रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय भारत दौरे पर आने वाले हैं. राष्ट्रपति पुतिन 4-5 दिसंबर को राजकीय दौरे पर नई दिल्ली में होंगे और वे इस दौरान 23वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में शामिल होंगे. पुतिन का यह भारत दौरा दोनों देशों के लिए अपने याराना को और मजबूत करने का मौका होगा, वो संबंध जो भारत की आजादी के पहले से ही जुड़ गया था. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में कहा था कि जब भारतीय बच्चों से भारत के सबसे कीमती दोस्त के बारे में पूछा जाता है, तो वे बिना किसी झिझक के रूस का नाम लेते हैं. हमारे विदेशी रिश्तों की शुरुआत से ही, रूस हमारे साथ रहा है जो हर सुख-दुख में हमारे साथ खड़ा रहा है. रूस भारत का हर मौसम का दोस्त है.
भारत और सोवियत संघ ने अप्रैल 1947 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए, जो भारत की स्वतंत्रता से चार महीने पहले की बात है. ऐतिहासिक रूप से ही भारत और सोवियत संघ का संबंध पांच स्तंभों पर टिका हुआ है- रणनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, रक्षा और प्रौद्योगिकी एवं वैचारिकी. चलिए एक-एक कर इनको समझते हैं.
1- रणनीतिक साझेदार
भारत आजादी के बाद ही रणनीतिक रूप से सोवियत संघ का रणनीतिक साझेदार था. क्योंकि, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति दो ध्रुवों में बंट गया था. इस दो धूरी वाली व्यवस्था में भारत ने गुटनिरपेक्षता को अपनी विदेश नीति का दार्शनिक आधार बनाया. हालांकि, शुरुआती दौर में स्टालिन ने इस नीति का विरोध किया. लेकिन बाद के सोवियत संघ के शासकों ने भारत को प्रत्यक्षतः अपना समर्थन दिया. 1960 के दशक में दोनों देशों के चीन के साथ संबंधों के बिगड़ने से वे और करीब आए. सोवियत संघ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनकर उभरा, जिसने गोवा, कश्मीर और बांग्लादेश से संबंधित मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई बार वीटो का उपयोग किया.
भारत ने बदले में 1956 के हंगरी संकट और 1968 के चेकोस्लोवाकिया के दौरान सोवियत रूस के खिलाफ मतदान में हिस्सा न लेने का फैसला किया. 1971 में हस्ताक्षरित शांति, मित्रता और सहयोग संधि साझेदारी के तेज होने का चरमोत्कर्ष थी. इसमें एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रावधान शामिल था जिसमें दोनों पक्ष किसी तीसरे पक्ष को किसी भी सहायता प्रदान करने से परहेज करेंगे जो दूसरे पक्ष के साथ सशस्त्र संघर्ष में संलग्न हो. यदि किसी पक्ष पर ऐसा खतरा उत्पन्न हो, तो उच्च संविदाकार पक्ष तुरंत पारस्परिक परामर्श में प्रवेश करेंगे ताकि ऐसा खतरा दूर किया जा सके और शांति तथा उनके देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त प्रभावी उपाय किए जा सकें. सोवियत सहायता पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में अमेरिका और चीन को बाहर रखने में भी महत्वपूर्ण साबित हुई. सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत की सोवियत रूस के साथ साझेदारी उसकी विदेश नीति का एक फोकल पॉइंट बन गई.
2- आर्थिक संबंध
सोवियत संघ 1991 तक भारत के विकास का सबसे बड़ा विदेशी योगदानकर्ता था. 1960 के दशक में इसने भारत की भारी उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें बिजली, कोयला, खनन, स्टील, तेल और गैस शामिल थे. भिलाई स्टील प्लांट से शुरू करके, सोवियत संघ ने भारत की कुछ सबसे बड़ी उद्योगों की स्थापना में मदद की, जिसमें ओएनजीसी और बीएचईएल शामिल हैं. आर्थिक संबंधों को रुपया-रूबल व्यवस्था द्वारा मजबूती मिली, जिसने भारत को अपनी तब की दुर्लभ विदेशी मुद्रा भंडार को अन्य महत्वपूर्ण जरूरतों पर उपयोग करने की अनुमति दी. 1991 तक, सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था और द्विपक्षीय व्यापार प्रति वर्ष 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था, जो उन वर्षों में बड़ी राशि थी.
1990 के बाद भारत ने अपने अर्थनीति को उदार बनाया जिसके कारण भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विविधता आयी. इसका अर्थ ये कतई नहीं कि रूस का महत्व कम हो गया. 2023 -24 में रूस 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ भारत का 25वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. विशेषकर ऊर्जा क्षेत्र में संबंध मजबूत हुए. भारत अब रूस से पहले से कहीं अधिक तेल खरीदता है. 2022 में मॉस्को पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगने के बाद, रूस ने भारी छूट पर कच्चे तेल बेचने का ऑफर दिया. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और उसने इस मौके का लाभ उठाया.
3- रक्षा सहयोग
रक्षा भारत-यूएसएसआर संबंध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जिसमें भारत की अधिकांश हथियार खरीद सोवियत संघ से आती थी. दिलीप मुखर्जी ने सोवियत रक्षा खरीद को भारत का पक्षधर बनाने के चार कारणों की पहचान की: मूल्य कारक—यूएसएसआर द्वारा भारत को दी जाने वाली कीमतें पश्चिम द्वारा दी जाने वाली कीमतों से कम थीं; सोवियत हथियार विकास प्रक्रिया की विकासात्मक प्रकृति—कई अपग्रेडेड संस्करणों में मौजूदा मॉडलों की विशेषताएं शामिल होती थीं, जिससे उत्पादन लाइनों को पुनर्गठित करना सस्ता हो जाता था; सोवियत संघ भारत की लाइसेंस उत्पादन की मांगों के प्रति सहमत था, जो 1962 के मिग-21 समझौते से शुरू होकर 1983 के मिग-27 ग्राउंड अटैक फाइटर्स और 1980 के टी-72 टैंकों तक चला; और चौथा था सोवियत इच्छा जो बार्टर व्यवस्था को स्वीकार करने की थी जिसमें औद्योगिक उपभोक्ता सामानों जैसी श्रेणियों में निर्यात स्वीकार्य थे.
पश्चिमी देशों की भारत के साथ जुड़ने की अनिच्छा ने भी नई दिल्ली को मॉस्को से दोस्ती के लिए प्रेरित किया. सोवियत संघ द्वारा 1988 में भारत को एक परमाणु-संचालित पनडुब्बी पट्टे पर देना सैन्य आदान-प्रदान में विकसित विश्वास के स्तर के बारे में बहुत कुछ कहता है. रक्षा साझेदारी, भारत-रूस संबंधों की आधारशिला बनी हुई है, और कुछ मंदी के बावजूद सबसे महत्वपूर्ण बनकर उभरी है. SIPRI की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, हालांकि 2017 और 2022 के बीच भारतीय रक्षा आयात में इसकी हिस्सेदारी 62 प्रतिशत से घटकर 45 प्रतिशत हो गई है. रूस मशीन गन बनाने वाली फैक्ट्री के साथ ‘मेक इन इंडिया' कार्यक्रम का लाभ उठाने वाला पहला देश भी है. ‘मेक इन इंडिया' और ‘आत्मनिर्भर भारत' मिशन के माध्यम से, नई दिल्ली अपने रक्षा क्षेत्र में विविधता लाने और सैन्य हार्डवेयर के लिए अपनी आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में काम कर रही है.
4- विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग
इस मोर्चे पर दोनों देश के संबंध 1972 के विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौते पर आधारित हैय विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की गई ताकि गतिविधियों का समन्वय हो सके. एकीकृत दीर्घकालिक सहयोग कार्यक्रम (आईएलटीपी), जो उस समय भारत द्वारा किसी भी देश के साथ प्रवेश किया गया सबसे बड़ा द्विपक्षीय एसएंडटी कार्यक्रम था, 1987 में कार्यान्वित किया गया. आईएलटीपी के ढांचे के भीतर, 1984 से 1989 तक, दो देशों ने 22 प्राथमिकता वाले वैज्ञानिक क्षेत्रों में 112 थीमों का संयुक्त रूप से विकास किया, जिसमें सौर ऊर्जा उपयोग, धातुकर्म, धातुओं का निर्माण, उच्च दाब भौतिकी, मौसम विज्ञान और समुद्र विज्ञान शामिल थे.
5- वैचारिक एवं सांस्कृतिक संबंध
दो देशों के बीच व्यापक शैक्षणिक, कलात्मक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान थे. लेखक जैसे लियो टॉलस्टॉय और अलेक्जेंडर पुश्किन का भारतीय साहित्य और विचारधारा पर गहरा प्रभाव पड़ा. इसी तरह, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और अन्य रूसी पाठकों के बीच प्रतिध्वनित हुए. सोवियत संघ ने भारत के शिक्षा क्षेत्र में योगदान दिया- सस्ती किताबें प्रदान करके गणित, विज्ञान और शिक्षा पर तथा प्रसिद्ध रूसी लेखकों के अनुवादों द्वारा. भारतीय फिल्म महोत्सव यूएसएसआर में नियमित विशेषता थे और कई भारतीय फिल्में घरेलू नाम बन गईं. सोवियत संघ तकनीकी, चिकित्सा और वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए एक लोकप्रिय स्थान बन गया, जिसके परिणामस्वरूप कई भारतीय डॉक्टर और इंजीनियर यूएसएसआर में प्रशिक्षित हुए.
(लेखक बिहार के डॉ सीवी रमण विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं.)
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