मैं खुशनसीब हूं, मुझे मिला है दो मांओं का प्‍यार

भगवान कृष्‍ण को दो मांओं का प्‍यार मिला था. देवकी ने उन्‍हें जन्‍म दिया और यशोदा ने पाला. लेकिन मुझे उसी मां ने पाला, जिसने जन्‍म दिया. फिर आप सोच रहे होंगे कि मुझे दो मांओं का प्‍यार कैसे मिला?

मैं खुशनसीब हूं, मुझे मिला है दो मांओं का प्‍यार

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

रिश्‍तों की डोर बेहद नाजुक होती हैं औ‍र अगर इनमें जरा-सा भी खिंचाव आ जाए तो ये ताउम्र सहज नहीं हो पाते. वैसे तो अपनों के लिए दिल में हमेशा खास जगह होती है, लेकिन जितने भी रिश्‍ते धरती पर आने के बाद बनते हैं, उनमें से मुझे लगता है कि सबसे अच्‍छा रिश्‍ता मां और बेटी का होता है. इस रिश्‍ते को शब्‍दों में बांधना बेहद मुश्किल काम है. फिर बांधना चाहिए भी नहीं, क्‍योंकि मां का प्‍यार तो हर जगह हमारे साथ होता है.
 
भगवान कृष्‍ण को दो मांओं का प्‍यार मिला था. देवकी ने उन्‍हें जन्‍म दिया और यशोदा ने पाला. लेकिन मुझे उसी मां ने पाला, जिसने जन्‍म दिया. फिर आप सोच रहे होंगे कि मुझे दो मांओं का प्‍यार कैसे मिला? दरअसल, शादी के बाद लड़कियों को मिलने वाला ये प्‍यार दोगुना हो जाता है...कैसे..? आज मैं लड़कियों के जीवन में आने वाले मां के दो रूपों मम्‍मी और सास के बारे में अपने अहसास को आप सभी से साझा कर रही हूं.
 
मैंने अपनी मदर और सास को ‘मां’ के ही दो पर्यायवाची शब्‍दों में बांटा है. ‘मम्‍मी’, ये हैं मेरी जन्‍मदाता और ‘मां’, ये हैं मेरी सास. मेरी मम्‍मी मुझे इस दुनिया में सबसे प्‍यारी हैं. इनसे मुझे किसी भी विषय पर बात करने से पहले न तो सोचना पड़ता है और न ही अंतर्मन में ये चिंता होती है कि इन्‍हें मेरी कोई बात बुरी न लग जाए. बिना कुछ कहे मेरी हर मुश्किल को समझ जाना, मेरी हर चीज का ख्‍याल रखना, हर इच्‍छा को पूरा करने की कोशिश करना.... सिर्फ और सिर्फ मम्‍मी ही कर सकती हैं.
 
मेरी मम्‍मी काफी चुलबुली और साफ मन की महिला हैं. हमेशा दूसरों का भला करना और मुश्किल समय में लोगों का ढाढस बंधाना मां की आदतों में शुमार है. पर कभी-कभी लगता है कि मैंने मम्‍मी को उतना समय नहीं दिया, जितना देना चाहिए था. दरअसल, अभी कुछ समय पहले ही मेरी पति की तबीयत खराब हो गई थी. मैं वर्किंग हूं, इसलिए अपने बॉस को बताकर मैंने कुछ दिनों की छुट्टियां ले लीं. लेकिन जब पति ठीक हो गए, तब यकायक मन परेशान सा हो गया. मन कहने लगा....'बीमार तो मां भी होती थीं, दर्द और तकलीफ से वह भी गुजरती थीं, पर तब कभी मैंने ऑफिस से छुट्टी नहीं ली.’ क्‍यों... क्‍या मां का दर्द मैं समझ नहीं पाई... या मां ने मुझे कभी अपनी तकलीफ का अहसास ही नहीं होने दिया.....जवाब की तलाश जारी है...
 
पापा के जाने के बाद मां को टूटते हुए देखना मेरे लिए काफी मुश्किल था... मन डरने लगा था कि ये भी हमें छोड़कर चली न जाएं... लेकिन शायद यमराज थोड़े-से दयालु हो गए... ऐसा इसलिए कह रही हूं, क्‍योंकि पापा के जाने के बाद मम्‍मी की हालत बहुत खराब थी, उनका हौसला टूटने लगा था, चेहरे की मुस्‍कुराहट गायब हो गई थी, लेकिन इस कठिन समय में भी उन्‍होंने हालातों से समझौता करते हुए मुझे और मेरे छोटे भाई को संभाला... और उठ खड़ी हुईं एक मुश्किल डगर पर चलने के लिए. आज मैं जो भी हूं....जिंदगी के जिस मुकाम पर हूं उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ मेरे माता-पिता को जाता है.
 
चलिए अब जरा बात करते हैं एक लड़की को सबसे डेंजर लगने वाली महिला यानी ‘सास’ की.
 
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि बहुत खुशनसीब होती हैं वो लड़कियां जिन्‍हें अपनी सास का स्‍नेह मां के प्‍यार के रूप में मिलता है. जनाब इन खुशनसीब महिलाओं की फेरिस्‍त में मेरा भी नाम शामिल हो गया है. वैसे सास की छवि आज भी बहू और उसके रिश्‍तेदारों के जेहन में लगभग पहले जैसी ही है. सास यानी एक दबंग महिला, जो बात-बात पर ताना देती है, बहू को डांटने का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं देती. लेकिन मेरी सास में ऐसी कोई आदत नहीं है. शादी के बाद जब एक फैमिली फंक्‍शन में दादी से मिलना हुआ तो उन्‍होंने मुझसे पूछा, ‘सास ठीक है तुम्‍हारी, कुछ कहती तो नहीं है?’ उनका ये सवाल सुनकर हंसी आ गई थी मुझे. दरअसल, दादी जानना चाहती थी कि उनकी शरारती पोती को कोई दिक्‍कत तो नहीं. जबाव में मैंने दादी को कहा था, ‘अम्‍मा सब ठीक है, सास बहुत अच्‍छी हैं.’
 
मेरी सास साफ मन की महिला हैं. मेरी छोटी-सी तकलीफ उनको भी परेशान कर देती है. उनके साथ बातों-बातों में कब वक्‍त बीत जाता है पता ही नहीं चलता. गर्मी में बातें करते-करते मेरे गले के सूखने का अहसास उन्‍हें कैसे हो जाता है, मुझे समझ ही नहीं आता... मुझे प्‍यास लगी है, इस बात का अहसास तब होता है जब वह मेरे लिए खुद पानी का गिलास ले आती हैं... मेरे चेहरे पर पसीना देखकर पंखा तेज करना... उतरा चेहरा देखकर ये समझ जाना की आज तबीयत जरा नासाज है... ये कुछ ऐसी छोटी-छोटी और दिल को छू लेने वाली बातें हैं... जो मुझे मेरी सास में मम्‍मी का अक्‍स दिखाती हैं.
 
मैं मां और सास की तुलना नहीं कर रही हूं. इस दुनिया में आने और सांस लेने का अधिकार जिसने मुझे दिया... उनकी तुलना भला हो भी कैसे सकती है. मैं बस ये बताना चाहती हूं कि बदलते समाज में अब रिश्‍तों भी तेजी से बदल रहे हैं. शहरों में बढ़ते एकल परिवार की परंपरा ने सास-बहू के रिश्‍ते को भी काफी बदल दिया है. अब सास और बहू मिल-जुलकर परिवार चलाती हैं, एक-दूसरे के बेहद करीब आ गई हैं. कम से कम मैंने तो ये अपने परिवार में महसूस किया है. मैं उन महिलाओं में से हूं जिसे जन्‍म तो एक मां ने दिया लेकिन.... प्‍यार....प्‍यार दो मांओं का मिला है... मैं तो चाहती हूं कि हर लड़की को मां और सास का दुलार मिले और सास की परिभाषा हमेशा-हमेशा के लिए बदल जाए.

लव यू ‘मम्‍मी’ और ‘मां’

शिखा शर्मा एनडीटीवी में कार्यरत हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


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