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This Article is From Sep 28, 2019

संयुक्त राष्ट्र की 74वीं आम सभा, दुनिया में बढ़ते टकराव पर कितना ध्यान?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 30, 2019 13:21 pm IST
    • Published On सितंबर 28, 2019 02:28 am IST
    • Last Updated On सितंबर 30, 2019 13:21 pm IST

न्यूयॉर्क में हर साल होने वाली संयुक्त राष्ट्र की आम सभा का आज आखिरी दिन था. 74वीं आम सभा में ख़ूब भाषण हुए. पांच दिनों तक चलने वाले इस भाषण में दुनिया भर के मुल्कों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के भाषण से किस तरह की चिन्ताएं उभर रही हैं, उन भाषणों में समाधान का संकल्प कितना है या भाषण देने की औपचारिकता कितनी है, ईमानदारी कितनी है, इस लिहाज़ से भाषणों को देखा जाना चाहिए तभी हम समझ पाएंगे कि संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भाषण का क्या मतलब है. कश्मीर के नज़रिए से देखें तो आम सभा में इस पर ईरान या यमन की तरह चर्चा नहीं हुई और न ज़िक्र हुआ. आम सभा में दिन के नौ बजे से रात के नौ बजे तक भाषण होता है. जैसे 27 सितंबर को ही 37 देशों के प्रमुखों का भाषण होगा. भाषण की शुरूआत सेक्रेट्री जनरल एंतोनियो गुतेरेज़ ने की. गुतेरेज़ ने कहा कि दुनिया में टकराव के कई क्षेत्र बन गए हैं जिन पर तुरंत ध्यान देना ज़रूरी है लेकिन उन्होंने कश्मीर का ज़िक्र नहीं किया. सीरीया, कोरिया, सूडान, अफगानिस्तान और वेनेज़ुएला का ज़रूर नाम लिया. ये वो समस्याएं जो अपना रूप बदल लेती हैं मगर समाधान नहीं होता है. आज ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हुआ और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का भी हुआ. बांग्लादेश और नेपाल के प्रमुख का भी भाषण होगा. ज़ाहिर है दक्षिण एशिया के मुल्कों के प्रमुखों के भाषण को ग़ौर से देखा जाना चाहिए कि वे इन इलाकों में किन बातों से चिन्तित हैं. उनके पास नया आइडिया क्या है और क्या साहसिक कदम उठाने जा रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य हैं. चीन, रूस, ब्रिटेन, अमरीका और फ्रांस. अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस के प्रमुखों का भाषण हो गया है. 27 सितंबर को चीन और रूस का भाषण है. अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस के प्रमुखों के भाषण में भारत पाकिस्तान के तनावों का ज़िक्र तक नहीं आया. इनके प्रमुख मध्य एशिया के देश ईरान, यमन और सऊदी अरब को लेकर ही बात करते रहे. फ्रांस के राष्ट्रपति अमरीका और ईरान को लेकर चिन्तित नज़र आए. यमन के संकट की समाप्ति की बात कर रह थे. अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कश्मीर पर इतने बयान आ चुके हैं कि कंफ्यूज़न सा है कि उनकी लाइन क्या है. मगर ट्रंप ने भी संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में जो भाषण दिया उसमें भारत पाकिस्तान या कश्मीर का ज़िक्र तक नहीं किया. ऐसा नहीं है कि उनके लिए आतंकवाद मुद्दा नहीं है, ट्रंप ने ईरान को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश बताया लेकिन इसी मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरे रहने की भारत की कूटनीति का अपने भाषण में नोटिस तक नहीं लिया. ईरान के हसन रुहानी ने साफ-साफ कह दिया कि वह अपने शत्रु देश से बात नहीं करेगा. हम किसी दबाव में बात नहीं करेंगे. ईरान आर्थिक आतंकवाद का सामना कर रहा है और मज़बूती से मुकाबला कर रहा है. अमरीका के मित्र देश सऊदी अरब ने ईरान की आलोचना की है. फ्रांस के राष्ट्रपति मैंक्रों और जर्मन चांसलर एंजिला मरकील ने कहा कि अमरीका और ईरान के बीच संवाद होना चाहिए. विश्व नेताओं में साहस की कमी है. उन्हें जवाबदेही लेनी होगी और शांति कायम करनी होगी. ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोलसेनारो तो बोल कर चले गए कि एमेज़ान का जंगल धरती का फेफड़ा ही नहीं है और जंगलों के जलने की घटना को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया. टर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा कि परमाणु शक्तियों और ग़ैर परमाणु शक्तियों में भेदभाव मिटना चाहिए. परमाणु शक्तियों पर पूरी तरह रोक लगे या सबके लिए मैदान खुला हो. एर्दोगन ने कहा है कि कश्मीर की समस्या का समाधान बातचीत होनी चाहिए. टर्की एकमात्र देश है जिसने पाकिस्तान का समर्थन किया है. इज़राइल ने टर्की को झूठा कहा है. टर्की ने खुद कुर्द का नरसंहार किया है. कोलंबिया के राष्ट्रपति ने कहा कि वह वेनेज़ुएला की कारगुज़ारियों के खिलाफ दस्तावेज़ सौंपेगा. सब एक दूसरे की हिंसा, युद्ध और नरसंहार की बात कर रहे हैं.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014, 2015 के बाद 2019 में यानि तीसरी बार आम सभा में भाषण दे रहे थे. 2014 के अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र को सुधार करना चाहिए. 20वीं सदी की ज़रूरतों के हिसाब से बने संगठन को 21वीं सदी में प्रासंगिक नहीं रखा जा सकता. अगर बदलाव नहीं किए गए और यह सुधार 2015 तक में होना चाहिए. सुरक्षा परिषद का विस्तार 2019 तक नहीं हुआ है. अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल, भूटान और ट्यूनिशिया में लोकतंत्र की बहाली का ज़िक्र किया था. अफ्रीका और लैटिन अमरीका का भी ज़िक्र था. तब उन्होंने पाकिस्तान को लेकर कहा था कि वे आतंक की छाया से मुक्त शांति के माहौल में पाकिस्तान से गंभीर बातचीत के लिए तैयार हैं. इसके लिए पाकिस्तान को भी माहौल बनाने में मदद करनी होगी. 2014 के भाषण में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि इस वक्त जम्मू कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों की मदद करने में लगे हैं और पाक अधिकृत कश्मीर में भी मदद की पेशकश की है. 2014 से लेकर 2019 के बीच न वो माहौल बना और न बातचीत हुई. इस बार के भाषण का हिस्सा सुनिए. प्रधानमंत्री का भाषण स्वच्छता और आयुष्मान, आधार, जनधन योजना के असर से शुरू होता है न कि मीडिया के अनुसार कश्मीर कश्मीर से. लेकिन उन्होंने कश्मीर का ज़िक्र नहीं किया, उन्होने सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन की बात कही और गांवों में सवा लाख किमी सड़क बनाने और 15 करोड़ घरों को नल से जोड़ने की बात की. भारत को टीबी मुक्त करने के लक्ष्य की बात की.

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह भी बताया कि कैसे उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोलर अलायंस बनाया है. प्राकृतिक आपदा को लेकर ग्लोबल अलायंस बनाने की ज़रूरत है. कहा कि भारत जलवायु संकट को हल करने में अग्रणी देश रहेगा. उमा शंकर सिंह न्यूयार्क से अपनी टिप्पणी भेज रहे हैं।

प्रधानमंत्री का भाषण कश्मीर से मुक्त था, जगत कल्याण का आह्वान कर रहा था. उन्होंने पाकिस्तान को भी निशाना नहीं बनाया लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान प्रधानमंत्री से लेकर आरएसएस तक को निशाना बनाया. संयुक्त राष्ट्र के मंच का प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ इस्तमाल किया. गुजरात दंगों से लेकर संघ के एजेंडा के बारे में बात की. कश्मीर से पहले जलवायु संकट का मसला उठाया कहा कि उसके ग्लेशियर पिघल रहे हैं. अमीर देशों में बने टैक्स हेवन विकासशील देशों को लूट रहे हैं और गरीब बनाते जा रहे हैं. उसके बाद इमरान ने दुनिया भर में मुसलमानों के खिलाफ फैलाए जा रहे भय और धारणा का भी जिक्र किया और कहा कि सितंबर 11 की आतंकी हमले के बाद इस्लामोफोबिया बढ़ा है. पश्चिम के कुछ देशों और नेताओं ने इस इस्लामोफोबिया को फैलाया है जिसे रोकने में या समझाने में मुस्लिम देशों के नेता भी नाकाम रहे. आतंक का मज़हब से लेना देना नहीं है. सभी समुदायों में रेडिकल तत्व हैं. लेकिन उनका उनके मज़हब से लेना देना नहीं. बताया कि अफगानिस्तान के लिए मुजाहिद ग्रुप को पश्चिम के पैसे से पाकिस्तान ने ट्रेंड किया जिन्हें सोवियत आतंकी कहते हैं और पाकिस्तान उन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहता है. अब उन्हें पश्चिम आतंकी कह रहा है. इमरान बताते रहे कि सत्ता में आने के बाद इन संगठनों को ध्वस्त करेंगे, पहले भी कहा गया था कि मगर वो संगठन बने रहे. इमरान ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अपना आब्ज़र्वर भेजे और देखे कि पाकिस्तान ने इन मिलिटेंट संगठनों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है. जाहिर है भारत इस सफाई से संतुष्ट नहीं होगा. इमरान ने कहा कि सत्ता में आते ही भारत की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को पहले प्रेसिडेंट मोदी कह गए बाद में सुधार कर लिया.

संयुक्त राष्ट्र में नेताओं की चिन्ता में उनकी अपनी छवि है, शक्ति प्रमुख दिखने की बेताबी है, कूटनीति है जलवायु संकट की चिन्ता कम कम है. मगर इस सम्मेनल की खासियत यही रही कि आम लोगों ने जलवायु संकट को उभारने का प्रयास किया है. अमरीका, चीन और भारत दुनिया के तीन सबसे बड़े कार्बन प्रदूषण फैलाने वाले देश माने जाते हैं. इनसे काफी निराशा हुई है. जलवायु सम्मेलन में उन देशों ने ज्यादा कमिटमेंट दिखाया है जो जलवायु संकट के खतरे की चपेट में हैं. आइलैंड देशों में ज्यादा बेचैनी है क्योंकि अगर समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ी तो ये देश डूब जाएंगे. 70 छोटे देशों ने ज्यादा कठोर वादा किया है कि वे जल्दी कार्बन उत्सर्जन खत्म कर देंगे. मार्शल आइलैंड की प्रेसिडेंट ने कहा है कि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन खत्म कर देंगे. इस तरह का वादा किसी ने नहीं किया. शुक्रवार को 28 देशों में जलवायु संकट को लेकर प्रदर्शन हुआ है. पर्यावरणविद और समुद्री जैव विविधता का अध्ययन करने वाले रेचल कार्सन ने साइलेंट स्प्रींग नाम से रिपोर्ट तैयार की थी. 27 सितंबर 1962 को साइलेंट स्प्रींग का प्रकाशन हुआ था. उसी की याद में दुनिया भर में प्रदर्शन हुआ. इस प्रदर्शन का नाम अर्थ स्ट्राइक है. भारत में स्कूली बच्चों का प्रदर्शन जगह जगह हुआ. कई जगहों पर आज हुआ है कुछ जगहों पर 26 सितंबर को हुआ. गुरुग्राम में अलग-अलग स्कूलों से 350 के करीब छात्रों ने मानव श्रृंखला बनाई और मार्च किया. ये बच्चे चाहते है कि जलवायु संकट को लेकर तुरंत कदम उठाए जाएं. अरावली पहाड़ को बचाने के लिए पंजाब सरकार से गुहार लगाई है. 9 महीने से ये बच्चे अलग-अलग समय में प्रदर्शन करते रहे हैं. इन बच्चों ने सोशल मीडिया अभियान भी चलाया है. वोट फॉर योर चाइल्ड. अपने बच्चे के लिए वोट करें. शुक्रवार को अलग-अलग देश में स्कूल के छात्रों ने आंदोलन किया. न्यूज़ीलैंड में जलवायु हड़ताल हुई. बड़ी हड़ताल हुई है. 10000 स्कूली बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया. उनके साथ बड़े भी दफ्तर छोड़ कर सड़क पर उतरे. न्यूज़ीलैंड के 40 शहरों में प्रदर्शन हुआ है. ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अमरीका में भी प्रदर्शन हुआ है.

जलवायु संकट या प्रदूषण की समस्या को हम मज़ाक में ले रहे हैं. बंगलुरू के Sri Jayadeva Inst of Cardiovascular Sciences and Research ने अपने शोध में पाया है कि दस साल में 40 साल से कम उम्र के लोगों में हार्ट अटैक 22 प्रतिशत अधिक हो गया. पहली बार हार्ट अटैक के शिकार मरीज़ों का उम्र के हिसाब से अध्ययन किया गया है. जुलाई 2019 में हार्ट अटैक के जितने मरीज़ इस अस्पताल मे भर्ती हुए हैं उनमें से 35 प्रतिशत 50 साल से कम के हैं. यह अध्ययन बता रहा है कि नौजवान लड़के और लड़कियां हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं. सिर्फ इस अस्पताल में भर्ती हुए 2400 मरीज़ों पर अध्ययन किया गया है जिन्हें हार्ट अटैक आया था.  यह सभी मरीज़ दो साल के भीतर Sri Jayadeva Inst of Cardiovascular Sciences and Research के प्री-मैच्योर हार्ट डिज़ीज़ डिविज़न में भर्ती हुए हैं. इसके प्रमुख डॉ. राहुल पाटिल ने शोध किया है. उनका कहना है कि हर महीने औसतन 120 नौजवान हार्ट अटैक की शिकायत लेकर आ रहे हैं. युवाओं में हार्ट अटैक महामारी की तरह फैल गया है. टैक्सी चलाने वाले और आईटी सेक्टर में काम करने वाले नौजवान वायु प्रदूषण के कारण हार्ट अटैक के मरीज़ बन रहे हैं. तनाव तो कारण है मगर बड़ा कारण वायु प्रदूषण है. जो नौजवान मोटे नहीं हैं, छरहरे हैं, डायबेटिक नहीं हैं, सिगरेट नहीं पीते हैं उन्हें भी हार्ट अटैक हो रहा है. वायु प्रदूषण के कारण हो रहा है. हवा में मौजूद PM 2.5 सिगरेट न पीने वाले नौजवानों को भी बीमार कर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक बंगलुरु में तकरीबन 11500 किमी सड़क है, उनमें से तकरीबन 45 फीसदी सड़कों पर किसी न किसी तरह का निर्माण कार्य चल रहा है. लोक परिवहन बेहद खराब है. 1 करोड़ 20 लाख की आबादी हो गई है. 80 लाख यहां पर रिजस्टर्ट गाड़ियां हैं. ऊपर से तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश से हर रोज़ बड़ी संख्या दुपहहिया वाहन आते हैं. इन कारणों से प्रदूषण बेहिसाब है. वायु प्रदूषण के मामले में भारत के कई शहर दुनिया भर में सबसे प्रदूषित हैं. उन शहरों में क्या हाल होगा, हमें पता नहीं.

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