विज्ञापन
This Article is From Oct 05, 2018

बच्चे कैसे जानेंगे बापू को?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 05, 2018 23:55 pm IST
    • Published On अक्टूबर 05, 2018 23:55 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 05, 2018 23:55 pm IST
गांधी जयंती का यह डेढ़ सौंवा साल शुरू हो गया है. पिछले ही साल चंपारण सत्याग्रह का सौंवा साल था जब 1917 में गांधी चंपारण गए थे. इस 2 अक्तूबर से अगले 2 अक्तूबर की तक गांधी को याद करने के लिए बहुत से सरकारी कार्यकर्म होंगे. इन कार्यक्रमों के बीच व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के अंदरखाने गांधी जी को लेकर क्या चल रहा है, उसकी सामग्री भी प्रकाशित की जानी चाहिए. गांधी हर किसी के लिए उपलब्ध हैं. जो चाहते हैं उनके लिए भी, जो नफरत करते हैं उनके लिए भी. सबको लगता है कि उन्हें गांधी के बारे में सब पता है. जो लोग उम्र से बड़े हैं उनके पास गांधी को जानने के लिए बहुत सी किताबें हैं. जो बच्चे हैं उनके लिए भी किताबे हैं मगर पिछले कुछ महीनों में बच्चों के लिए दो ऐसी किताबें आई हैं जिनके बारे में बात होनी चाहिए. बच्चों को अगर गांधी के भारीभरकम जीवन के बारे में बताना हो तो फिर कैसे बताएंगे. यह चुनौती तो है ही. जिस किताब की हम बात करेंगे उसके कई हिस्से मिलाकर हमने एक कहानी बना दी है.

मोहन एक साहसी बालक नहीं था. बहुत से दूसरे बच्चों की तरह ही उसे भूत-प्रेत का, डाकुओं का, सांप का डर लगा रहता था. लाज इतनी आती थी कि स्कूल में किसी से बात करने में सकुचाता था. डरता था कि दूसरों से बात करेगा, तो वे उसका मज़ाक उड़ाएंगे. ज़रूरत से ज़्यादा बात न तो शिक्षकों से करता था और न ही अपने सहपाठियों से. घंटा बजने पर ही विद्यालय में घुसता और छुट्टी होते ही तीर की तरह घर लौट जाता.

गुजरात में एक स्कूल में सफाई हो रही थी. क़ाग़ज़ों के एक पुराने पुलिंदे में कुछ पुराने परीक्षाफल मिले. इनमें महात्मा गांधी के बचपन का रिपोर्ट-कार्ड भी निकल आया. बड़ी जिज्ञासा थी, यह जानने के लिए कि मोहन कैसा छात्र था.

रिपोर्टकार्ड से कुछ बातें पता चलती हैं, कुछ नहीं भी समझ आतीं. सन 1881 में मोहन अंकगणित में और गुजराती में पास हो गया था. भूगोल में जिन तीन छात्रों को एक भी नंबर नहीं मिला था, उनमें मोहन का नाम भी था. साल के आख़िर में 34 छात्रों की कक्षा में उसका स्थान 32वां था. यानी फिसड्डी.

मोहन साधारण सा छात्र था. न तो बहुत बुद्धिमान और न ही एकदम बुद्धू. शरीर से भी बहुत फुतीला नहीं था. खेलकूद में हिस्सा नहीं लेता था, लेकिन पैदल चलने का खूब अभ्यास था. फिर क्या मोहन में कोई भी ख़ूबी नहीं थी?

ऐसा कैसे हो सकता है? हर व्यक्ति में कुछ-न कुछ गुण होते हैं, मोहन में भी थे. उसमें गजब की जिज्ञासा थी. जो भी उसके मन को लुभाता, उसे समझने में जुट जाता. मेहनत से, खुले मन से.

स्कूल कॉलेज की पढ़ाई पूरी की, लेकिन मोहन को महात्मा बनाने वाली शिक्षा तो मोहनदास को जीवन से ही मिली. अच्छी बातें पढ़ने से उन्हें फायदा हुआ, पर उससे कहीं ज़्यादा लाभ ख़ुद आज़ामाकर सीखी बातों से. कुछ लोग पढ़ने-समझने के लिए प्रयोगशाला जाते हैं. बापू ने अपने जीवन को ही प्रयोगशाला बना लिया था.

ज़रूरत पड़ी तो किताबें ख़रीद कर कपड़े अच्छे से धोना सीखा, भोजन पकाना सीखा, एम्बुलेंस और नर्स का काम भी सीख लिया, चर्खा चलाना और कपड़े बुनना भी. बाल काटना और तमिल-उर्दू भी कामचलाऊ सीख ली. गांधी जी के सीखने-पढ़ने के पीछे डिग्री पा कर नौकरी करने की इच्छा कम ही थी.  

जूते बनाने का काम उन्होंने अपने एक दोस्त सीखा था. उस समय दफ्तरों में लोग जूते पहनते थे. लेकिन महोनदास ने पतलून के साथ चप्पल या सैंडल पहनना शुरू कर दिया, क्योंकि गर्म इलाकों में ये जूतों की तुलना में आरामदेह रहते हैं. उनकी देखादेखी चप्पल और सैंडल पहनने का फैशन चल निकला था.

एक बार जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के साथ कांग्रेस के कुछ नेता महाराष्ट्र के सेवाग्राम आश्रम आए. उन्हें इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि गांधी जी कुछ लोगों को चमड़े से चप्पल बनाना सिखा रहे थे. जब उन्होंने शिकायत की, तो गांधी जी ने उनसे कहा कि वे लोग भी जूता चप्पल बनाना सीखें. बाद में सन 1932 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें सरदार पटेल के साथ जेल में डाल दिया. सरदार को जूतों की ज़रूरत थी, लेकिन जेल में कोई मोची था ही नहीं. गांधीजी ने उनसे कहा चमड़ा मिल जाए, तो वे ही सरदार के लिए जूता बना सकते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी बनाई चप्पलों को कुछ लोग तो ऐसे संभाल कर रखते थे कि वह कोई धरोहर हो.

जेल में रहते हुए मोहनदास की सरकार के आला अधिकारी जनरल स्मट्स के साथ चिट्ठी-पत्री हुई. यही वे अधिकारी थे जिनकी वजह से मोहनदास को बार-बार जेल जाना पड़ता था. सन 1913 में एक पत्र में उन्होंने जनरल स्मट्स को बताया कि वे 15 सैंडल बना चुके हैं. यह भी कि अगर जनरल अपने पैर का नाप भेज दें तो उनके लिए भी सैंडल बना देंगे. सन 1914 में जब वे जेल से रिहा हुए और दक्षिण अफ्रीका सदा के लिए छोड़ भारत लौटने लगे, तब मोहनदास ने यह सैंडल जनरल स्मट्स को भेंट दी.

भारत लौटने पर वह देसी कपड़ों में आ गए थे. ऐसे ही कपड़ों में गांधी जी चंपारण के किसानों का हाल जानने के लिए सन 1917 में बिहार आए. वहां एक दिन उन्होंने एक औरत को बहुत गंदी साड़ी में देखा. उन्होंने कस्तूरबा से कहा- उससे कहो कि अपने कपड़े साफ किया करे, नहाया करे. उसने कस्तूरबा को जवाब दिया- मेरे पास एक ही साड़ी है. अगर इसे धोऊंगी तो पहनूंगी क्या? बापू से कह कर एक और साड़ी दिलवा दीजिए, रोज़ नहाकर साड़ी भी धो लूंगी.

उस निर्धन महिला का हाल सुनकर गांधी जी भर्रा गए. उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि उनके देशवासी ऐसी दरिद्रता में रहते हैं. उन्हें गरीबी और सफाई का रिश्ता भी समझ आ गया. इस घटना का गांधी जी पर गहरा असर हुआ, इतना कि उनका पहनावा भी बदलने लगा.

एक संपन्न दीवान का बेटा, जो विदेश में महंगे कपड़े और सूट-बूट में रहा था, ऐसी लंगोट जैसी धोती पहनने लगा था, जैसी एकदम ग़रीब मज़दूर किसान पहनते थे. जिन लोगों के भले के लिए वह काम करना चाहते थे, उनके जैसे ही हो गए थे.

सन 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तब मोहन 78 साल का हो गया था. सभी मानते हैं कि हमारी आज़ादी की लड़ाई के सबसे बड़े नेता मोहनदास गांधी ही थे. यानी हमारे डरपोक मोहन ने केवल अपने मन से नहीं, देश भर के लोगों के मन से डर निकाल दिया था.

सोपान जोशी ने दो किताबें लिखी हैं. एक था मोहन 9वीं से 12वीं के छात्रों के लिए और बापू की पाती तीसरी से आठवीं के छात्रों के लिए. हिन्दी में है ये किताब. तीसरी क्लास के बच्चों वाली किताब को बिहार सरकार ने सभी स्कूलों में लागू भी किया है. क्योंकि यह किताब चंपारण सत्याग्रह शताब्दी के समय नीतीश कुमार ने बनवाई थी. बिहार के स्कूलों में रोज़ सुबह इसका एक चैप्टर पढ़ा जाता होगा या नहीं, यह तो बिहार के लोग ही बता सकते हैं मगर इस किताब में यही लिखा है कि ऐसा किया जाए. इस किताब के लिए गांधी को बच्चों के लिए बाल सुलभ बनाने वाले एक चित्रकार की तारीफ भी बनती है. जिनका नाम है सोमेश कुमार. क्या गांधी के बारे में कुछ नया है जानने के लिए... खासकर बच्चों को गांधी के बारे में कैसे बताएं वो भी बिना 2 अक्तूबर के.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com