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This Article is From May 20, 2018

मैं प्रधानमंत्री को इस बात की याद दिलाता रहूंगा...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 20, 2018 17:08 pm IST
    • Published On मई 20, 2018 17:08 pm IST
    • Last Updated On मई 20, 2018 17:08 pm IST
मैं अब भी कर्नाटक चुनावों में नेहरू और भगत सिंह को लेकर बोले गए झूठ से ज़्यादा परेशान हूं. प्रधानमंत्री ने सही बात बताने पर सुधार की बात कही थी. सारे तथ्य बताने के बाद भी उन्होंने अभी तक सुधार नहीं किया है. मेरे लिए येदियुरप्पा प्रकरण से भी यह गंभीर मामला है. चुनाव तो वे अब भी पचास जीत लेंगे लेकिन जिस तरह से उन्होंने झूठ की राजनीतिक संस्कृति को मान्यता दी है और देते जा रहे हैं, दुखद है.

अब तक मैं उन्हें अपने प्रधानमंत्री के रूप में जानता था, मुझे नहीं पता था कि वे व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी हैं. झूठ की व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की बातों को प्रधानमंत्री मान्यता देंगे, इसकी उम्मीद होते हुए भी भरोसा नहीं था.

चुनावी रैलियों में उन्हें ख़ुद कहना चाहिए कि मैं प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के तौर पर बोल रहा हूं. उन्हें अगली किताब लिखनी चाहिए, जिसका नाम मैं सुझाना चाहता हूं. नेहरू के 51 अपमान. रेलवे स्टेशन पर यह किताब ख़ूब बिकेगी. या फिर वे मन की बात का नाम बदल कर व्हाट्स एप की बात भी कर सकते हैं.

आप सोच रहे होंगे कि यह चलता है. हो सकता है कि चल जाता हो. पर यह नहीं चलना चाहिए. उन्हें सुधार करना चाहिए. उन्होंने नेहरू का नहीं सरदार भगत सिंह और उनके साथियों का अपमान किया है. उनके महान बलिदान को अपने झूठ के लिए इस्तमाल किया है. देश और दुनिया के सारे इतिहासकारों को पत्र लिखकर आग्रह करना चाहिए कि आप इतिहास बोध के साथ खिलवाड़ करना बंद कीजिए. इसके बग़ैर भी आप 19, 20, 21, 22, 23, 24 के सारे चुनाव जीत सकते हैं.

मैं प्रधानमंत्री को उनके इस झूठ की याद दिलाने के लिए सावन भादो, तीज त्योहार, इस प्रसंग पर लिखता रहूंगा. उनके प्रवक्ता मेरा और मेरे शो के बहिष्कार के नाम पर तैयारी के लिए और चार साल का समय ले सकते हैं लेकिन मैं इस बात की याद दिलाता रहूंगा.

प्रवक्ताओं को घबराने की ज़रूरत नहीं है कि मैं बहिष्कार समाप्त करने की अपील कर रहा हूं. वे बिल्कुल न डरें कि कहीं प्रधानमंत्री और मेहनती अमित शाह लोकतांत्रिक होकर मेरे शो में आने के लिए न कह दें. सो रिलैक्स करें. उन्हें पेट दर्द का बहाना बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी! मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल... इसी शेर को पूरा कर दें तो प्रवक्ताओं का संडे अच्छा गुज़रेगा!

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचारNDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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