल 109.98 रुपए प्रति लीटर रहा. 
श्रीलंका की मुद्रा का काफी अवमूल्यन हो चुका है. इसकी मुद्रा रूपी की क्रयशक्ति कमज़ोर हो चुकी है.

श्रीलंका में इस समय वहां की मुद्रा में सेब 1000 रुपी किलो है. लोगों के पास फल और अनाज खरीद कर खाने के लिए पैसे नहीं हैं. भारत भी श्रीलंका की आर्थिक मदद कर रहा है. डेढ़ अरब डॉलर से अधिक की मदद दी जा रही है. रसोई गैस भी महंगी होती जा रही है. उज्ज्वला योजना के करीब 8 करोड़ हितग्राही हैं. 28 मार्च को राज्यसभा में सरकार ने बताया कि उज्ज्वला योजना में 2020-21 में तीन या उससे अधिक बार सिलेंडर भराने वालों की संख्या करीब 6 करोड़ है. 66 लाख हितग्राही एक ही बार सिलेंडर भरा सके 2020-21 में. अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 के बीच एक बार सिलेंडर भराने वालों की संख्या डबल हो जाती है.2020-21 के 66 लाख की तुलना में 2021-22 के 11 महीनों में एक करोड़ 80 लाख लोग एक ही बार सिलेंडर भरा सके. 

2020-21 में उज्ज्वला योजना के तहत तीन सिलेंडर भराने वालों की संख्या करीब छह करोड़ थी लेकिन 2021-22 के 11 महीनों में घट कर 4.6 करोड़ हो गई है. ज़ाहिर है महंगाई का असर पड़ रहा है. सच यही है कि लाखों लोग सिलेंडर होते हुए भी लकड़ी बिन कर ला रहे हैं ताकि चूल्हा जला कर खाना पका सकें. सच यह भी है कि भारत में श्रीलंका जैसे हालात नहीं हैं.जनता को लगता है कि महंगाई का विरोध करने का काम केवल विपक्ष का है. विपक्ष को लगता है कि विरोध करते हैं तो जनता साथ नहीं देती. महंगाई को लेकर विपक्ष के प्रदर्शनों में उनके नेता कार्यकर्ता तो आते हैं मगर जनता नहीं आती. विपक्ष ने राज्य सभा में चर्चा का नोटिस दिया था जिसे सभापति ने खारिज कर दिया. सदन के भीतर चर्चा नहीं हो रही है और सड़क पर गर्मी काफी है.  हिमांशु शेखर ने बीजेपी के सांसदों और एनडीए के नेताओं से बात की. के सी त्यागी ने कहा कि जिन लोगों ने हमें वोट दिया है वो भी परेशान हैं सरकार को महंगाई वापस लेनी चाहिए. पिछले साल जब महंगाई चरम पर थी तब कई शहरों में महंगाई के सपोर्टर निकल कर आए थे.

इस नई कैटगरी ने जम कर महंगाई का विरोध करने वालों का मुक़ाबला किया. आगरा से नसीम ने फिर से महंगाई के सपोर्टरों को पकड़ा, महंगाई के समर्थन में उनकी धार कम नहीं हुई है. आपको एक और मज़ेदार किस्सा बताता हूं. भारत को विश्व गुरु बनाने की तैयारी किस लेवल पर चल रही है. मतलब ठीक है कि हमारे यहां की यूनिवर्सिटी की हालत खराब होने के कारण माता पिता अपने बच्चे को पैसे से या स्कालरशिप से विदेशी यूनिवर्सिटी में भेजने के लिए मजबूर हैं ताकि यहां से छुटकारा मिले. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें भारत के विश्व गुरु होने में संदेह है, बस वे विश्व गुरु बनने का इंतज़ार नहीं कर पा रहे हैं.

हमने एक वीडियो मिशिगन यूनिवर्सिटी की वेबसाइट से ली है. इससे पता चलता है कि इस यूनिवर्सिटी का बुनियादी ढांचा कितना शानदार है. लेकिन जिस भी भारतीय छात्र ने यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन कालेज आफ लिटरेचर साइंसेस एंड आर्ट में लाखों रुपये देकर एडमिशन लिया होगा,समझिए उनकी जेब कट गई है. DTF का आरोप है कि इसी यूनिवर्सिटी की वेबसाइट से काफी सारा हिस्सा उठाकर UGC की एक्सपर्ट कमेटी ने UGC की ड्राफ्ट रिपोर्ट में डाल दिया है. जब वहां का कोर्स यहां आ ही रहा है तो फिर वहां जाने की ज़रूरत क्या है. जब भारत में आज की तरह कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी तब 1817 में इसकी स्थापना हो चुकी थी. इस यूनिवर्सिटी से कई बड़े कलाकार और फुटबाल के खिलाड़ी निकले हैं. यह यूनिवर्सिटी दो सौ साल से अधिक पुरानी है. इस दौरान यूनिवर्सिटी ने  कितनी मेहनत से अपने कोर्स बनाए होंगे, नंबर सिस्टम विकसित किया होगा. उसी तरह 1885 में बनी यूनिवर्सिटी आफ एरिज़ोना की साइट से भी कथित रूप से कुछ हिस्सा उड़ा लिया गया है. इन दोनों यूनिवर्सिटी में अगर कोई भारतीय छात्र एडमिशन लेने गया है तो मेरी अपील है कि वापस इंडिया आ जाए.  

UGC ने अपनी वेबसाइट पर नए पाठ्यक्रम का ड्राफ्ट पेश किया है और जनता से फीडबैक मांगा है. फीडबैक पांच सौ शब्दों में ही देना है. UGC की वेबसाइट पर मौजूद ड्राफ्ट का नाम है Curricular Framework and Credit System for the Four-Year Undergraduate Programme'. इस पाठ्यक्रम को पूरे देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लागू किया जाना है. अब इसे बनाने वाली एक्सपर्ट कमेटी का नाम वेबसाइट पर हमें नहीं मिला. हम उन लोगों का नाम जानना चाहते थे जिनकी बनाई ड्राफ्ट रिपोर्ट पर नकल के आरोप लगे हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के डेमोक्रेटिक टीचर्स (फेडरेशन) फ्रन्ट ने अपने अध्ययन में पाया है कि UGC के इस ड्राफ्ट में कई पैराग्राफ ऐसे हैं जो अमरीकी विश्व विद्यालय से हू ब हू उड़ा लिए गए हैं आ एक दो शब्दों को बदल कर पेश कर दिया गया है. उदाहरण के लिए यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन की वेबसाइट पर लिखा है, जिसे मैं पढ़ रहा हूं. इसमें Typify की जगह characterise कर दिया है, expected की जगह required कर दिया है.

इससे पता चलता है कि एक्सपर्ट कमेटी ने मेहनत तो की है और उन्हें अंग्रेज़ी तो आती ही है. वर्ना दो दो शब्दों को बदलना आसान नहीं. हर कोई मेरी तरह अंग्रेज़ी और मैथ्स में कमज़ोर नहीं होता. UGC को खुद भी प्रेस कांफ्रेंस कर इन बातों पर सफाई दे देनी चाहिए थी ताकि कौन एक्सपर्ट हैं उससे पर्दा उठ जाता और हम भी उनके  फेसबुक और इंस्टा अकाउंट पर जाकर चेक कर लेते कि उनकी आध्यात्मिक और अकादमिक गुणवत्ता कैसी है. पहले  हम UGC की साइट पर लिखा हिस्सा पढ़ेंगे और फिर मिशिगन की साइट पर लिखा हिस्सा पढ़ेंगे. आप देखेंगे कि एकाध शब्दों को अलग से जोड़ कर पूरा का पूरा पैराग्राफ मिशिगन यूनिवर्सिटी से उठा लिया गया है.

प्राइम टाइम के इस अंक को यू ट्यूब में भी जाकर देख सकते हैं तब आप एक बार फिर से देख सकते हैं कि यह कितना अच्छा काम हुआ है. अगर एक्सपर्ट कमेटी 600 साल पुरानी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की पूरी वेबसाइट ही उठाकर किसी भारतीय यूनिवर्सिटी की वेबसाइट में चेंप देती तो हम चंद घंटे में ही गली गली में हड़बड़ हड़बड़ हार्वर्ड खोल देते.  वैसे UGC रिसर्च पेपर में चोरी की सामग्री इस्तेमाल करने को गलत मानती है. इसके लिए एक एक्ट है जिसका नाम है UGC (Promotion of Academic Integrity and Prevention of Plagiarism in Higher Educational Institutions) Regulations, 2018, इसके बाद भी एक्सपर्ट कमेटी ने ऐसा किया है तो गलत है. सारे एक्सपर्ट को आकर सफाई देनी चाहिए, जब भी सफाई देंगे हम उनका पक्ष ज़रूर चलाएंगे. हिन्दू अखबार में इससे संबंधित रिपोर्ट छपी है उसमें सचिव रजनीश जैन का बयान छपा है कि कुछ कमियां हो सकती हैं और यह चिन्ता की बात है. बस इतना ही. इसके आगे कुछ नहीं. हमने नई शिक्षा नीति के दस्तावेज़ को पलट कर देखा कि वहां भारतीय शिक्षा और शिक्षा में भारतीयता के बारे में क्या कहा गया है. हिन्दी में जो दस्तावेज़ हैं उसी का कुछ हिस्सा पढ़ने जा रहा हूं. इस हिन्दी को आप आसानी से समझ सकते हैं.

भारत की वहनीय लागत पर उच्चर शिक्षा प्रदान करने वाले वैश्विक अध्ययन के गंतव्य के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे इसे विश्व गुरु के रूप में अपनी भूमिका को बहाल करने में मदद मिलेगी. प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में यह नीति तैयार की गई है. ऐसा नहीं है कि नई शिक्षा नीति में बाहर के देशों से नए विचारों के ग्रहण पर प्रतिबंध हैं लेकिन ऐसा भी नहीं लिखा है कि नई नीति बनाते समय यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन और एरिज़ोना की वेबसाइट से हम लोग माल उड़ा लेंगे और यहां छाप देंगे. अगर वहां से कुछ ले भी लिया तो कम से कम उसका ज़िक्र खुद कर देना चाहिए कि यह पंक्ति या अवधारणा दो सौ साल पुरानी मिशिगन यूनिवर्सिटी से ली गई है. 

इसी दो अप्रैल को गुजरात के अखबार दिव्य भास्कर ने एक रिपोर्ट छापी कि गुजरात के 11 विश्व विद्यालयों के वाइस चांसलर UGC के नियमों के अनुसार इस पद की पात्रता ही नहीं रखते हैं.  हम इसे सिर्फ एक सूचना के तौर पर यहां रख रहे हैं कि ऐसा छपा है. रिपोर्ट में बताए गए आधार के बारे में हमारी कोई राय नहीं है.लेकिन इसी गुजरात की सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के मामले का ज़िक्र कर सकते हैं जिनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है. 
इस विश्वविद्लाय की बुनियाद सरदार पटेल के जीवन काल में ही रखी गई थी. चार मार्च के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि जब इसके वाइस चांसलर शिरीष कुलकर्णी को तीन साल का सेवा विस्तार दिया गया तब सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया. कहा कि उनकी नियुक्ति UGC के नियमों के खिलाफ हुई है.

वाइस चांसलर के खिलाफ याचिका दायर करने वाले गंभीर्धन गढ़वी का आरोप था कि सर्च कमेटी ने सेवा शर्तों में बदलाव कर दिया ताकि कुलकर्णी की नियुक्ति इस पद पर हो सके. कोर्ट का मानना था कि वाइस चासंलर बनने से पहले प्रोफेसर के तौर पर दस साल का पढ़ाने का अनुभव होना चाहिए जो कि कुलकर्णी का नहीं है. यही नहीं उनकी नियुक्ति UGC के नियमों के अनुसार सर्च कमेटी से नहीं हुई है जो कि अनिवार्य है. कोर्ट ने लिखा है कि सर्च कमेटी  में यूजीसी के चेयरपर्सन होते हैं या वो उनके द्वारा नामित व्यक्ति . सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस बात को लेकर नाराज़गी जताई कि गुजरात सरकार ने वाइस चांसलर की नियुक्ति में  UGC के नियमों का पालन नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद गुजरात के 16 राज्य विश्वविद्लायों के वाइस चांसलर की नियुक्ति पर सवाल उठ गए हैं. क्योंकि उनकी नियुक्ति तो इन्हीं नियमों के तहत हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि UGC ने  माननीय राज्यपाल से अनुरोध किया  था कि गुजरात में सभी वाइस चांसलरों की नियुक्ति UGC के तय नियमों के अनुसार होनी चाहिए. 

सरदार पटेल के नाम पर यूनिवर्सिटी है और उसके वाइस चांसलर की नियुक्ति में नैतिकताओं की परवाह नहीं की जाती है. क्या इस यूनिवर्सिटी की कुर्सी पर बैठकर सरदार पटेल की मर्यादाओं का ख्याल नहीं आता होगा. इस यूनिवर्सिटी के लिए इलाके के किसानों ने पांच सौ एकड़ ज़मीन दी थी इसलिए नहीं कि कोई सत्ता से हाथ मिलाकर बिना पात्रता के वाइस चांसलर बन जाए.शिरीष  कुलकर्णी एक कार्यकाल वाइस चांसलर के तौर पर पूरा कर चुके थे जब मामला कोर्ट में पहुंचा तब तक उनका कार्यकाल खत्म होने वाला था इसलिए नियुक्ति रद्द नहीं की गई लेकिन जब फिर से तीन साल का सेवा विस्तार दिया गया तब याचिकाकर्ता ने इसे दोबारा से चुनौती दी और  शिरीष कुलकर्णी की नियुक्ति रद्द हुई. 

22 मार्च के इंडियन एक्सप्रेस की यह खबर है. गुजरात विद्यापीठ का मामला भी सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के जैसा है. 25 नंवबर 2021 को UGC ने 554 वीं बैंठक में तत्कालीन चेयरमैन प्रो धीरेंद्र पाल सिंह ने आदेश दिया था कि गुजरात विद्यापीठ के वाइस चांसलर डॉ खिमानी को तत्काल पद से हटा दिया जाए लेकिन उसके तीन महीने बाद गुजरात हाई कोर्ट का फैसला आता है कि 5 अप्रैल को नोटिस का जवाब आने तक वाइस चांसलर को हटाने के लिए सख्त कदम न उठाए. UGC ने अपनी कमेटी की जांच में पाया था कि डॉ खिमानी की नियुक्ति में प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ है. कई सारी कमियां पाई गई हैं. गुजरात विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने की थी 1920 में.  

राजनीतिक पसंद से नियुक्ति अलग मामला है अक्सर इसका बचाव कर दिया जाता है कि सारी सरकारें करती हैं लेकिन वाइस चांसलर बनने की पात्रता न हो, बगैर नियमों के पालन के ही वाइस चांसलर बना दिया जा रहा है यह ठीक नहीं है. मैं जानता हूं कि भारत के मिडिल क्लास को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता है लेकिन मुझे तो उन्हीं बातों से फर्क पड़ता है जिनसे आपको फर्क नहीं पड़ता है. आज इन्हीं सब हरकतों के कारण लोग खेत बेचकर दूसरे राज्य में बच्चों को भेज रहे हैं और वहां से दूसरे देश में भेज रहे हैं. क्या आप भी इस राय के हैं कि चुनावी घोषणापत्र की कानूनी मान्यता हो. उनमें किए गए वादों के प्रति जवाबदेही हो. राजद सांसद मनोज झा ने इस बारे में राज्य सभा में अपनी बात रखी है.

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