सुशील महापात्रा की कलम से : 'मुझे अपनी बेटी पर गर्व है'

सुशील महापात्रा की कलम से : 'मुझे अपनी बेटी पर गर्व है'

नई दिल्‍ली:

पटना के महावीर कैंसर संस्थान को कैंसर के इलाज के लिए जाना जाता है। सोमवार की सुबह प्राइम टाइम शो के शूट के दौरान हम इस संस्थान में पहुंचे थे। अस्पताल में काफी भीड़ थी। तरह-तरह के लोग दिखाई दे रहे थे। कैंसर जैसी बीमारी रोगी और उनके परिवार के ऊपर क्या छाप छोड़ गई है यह सब नज़र आ रहा था। इस बीमारी से पीड़ित रोगी और उनके रिश्‍तेदार सब परेशान नज़र आ रहे थे। जब शूट चल रहा था, मेरी नज़र इधर उधर घूम रही थी।

इस बीच मेरी नज़र एक बुजुर्ग के ऊपर पड़ी, सिर झुका कर बैठे यह बुजुर्ग काफी परेशान नजर आ रहे थे। फिर मैं उनसे बात करने लगा। इनका नाम सुबंश साहू है, बिहार के जहानाबाद जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। तीन महीने से अपनी पत्नी का इलाज करवा रहे हैं। पहले जहानाबाद के किसी अस्पताल में इलाज करवा रहे थे, अब करीब एक महीने से इस महावीर संस्थान में इलजा करवा रहे हैं। अकेले अपनी पत्नी की सेवा करते हैं, पत्नी को जांच के लिए ले जाना, बाथरूम ले जाना, दवाई खिलाना, जरूरत पड़ने पर पांव में तेल भी लगा देते हैं, हर तरह से ख्याल रखते हैं।

 

जब मैंने पूछा कि इलाज के लिए कितने पैसे खर्च हुए? उनका जवाब था, अभी तक करीब 60 हज़ार रुपये खर्च हो चुके हैं। गांव में जो भैंस थी उसे बेच चुके हैं। अब उन्हें यह डर सताने लगा है कि आगे कितने पैसे खर्च होंगे और कहां से आएंगे। इस अस्पताल में बीपीएल कार्ड धारियों को लगभग मुक्त में इलाज की सुविधा दी जाती है। इस बुजुर्ग के पास पहले बीपीएल कार्ड था लेकिन कुछ महीने पहले इनका नाम बीपीएल लिस्ट से हटा दिया गया।

मेरे मन में कई सवाल खड़े हो रहे थे। बात करते-करते मैंने यह पूछ लिया कि क्या आपकी पत्नी की देखभाल करने के लिए आपके परिवार से और कोई नहीं आया? बुजुर्ग थोड़ी देर रुक गए, लम्बी सांस लेते हुए बोले, तीन बेटा और एक बेटी है। लेकिन बेटा लोग पूछता नहीं। एक बेटा पटना में रहता है। सिर्फ एक बार मिलने आया था, कुछ देर रुक कर चला गया। मैंने जब पूछा कि क्या आपका बेटा आप लोगों को अपने घर नहीं ले जाता।

बुजुर्ग की आंखों में आंसू मुझे साफ़ नज़र आ रहे थे। वह अपने आंसू छि‍पाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन छिपा नहीं पा रहे थे। रुक-रुक कर बोले, बेटा कहता है अगर यह उनकी बीमार पत्नी को घर में रखेगा तो वह भी इस बीमारी का शिकार हो सकता है। यह बात सुनकर वहां पर बैठे लोग हैरान हो गए। लोग बात करने लगे, एक बेटा ऐसा कैसे कर सकता है। फिर मैंने पूछा, आपके जो दो और बेटे हैं क्या वह भी नहीं पूछते हैं? बुजुर्ग का जबाब था कोई नहीं पूछता। कोई भी इलाज के लिए पैसा नहीं दिया। कभी-कभी फ़ोन कर बात कर लेता है लेकिन आज तक कोई मिलने नहीं आया।

जब बुजुर्ग अपनी बात बता रहे थे तब उनकी बीमार पत्नी का दुःख मुझे साफ़ नज़र आ रहा था। वह काफी भावुक हो गई थी। मुंह छिपाकर रो रही थी। लेकिन फिर भी खुद अपने बेटों की शिकायत नहीं कर रही थी। उनकी आंखों में मां की ममता साफ़ झलक रही थी।

फिर मैंने पूछा, क्या आपकी बेटी भी आप को नहीं पूछती है। बुजुर्ग का जवाब था, बेटी पूछती है। जब जहानाबाद में थे तब बेटी एक महीने के लिए रुकी थी और सेवा भी की थी। लेकिन जब पटना आ गए तब बेटी नहीं आ पाई। बेटी की शादी हो चुकी है और उसे अपने ससुराल का ख्याल भी रखना है। लेकिन बेटी फ़ोन करके हालचाल जरूर पूछती है। बुजुर्ग ने यह भी बोला, 'मुझे अपनी बेटी पर गर्व है।'

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फिर जब में वहां से निकलने वाला था, बुजुर्ग ने मुझसे मेरे बारे में पूछा? मैंने बोला कि मैं मीडिया से हूं और यहां हमारा शूट चल रहा है। तो बुजुर्ग ने पूछा, मेरी यह खबर आप छापेंगे? फिर मैंने उनसे सवाल किया कि छापने से आपका क्या फायदा होगा? बुजुर्ग का जबाब था, चाहे मेरा फायदा हो न हो लेकिन ऐसी कहानी छपनी चाहिए। अगर ऐसी कहानी एक बेटे के मन में अपने माता-पिता के लिए प्यार पैदा कर सकती है तो यह बहुत बड़ी बात है।