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This Article is From Sep 23, 2015

क्या नेपाल के संविधान से नाखुश है भारत?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 23, 2015 21:36 pm IST
    • Published On सितंबर 23, 2015 21:19 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 23, 2015 21:36 pm IST
सिर्फ मान लेने से या मिलती जुलती धार्मिक परंपराएं होने से कोई दो देश एक नहीं हो जाते। नेपाल को लेकर कई बार सामान्य भारतीयों में ऐसा भ्रम हो जाता है। इस बात के बावजूद आपके एंकर समेत न जाने कितनों के रिश्तेदार नेपाल काम करने गए और वहीं के होकर रह गए। हमारे गांव में जब ज्योतिष हाथ की लकीरों को देखकर झटक देता था कि विदेश यात्रा का योग है ही नहीं है तो हाथ दिखाने वाला मायूस होकर लास्ट ट्राई मारता था। नेपाल भी नहीं जा पायेंगे। काठमांडू, वीरगंज, रक्सौल, आज भी न जाने कितने बिहारियों के लिए लंदन, पेरिस और न्यूयार्क की कसक पूरी करने के ठिकाने हैं।

जब भी हम हिमालय की तरफ देखते हैं, तो भूल जाते हैं कि इसके हिस्सों पर नेपाल का भी हक है। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों को मीटर सेंटीमीटर में रटते रटते याद ही नहीं रहता कि यह भारत में नहीं नेपाल में है। पशुपति नाथ मंदिर हमारे लिए देवानंद और जीनत अमान की फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का लोकेशन भर नहीं है बल्कि वो नेपाल की संस्कृति का हिस्सा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी नवंबर 2014 में नेपाल यात्रा पर गए तो पशुपति नाथ मंदिर में भव्य स्वागत हुआ। वहां उन्होंने 2500 किलो चंदन चढ़ाया था। प्रधानमंत्री ने विजिटर बुक में लिखा था कि जो पशुपति नाथ हैं वो भारत और नेपाल को जोड़ते हैं, मैं प्रार्थना करता हूं कि वे दोनों देशों पर अपनी कृपा रखेंगे।

प्रधानमंत्री ने ठीक ही लिखा कि भारत और नेपाल को पशुपति नाथ जोड़ते हैं लेकिन धार्मिकता के उत्साह में कई लोग इस जुड़ाव के नाम पर जब नेपाल पर दावा करने लगते हैं तब समस्या पैदा हो जाती है। प्रधानमंत्री की यात्रा के नौ महीने बाद उन्हीं की पार्टी के सांसद योगी आदित्यनाथ किस हक से नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला और संविधान सभा को पत्र लिखते हैं कि नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहिए। टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वे 26 जुलाई को काठमांडु में एक समारोह में भी शामिल होकर ऐसी मांग करते हैं।

लेकिन, हिन्दू बहुल राष्ट्र नेपाल ने हिन्दू राष्ट्र का प्रस्ताव ठुकरा दिया। 601 सदस्यों की संविधान सभा में जब हिन्दू राष्ट्र के प्रस्ताव के खिलाफ दो तिहाई सदस्यों ने वोट किया। योगी आदित्यनाथ अब क्या करेंगे मालूम नहीं लेकिन रविवार को लागू हुए संविधान को लेकर भारत को क्या करना चाहिए उसके सामने एक गंभीर संकट खड़ा हो गया है। भारत की प्रतिक्रिया से नेपाल की जनता का एक वर्ग नाराज़ हो गया है। आप जानते हैं मधेसी और जनजाति संविधान के कई प्रावधानों से नाराज़ हैं। ज़्यादातर बिहार के इलाकों से सामाजिक संबंध रखने वाले मधेसियों को लगता है कि नए संविधान में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है और कई अधिकार सीमित कर दिए गए हैं।

एक भी मधेसी प्रतिनिधि ने संविधान के प्रारूप पर दस्तखत नहीं किया और तराई इलाकों में हिंसा भड़क उठी जिसमें चालीस लोगों के मारे जाने की ख़बर आई है। मधेसियों को दिल्ली की तरफ भी देखा और दिल्ली ने भी निराश न करते हुए विदेश सचिव एस जयशंकर को दो दिन के लिए काठमांडू भेज दिया। जयशंकर ने वहां जाकर सभी राजनीतिक दलों से मुलाकात की लेकिन नेपाल ने वही किया जो उसे ठीक लगता है। भारत की बात नहीं मानी। नेपाल के संविधान को लेकर जहां चीन ने गर्मजोशी से स्वागत किया है भारत ने चिन्ता जताई है और कहा है कि इसका दायरा व्यापक होना चाहिए। अखबारों की खबरों के मुताबिक भारत ने नेपाल से सात अहम बदलाव की मांग की है ताकि मधेसियों और जनजातियों की चिन्ता दूर हो सके और नए संविधान को खुले मन से स्वीकार कर सकें। भारत ने कहा है कि ये सुनिश्चित किया जाए कि मधेसियों को उनकी आबादी के हिसाब से संसद में प्रतिनिधित्व मिले।

संविधान की धारा 21 में मधेसियों को यथोचित प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई थी। नए संविधान में यथोचित शब्द हटा दिया गया है। भारत चाहता है कि यह शब्द फिर से जोड़ा जाए।  संविधान की धारा 283 में ये प्रावधान है कि नेपाल के शीर्ष पदों जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, संसद के स्पीकर जैसे बड़े पदों पर केवल नेपालवंशी ही बैठ सकते हैं... इसका मतलब ये है कि जन्म से नेपाल की नागरिकता लेने वाला या फिर प्राकृतिक तौर पर मधेसी बनने वाले नागरिक उच्च पदों पर कभी नहीं पहुंच पाएंगे... भारत ने इसमें भी संशोधन की मांग की है... चौथी मांग यह है कि धारा 11 (6) में प्रावधान है कि विदेशी महिलाओं की नेपाली नागरिक से शादी होने पर  उन्हें नेपाल की नागरिकता के लिए अलग से आवेदन करने की बात है... यह मधेसियों के ख़िलाफ़ है... मधेसी चाहते हैं कि शादी होने पर प्राकृतिक तौर पर नेपाल की नागरिकता देने का प्रावधान होना चाहिए....

यह सही है कि संविधान सभा में एक भी मधेसी या जनजाति प्रतिनिधि ने संविधान के प्रारूप पर साइन नहीं किया है। भारत का कहना है कि संविधान बनने की प्रक्रिया के दौरान भारत समावेशी और सबको प्रतिनिधित्व देने की बात का समर्थन करता रहा है। प्रधानमंत्री के दूत बनकर गए एस जयशंकर ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की लेकिन कुछ नहीं हुआ। संविधान लागू होने पर जब भारत ने कहा कि उसने नोटिस में लिया है तो नेपाल की जनता भड़क गई।

नेपाल के अखबार काठमांडू पोस्ट के अनुसार बुधवार को रत्नराज्य कैंपस के छात्रों ने भारत के ख़िलाफ प्रदर्शन किया है। पोस्टरों पर बैकआफ इं़डिआ लिखा हुआ था। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को ट्वीटर पर करीब एक लाख 80 हज़ार ट्वीट कर लोगों ने #backoffIndia ट्रेंड करा दिया। 10,000 से अधिक ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित करते हुए कहा गया है कि नेपाल के आंतरिक मामलों में दखल न दें। हैशटैग growupmodi भी ट्रेंड करने लगा। कई लोगों ने ट्वीट किया कि उनका गुस्सा भारत की जनता से नहीं है। सरकार के नज़रिये से है। भूकंप के दौरान जब हिन्दुस्तानी मीडिया ने नेपाल को भारत की मदद का हद से ज्यादा गुनगान करना शुरू किया था तब भी इसी तरह का प्रतीकार हुआ था। ट्वीटर पर हैशटैग गो होम इंडियन मीडिया ट्रेंड करने लगा। नवंबर में प्रधानमंत्री ने कहा था कि नेपाल और भारत का संबंध हिमालय और गंगा जितना पुराना है।

काशी में जहां से मैं चुना गया हूं वहां नेपाल के पुरोहित हैं और पशुपति नाथ मंदिर में भारत के पुरोहित हैं। दोनों देश के बीच कितना पारस्परिक संबंध हैं। इसके बाद भी इन प्रदर्शनों से यही लगता है कि नेपाल का नौजवान भारत को धार्मिक संबंधों के नाते नहीं देखता बल्कि खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक के रूप में देखता है। वो भारत की हर दखलंदाज़ी को अतिक्रमण मानता है न कि धार्मिक कर्मकांड। 17 साल बात किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा से कायम हुई नई किस्म की ऐतिहासिकता का नए इम्तहान से गुज़र रही है।

नेपाल की संविधान सभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ज़ोर देकर कहा था कि हमारा काम नेपाल के काम में दंखलंदाज़ी करने का नहीं है बल्कि जो भी रास्ता आप चुनते हैं उसका समर्थन करना है। क्या भारत ने ऐसा किया। क्या भारत ने मीडिया के ज़रिये सात मांगों को जारी कर चूक की है। कहीं ऐसा तो नहीं कि नेपाल को हम कुछ ज्यादा ही धार्मिक परंपराओं के चश्मे से देखने लगते हैं जबकि नेपाल खुद को हिन्दू राष्ट्र जैसे धार्मिक तमगों से छुटकारा पाकर सेकुलर गणतंत्र की तरह देखना पसंद करता है।
 

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