आप चैनलों पर बाढ़ का कवरेज देख रहे होंगे. लेकिन थोड़ा ध्यान से देखिए. आप देख रहे होंगे कि नाव पर रिपोर्टर है जो पानी दिखा रहा है. परेशान लोग चीख रहे हैं और सरकार को कोस रहे हैं. मंत्री बादलों को कोस रहे हैं और आश्वासन दे रहे हैं. स्क्रीन पर सरकार को कोसने वाले नारे लिखे गए हैं. कहां हैं सरकार से लेकर शर्म करो नीतीश कुमार तक. यहां तक बिल्कुल ठीक है और लोगों की परेशानी को सामने लाना बेहद ज़रूरी भी लेकिन सुबह से शाम तक इसी तरह रिपोर्टिंग देखते देखते क्या आप जान पाते हैं कि पटना शहर में नगर विकास को लेकर पिछले दिनों क्या हुआ, क्या यह सिर्फ प्रकृति की मार थी या अफसरों और योजना बनाने वालों की लापरवाही थी. इस संकट का ज़िम्मेदार कौन है? आपको टीवी देखते हुए या अखबार पढ़ते हुए जानकारी नहीं मिलती है. इस तरह जब लाखों लोगों की नज़र बिहार की राजधानी पटना पर है, आप उस पटना के बारे में ठोस रूप से कुछ भी नहीं जान पाते हैं. लेकिन आप संतोष कर लेते हैं कि टीवी पर दिखाया. पटना में भी वो भी कुछ खास इलाकों का कवरेज हो रहा है. उन इलाकों में मकानों की संख्या कितनी है, हाउस टैक्स कितना जमा होता है, सीवेज और ड्रेनेज का प्लान क्या है, नया क्या हो रहा है, यह सब जानकारी आपको टीवी से नहीं मिलती है. न पत्रकार पता कर रहा है और न ही सरकार अपना प्लान बताती है और न ही उसकी वेबसाइट से कुछ पता चलता है.
टीवी वाले अपने कवरेज में बेचैन नज़र आ रहे हैं लेकिन भागलपुर के बाबूपुर गांव की यह तस्वीर देखिए, पानी मचान के ठीक नीचे तक बह रहा है लेकिन ये जनाब आराम से पसरे पड़े हैं. बाढ़ को लेकर ऐसी निश्चिन्तता गांवों में सामान्य है. इस चारपाई पर महिलाएं बैठी हैं और पानी के बहते जाने का नज़ारा देख रही हैं. मगर दूसरे लोगों ने गांव छोड़ कर जाना शुरू कर दिया है. यह सारी तस्वीरें अजय कुमार ने भेजी हैं और ये इलाका भागलपुर ज़िला मुख्यालय से मात्र 6 किमी दूर है. प्रशासन कह रहा है कि राहत सामग्री और कार्य चल रहा है लोग शिकायत कर रहे हैं कि प्रशासन कहां है. कई जगहों पर राहत शिविर चल रहे हैं. भागलपुर के 16 में से 14 प्रखंड बाढ़ की चपेट में हैं और 150 से अधिक गांवों में पानी भरा हुआ है. दो लाख से अधिक बाढ़ से प्रभावित हैं. पूरा भागलपुर बाढ़ की चपेट में है लेकिन फोकस सिर्फ पटना पर है. गनीमत है कि यहां बारिश थमी है जिसके कारण पानी कुछ घटा है. भागलपुर में दीवार गिरने से 6 लोगों की मौत हो गई है. यह नेशनल हाईवे 80 है. गंगा के किनारे किनारे यह हाईवे बना है. बिहार के मोकामा से शुरू होकर भागलपुर होते हुए बंगाल के फरक्का तक जाता है. सबौर से घोघा के बीच हाईवे पर एक से दो फीट पानी भर गया है. भागलपुर से लेकर कहलगांव तक 53 गांवों की सड़कें डूब चुकी हैं. रास्ते बंद हो गए हैं. आस-पास के इलाके में बाढ़ के कारण लोग रेल लाइन के किनारे लाकर बसाए गए या बस गए हैं क्योंकि रेल लाइनें ऊंची जगह पर होती हैं. गंगापुर गांव के पास रेल पटरी के किनारे एक दुर्घटना हुई. ब्रह्मपुत्र मेल यहां से गुज़र रही थी. रेल पटरी पर शरण लेकर रह रहे अजी देवी और उनके बेटे दिलखुश कुमार की रेल से कट कर मौत हो गई. इसी बाढ़ में नौजवान टिक टॉक के लिए वीडियो भी बना रहे हैं. जमुई के पास टिक टॉक बनाने गए तीन दोस्तों में से एक मोहम्मद साजिद पानी में बह गया. उसकी मौत हो गई. प्लीज़ सेल्फी और टिक टॉक से बचें. सबौर इंजीनियरिंग कॉलेज में पानी भरा हुआ है.
मौसम विभाग की जारी सूचना के मुताबिक में बिहार में अगले चार दिनों तक अत्यधिक वर्षा के आसार नहीं हैं. हल्की फुल्की बरसात होगी. यह राहत की बात है. वर्ना बिहार की कई नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. पटना की पड़ोसी नदी पुनपुन नदी खतरे के निशान से ऊपर. सोन नदी में भी पूरे दिन पानी बढ़ने की खबर आती है. इन दोनों नदियों में पानी का बढ़ना पटना के लिए अच्छी खबर नहीं है. क्योंकि पटना पुनपुन, सोन और गंगा के बीच बसा हुआ है. पटना में 36 घंटे से बारिश रुकी है लेकिन पानी अब भी कई जगहों पर जमा है. राजेंद्र नगर और कंकड़बाग की स्थिति खराब है. वहां के कई लॉज में पानी घुस जाने के कारण छात्रों को परेशानी हो रही है. प्रभात खबर की रिपोर्ट के अनुसार राजेंद्र नगर और कंकड़बाग में दस हज़ार छात्र फंसे हैं. उन बुजुर्गों पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए जिनके परिवार के लोग बाहर रहते हैं और उन्हें दवा की ज़रूरत है.
तो राजेंद्र नगर और कंकड़बाग दोनों ही पटना के प्रभावी और प्रभावित इलाके हैं. इन इलाकों में पानी निकलने में दो दिन लग जाएगा. यहां पर बड़ी आबादी रहती है. बिहार के मुख्य सचिव ने बताया कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से पंप मंगाए जा रहे हैं. ये वो पंप हैं जो कोयला खदानों में पानी भरने के बाद निकाला जाता है. इस तरह के पंप से एक मिनट में 1000 से 4000 गैलन पानी निकाला जाता है. यह संकट नहीं आता तो इतना मामूली समाधान नहीं पता चलता. यह डीज़ल पंप लाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इसे समझने के लिए आपको पटना में बाढ़ या बारिश के पानी को निकालने का सिस्टम समझना होगा. हमने कुछ स्थानीय पत्रकारों से बात की जिन्होंने संप हाउस की हालत पर लिखा है. पटना में 38 संप हाउस हैं. मात्र 6 संप हाउस काम कर रहे हैं. वैसे प्रशासन दावा करता है कि सारे सम्प चल रहे हैं. कंकड़बाग जहां खत्म होता है यानी पटना के पूरबी छोर पर पहाड़ी में यह सम्प हाउस है. यहीं पर कंकड़बाग और सैदपुर नाला मिलता है. इसी के ज़रिए कंकड़बाग का पानी खींच कर बाहर निकाला जाए लेकिन जिस तरफ पानी जाएगा उस तरफ पुनपुन नदी बहती है जो खतरे के निशान से ऊपर है. इसलिए कंकड़बाग का पानी नहीं निकल सका. कंकड़बाग में चार मोटर हैं. एक मोटर से एक सेकेंड में एक हज़ार लीटर पानी ड्रेन आउट हो सकता है. ज़ाहिर है यह ठप्प है तभी बिलासपुर से इस क्षमता का मोटर मंगाया जा रहा है. बहादुरपुर में 5 संप हाउस हैं लेकिन एक चल रहा है.
राजेंद्र नगर में स्थिति भयावह है क्योंकि दिनकर गोलंबर, रामपुर और चंदनपुर का सम्प हाउस नहीं चल रहा है. इलेक्ट्रिक पंप पानी में डूब गया था. श्रीकृष्णपुरी का सम्प हाउस चल रहा है तो बोरिंग रोड का पानी निकाला जा सका. उत्तरी पटना का पानी निकालने के लिए मंदिरी सम्प हाउस है और राजापुर सम्प हाउस है. इनसे पानी निकाल कर गंगा में डाला जाता लेकिन वहां गंगा खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. योगीपुर सम्प हाउस जो कंकड़बाग में है उसे चालू किया जा चुका है. इनकी पानी निकालने की क्षमता काफी कम है. पहले पानी निकालने की ज़िम्मेदारी पटना नगर निगम की थी. लेकिन बाद में सरकार ने इसे बिहार अर्बन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को दे दिया. कायदे से इसके प्रमुख को मीडिया को जानकारी देनी चाहिए थी लेकिन मुख्य सचिव प्रेस कांफ्रेंस कर बता रहे हैं कि बिलासपुर से डीज़ल पंप आ रहा है. हिन्दुस्तान टाइम्स से पटना नगर निगम के कमिश्नर का बयान छपा है कि 38 सम्प हाउस चल रहे हैं. फिर भी पानी नहीं निकल रहा है. इसके बाद भी पानी कब तक निकलेगा नहीं पता. स्थानीय मीडिया में इन दावों से अलग रिपोर्ट छप रही है कि सम्प हाउस चल नहीं रहे हैं. न्यूज़ क्लिक से सामाजिक कार्यकर्ता राजीव ने कहा है कि आधे सम्प हाउस बंद हैं. काम नहीं कर रहे हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया से नगर विकास मंत्री सुरेश मंत्री ने कहा है कि 38 सम्प हाउस चला दिए गए हैं. मंत्री ने माना है कि ऑफिशियल की तरफ से लापरवाही हुई. उन्हें पानी जमा होते ही सम्प हाउस चालू कर देना चाहिए था. यानी सम्प हाउस चलाने में देरी हुई खुद मंत्री मान रहे हैं. मंत्री दावा कर रहे हैं कि सम्प हाउस चल जाएंगे तो फिर नए सम्प हाउस क्यों मंगाए जा रहे हैं.
फिर सुशील मोदी की इस बैठक की तस्वीर के साथ जो प्रेस रिलीज़ जारी की गई है उसमें क्यों कहा गया है कि 48 घंटे में जलजमाव में कमी लाएं. इसका मतलब है स्थिति अभी भी ठीक नहीं है. इस प्रेस रिलीज में उप मुख्यमंत्री ने कहा है कि कोल इंडिया, एनटीपीसी और कल्याणपुर सीमेंट से उच्च क्षमता के पंप मंगाए जा रहे हैं ताकि राजेंद्र नगर और कंकड़बाग से पानी निकाला जा सके. 50 नए पंपों के ज़रिए युद्ध स्तर पर पानी निकालने का काम होगा. जल संसाधन विभाग से भी पम्प मंगाने का निर्णय लिया गया. ज़ाहिर है यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि 37-38 संप हाउस पहले से जो हैं वो काम नहीं कर रहे हैं. बिहार के शहरी विकास मंत्रालयन ने पटना के विकास पर एक रिपोर्ट बनाई है. इसमें 2010 से 2030 तक के पटना की योजना का खाका है. इसमें ड्रेनेज पर एक सेक्शन है. इसमें 2011 से 15 के बीच संप हाउस के लिए 1 करोड़ और 2016-20 के बीच एक करोड़ की राशि तय की गई है. सोचिए 2011 से 2020 तक यानी 9 साल के लिए संप हाउस पर सरकार मात्र दो करोड़.
जबकि एक सम्प हाउस की लागत होती है 8 से 10 करोड़. उसके साथ ड्रेनेज सिस्टम होता है, वो सब मिलाकर लागत 40 करोड़ भी हो सकती है. आप बताइये दो करोड़ में क्या होगा. जाहिर इस वक्त लोगों की नज़र है तो बैठकों और बयानों के ज़रिए सक्रियता का अहसास कराया जा रहा है. हमने जब बिहार के शहरी विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद पटना सिटी के विकास की योजना वाली रिपोर्ट को देखा तो उसमें 2016 से 2030 तक मेन ड्रेन के सुधार और रिपेयर के लिए कोई पैसा नहीं लिखा है. इस वेबसाइट से आपको यही जानकारी मिलती है. इस रिपोर्ट में लिखा है कि पटना के केंद्रीय भाग में बाढ़ की आशंका रहती है. पूरबी यानी पुराने शहर में ड्रेनेज सिस्टम ढंग से नहीं बना है. कंकड़बाग वाले हिस्से में सीमित ड्रेनेज है और अपर्याप्त है. ये खुद सरकार की रिपोर्ट कहती है.
इसलिए ज़रूरी है कि हम बाढ़ की इन तस्वरों के साथ उन सवालों पर गौर करें ताकि पता चले कि जिनके ऊपर पटना की ज़िम्मेदारी थी वो क्या कर रहे थे. हाल के बयानों और बैठकों की तस्वीरों की गंभीरता पर मत जाइये. यही हाल जब आप नमामि गंगे के प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का है. इसे पूरा होने को लेकर अलग-अलग बयान चल छपे मिलेंगे. जून में बयान छपता है कि जून के अंत तक एसटीपी तैयार हो जाएंगे और अक्तूबर से चालू हो जाएंगे लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स की 1 अक्तूबर की रिपोर्ट है कि पांच एसटीपी में एक भी तैयार नहीं है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम होता है गंदे नाले को साफ करना ताकि गंगा मैली न हो. नमामि गंगे के तहत जो बजट है उसके बारे में सरकार ने फरवरी 2019 में संसद में जवाब दिया था. 2014-15 में 2053 करोड़ मंज़ूर हुए थे लेकिन 170 करोड़ ही जारी हुए. 2015-16 में 1650 करोड़ मंज़ूर हुए थे लेकिन 602 करोड़ ही रिलीज़ हुए. 2016-17 में 1675 करोड़ मंज़ूर हुई लेकिन 1062 करोड़ जारी हुई. तो ये हाल है. पूरा पैसा भी जारी नहीं होता है. नमामि गंगे के तहत 2015 से 2019 के बीच 11,471 करोड़ की राशि मंज़ूर हुई थी लेकिन जारी हुए मात्र 4024 करोड़. 7000 करोड़ रुपया जारी नहीं हुआ. जब पैसा ही पूरा नहीं आएगा तो काम कैसे तेज़ होगा. पटना में 400 किलोमीटर अंडरग्रांउंड सीवेज नेटवर्क बनाने की भी योजना मंज़ूर है. इन योजनाओं की ताज़ा स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है.
योजनाओं का एलान तो बढ़ चढ़ कर किया जाता है, मीडिया में हेडलाइन छपता है, धारणा बन जाती है कि काम हो रहा है लेकिन उसके बाद सब अपने रफ्तार से हो रहा होता है. पटना की हालत के डिटेल बोरिंग और बोझिल हैं लेकिन इसी डिटेल से पता चलता है कि पटना को बोझ बनने दिया गया है. इसलिए पटना को लेकर अगर आप चिन्तित हैं तो जवाबदेही पर बात होनी चाहिए. मनीष कुमार ने पटना नगर निगम के पैनल में शामिल एक आर्किटेक्ट से बात की. उन्होंने पटना नगर निगम को लेकर अपना अनुभव बताया है.
2017 की टेलिग्राफ की रिपोर्ट का एक हिस्सा दिलचस्प है. पटना हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि 40 माइक्रोन की मोटाई वाले पोलिथीन बैग पर रोक लगनी चाहिए तो पटना नगर निगम के वकील अदालत से कहते हैं कि सुरक्षा की कमी के कारण आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं. जिन जगहों पर 40 माइक्रोन प्लास्टिक पर बैन का अभियान चला है वहां लोगों ने विदोह कर दिया है और कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो गई है. पटना को बेहतर बनाना चाहते हैं तो पटना पर ध्यान दीजिए. कौन शहर चला रहा है और कैसे शहर चला रहा है.
भारी बारिश से देश के अन्य हिस्सों में भी तबाही है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी काफी प्रभाव पड़ा है. बंगाल के मालदा में बाढ़ है. राजस्थान में बारिश होने से बाजरे और तिल की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ा है. एक किसान ने बारिश के समय ही रिपोर्टर की तरह रिकार्ड कर लिया.
एससी/एसटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 का फैसला पलट दिया है. तब कोर्ट ने आदेश दिया था कि इस एक्ट के तहत गिरफ्तारी होने से पहले जांच होगी. पूरे देश में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुआ और सरकार पर दबाव डाला गया कि वह कानून बनाकर पुरानी व्यवस्था लागू करे. केंद्र सरकार ने अगस्त 2018 में लोकसभा और राज्यसभा से सेक्शन 18ए के तहत एफआईआर से पहले जांच को गैर ज़रूरी घोषित कर दिया था. इस संशोधन के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है जिस पर 3 अक्तूबर को सुनवाई होगी लेकिन आज का फैसला केंद्र सरकार की अपील पर आया है. अब पहले की तरफ एसएस/एसटी एक्ट में गिरफ्तारी से पहले जांच की ज़रूरत नहीं होगी. पहले अरेस्ट होंगे फिर जांच होगी. जस्टिस अरुण कुमार मिश्र, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस एम आर शाह की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 2018 का आदेश संविधान की भावना के ख़िलाफ था.
2018 में कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी एक्ट का गलत इस्तमाल हो रहा है. लेकिन अब कोर्ट ने कहा है कि 70 साल हो गए मगर छूआछुत समाप्त नहीं हुई है. अनुसूचित जाति और जनजातियों के वर्ग अज्ञानता और दुर्व्यवहार झेल रहे हैं और सदियों से सामाजिक रूप से बहिष्कृत रहे हैं. हम यह मानने के लिए मजबूर हैं कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग समानता और देश के विभिन्न क्षेत्रों में नागरिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके साथ अभी भी भेदभाव हो रहा है. आरक्षण के बाद भी विकास के फल उन तक नहीं पहुंचे हैं. ऐसी स्थिति कैसे बनी रही है, क्या हम ज़िम्मेदार हैं, इसका उत्तर केवल अंतरात्मा की खोज से मिल सकता है. हम उन्हें मौलिक अधिकारों और सुविधाएं प्रदान नहीं कर पाएं हैं. कुछ स्थानों पर भी अनुसूचित जनजाति को अलग रखा जाता है. उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पाए हैं.