विज्ञापन
Story ProgressBack

जीत से पहले कोई विनर नहीं होता, न हार से पहले कोई लूजर !

Ashwini kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    June 30, 2024 12:06 IST
    • Published On June 30, 2024 11:04 IST
    • Last Updated On June 30, 2024 11:04 IST

29 जून शनिवार की सुबह। 6 बजने को थे। पड़ोस वाले कर्नल साहब के घर के दरवाजे से 15 कदम दूर लॉन में खड़ा हो गया। इस उम्मीद में कि वे बाहर निकलने ही वाले होंगे। हम 30 से 45 मिनट मॉर्निंग वॉक करेंगे और साथ में थोड़ी बहुत देश-दुनिया की बातें। 5-7 मिनट बीत गए। सोचने लगा। कभी भी 2 मिनट से अधिक इंतजार नहीं कराया। कर्नल साहब अब तक बाहर आए क्यों नहीं? तभी मोबाइल में देखा, तो रात 10 बजकर 30 मिनट का ही उनका मैसेज था। सुबह देर तक सोऊंगा। 29 तारीख की रात ‘कयामत की रात' है। बारबाडोस में बारिश का भी अनुमान है। मैच लंबा खिंचा, तो देर रात तक जागना होगा। पता नहीं भारत-साउथ अफ्रीका का फाइनल कितने बजे तक चले।

टीम इंडिया के नाम सब कुर्बान

फौज के तेज-तर्रार अफसर रहे कर्नल साहब आज भी सोसाइटी में हर किसी की मुश्किल में उसके साथ खड़े रहने वाले जिंदादिल इंसान हैं। 76 साल के हो चुके हैं, कई गंभीर मेडिकल परेशानियां हैं। डॉक्टरों ने खाने में परहेज, देर रात तक न जागने, सुबह जरूर टहलने जैसी कई सख्त हिदायतें दे रखी हैं। लेकिन बात जब नीली जर्सी वाली टीम इंडिया की हो, तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे अपने सारे रूटीन भंग करेंगे। जागेंगे भी और जागते हुए वह सबकुछ खाए और ‘पिएंगे', जिनकी सख्त डॉक्टरी मनाही है। 

मेन इन ब्लू से एकाकार

परिवार वाले कहते हैं कि पहले रोकने की कोशिश करते थे, लेकिन तब वे इतने निराश हो जाते थे कि जैसे उनके जीवन में शेष कुछ बचा ही न हो। अब तो टीम इंडिया का कोई भी मैच हो, कभी भी हो, उन्हें कोई नहीं रोकता, कभी नहीं टोकता। और वर्ल्ड कप का फाइनल!  इसे कैसे भी और किसी भी हाल में देखना तो जैसे उनका अधिकार ही नहीं, देश के प्रति कर्तव्य हो। कुछ उसी तरह से जैसे फौज में रहते हुए देश की सुरक्षा की ड्यूटी हुआ करती थी। परिवार वाले तो अब यहां तक कहते हैं कि क्या पता अपनी टीम के साथ एकाकार होकर ही वो गंभीर बीमारियों से लड़ने और जीने की ऊर्जा अपने में संजोए हुए हैं। फिर उनसे उनके जिंदादिल रहने का साधन और जीने की वजह क्यों छीनी जाए? 

29 जून की रात मैच के दरम्यान सोसाइटी के सोशल मीडिया ग्रुप में हर ।0-12 मिनट पर मैच को लेकर आ रहा उनका समानान्तर विश्लेषण मुझे भरोसा दिला रहा था कि कैसे मैच के उतार-चढ़ाव वाले इन पलों में उनकी धमनियों में बहता रक्त शुद्धिकृत हो रहा होगा। उनकी जीवन अवधि को बढ़ा रहा होगा। और अंतत: अपनी बीमारियों पर उन्हें विजयी बना रहा होगा। 

जीत का जयघोष

30 जून की सुबह। एक तो रविवार का दिन और ऊपर से 29 तारीख की रात का रतजगा। तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि कर्नल साहब मॉर्निंग वॉक पर निकलेंगे। 6 बजे के आसपास नींद खुली तो देखा 3 मिस्ड कॉल। पलटकर फोन किया तो बस 2 ही शब्द बोले। नीचे आओ। बुलाने के अंदाज में आग्रह नहीं आदेश था। एक फौजी वाली कड़क थी। और सबसे बढ़कर मानो कि किसी जंग को फतह करने का जयघोष था।

ब्लू जर्सी वालों को कम मत आंकना

मैं नीचे गया। कर्नल साहब न सोसाइटी के ग्रीन एरिया में वॉक कर रहे थे और न उनका ऐसा कोई इरादा दिख रहा था। वह तो उस महफिल के मुख्य प्रवक्ता थे, जिसे उन्हीं ने बारबाडोस के मैदान पर मिली जीत के उपलक्ष्य में सोसाइटी के मैदान में सजाई थी। मेरी तरफ तपाक से देखा। बिना कहे आंखों से कह गए कि- पिछले कई मौकों पर आखिरी मोर्चे पर चूक गए तो क्या, मेरे देश को कभी हल्के में मत लेना। ब्लू जर्सी वालों पर कभी सवाल ना करना। कुछ ऐसे कि जैसे ये देश हम सबसे ‘कुछ अधिक' उनका हो। 

बारबाडोस में विश्वविजय का धर्म और मर्म

क्रिकेट के कमंटेटर और एक्सपर्ट्स खेल की बारीकियों समझाते हैं। अनुमान लगाते और बताते हैं। कर्नल साहब क्रिकेट का धर्म और मर्म समझा रहे थे। बता रहे थे कि अपनी टीम की जीत ने कैसे कभी हार न मानने में छुपे जीत के संदेश को फिर स्थापित किया। बाउंड्री लाइन के आरपार सूर्यकुमार यादव के कैच ने कैसे साबित किया कि असंभव को संभव बनाने का जज्बा हो, तो कायनात भी मदद करती है। विराट कोहली की इनिंग ने कैसे इस ऐतिहासिक तथ्य को स्थापित किया कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि कठिन मंजिल की राह में आप कितनी बार फिसलते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि आप मंजिल पर पहुंचते हैं या नहीं? पूरे टूर्नामेंट में बुमराह की गेंदबाजी ने बताया कि जरूरत पड़े तो अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है। जब निराशा हावी होने लगे, तो एक अकेला भी अपने दम पर हवा का रुख मोड़ सकता है। 

रोहित का रंग में न दिख रहे कुछ खिलाड़ियों को भी लगातार बैक करना कैसे इस बात को प्रमाणित कर गया कि भरोसे में कितनी ताकत होती है। भरोसा ही है जो जीत की बुनियाद रखता है। लक्ष्य तक आपका मार्ग प्रशस्त करता है। वर्ना फाइनल मैच में आखिरी 5 ओवर फेंके जाने से पहले 5% तक गिर चुका भारत की जीत का अनुमान अगले कुछ लम्हों में जीत में तब्दील न होता।

140 करोड़ में जज्बे का संचार

कर्नल साहब जो बोले नहीं, उसे हम सबने समझा। 13 साल बाद विश्व कप जीता। 11 साल बाद कोई ICC ट्रॉफी हिस्से में आई। क्या पता आगे ऐसा कोई लम्हा जी पाऊं या नहीं, लेकिन नहीं भी जिया तो कोई मलाल नहीं। टीम इंडिया ने 140 करोड़ सपनों को सच कर उनमें जज्बे का संचार किया है। करोड़ों नाउम्मीदों को उम्मीद दी है। कभी हार न मानने की सीख दी है। मुश्किल-से-मुश्किल हालात में जूझकर पार पाने का जज्बा दिया है। यह काफी ही नहीं, पूरे देश के लिए सब कुछ है।

अश्विनी कुमार एनडीटीवी में बतौर डिप्टी एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं.  

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
सोशल मीडिया पर ज़्यादा लाइक बटोरने के जुनून के पीछे क्या है?
जीत से पहले कोई विनर नहीं होता, न हार से पहले कोई लूजर !
सॉरी विराट, सॉरी रोहित... भला ऐसे भी कोई अलविदा कहता है!
Next Article
सॉरी विराट, सॉरी रोहित... भला ऐसे भी कोई अलविदा कहता है!
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;