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This Article is From Aug 21, 2014

बाबा की कलम से : पीएम के सामने सीएम की हूटिंग, बदल जाएगा संघीय ढांचे का मतलब

Manoranjan Bharti, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 15:12 pm IST
    • Published On अगस्त 21, 2014 18:57 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 15:12 pm IST

झारखंड में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में वहां के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की हूटिंग हुई। इसके पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के साथ कैथल में भी यही हुआ। ये भारतीय राजनीति के नए दौर का एक और उदाहरण है। बीजेपी नेताओं की दलील है कि लोगों में कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा है।

शायद 18 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों का इंतजार करना चाहिए कि लोगों का कितना गुस्सा किसके प्रति है। यह भी सच है कि बीजेपी के साथ-साथ संघ के हौसले भी बुलंद हैं और जहां तक प्रधानमंत्री की सभा में गैर-बीजेपी नेताओं की हूटिंग की बात है तो यह वह वर्ग है जो किसी भी भीड़ का हिस्सा बन जाता है। यदि यह तय हो कि टीवी पर शक्ल आने की गारंटी है, लेकिन गंभीर पहलू यह है कि एक संघीय ढांचे में काम करते वक्त अलग-अलग दलों के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक साथ मंच पर आते रहेंगे।

हां, मंच बदल सकता है और चेहरा भी। वैसे में प्रधानमंत्री के मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर काम करने के दावों में कितना दम रह जाता है। हूटिंग के डर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करने से मना कर दिया। ऐसे में अब प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया का सबको इंतजार रहेगा क्योंकि करीब 14 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी की भले ही अब भूमिका बदल गई है। मगर, वे एक मुख्यमंत्री की मानसिकता को अच्छी तरह जानते हैं।

लोगों को अभी याद होगा कि किस तरह वाजपेयी ने एक मुख्यमंत्री को राजधर्म की याद दिलाई थी। मगर इस बार यह सब जनता या कहें बीजेपी कार्यकर्ताओं की तरफ से किया जा रहा है। एक और नई चीज देखने को मिली कि प्रधानमंत्री के किसी समारोह में दूरदर्शन के अलावा एक और व्यवस्था की गई थी, जिससे सभी निजी चैनलों को फीड मुहैया कराई गई।

अभी तक यह किसी पार्टी की रैली के दौरान होता था और बीजेपी और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान इसका खूब इस्तेमाल किया। जब दूरदर्शन इस तरह के कार्यक्रमों का प्रसारण करता रहा तब इस तरह के शोरगुल या कहें हूटिंग को प्रमुखता से जगह नहीं मिलती थी। यही बात लोकसभा और राज्यसभा के सीधे प्रसारण में भी देखने को मिलती है। खूब शोरगुल के दौरान सदन की कार्यवाही के दौरान कैमरा स्पीकर पर ही फोकस रहता है।

मगर वक्त-वक्त की बात है। राजनीति में काफी कुछ बदल रहा है और बदल रहे हैं राजनीति के मायने और साथ ही बदल जाएगा हमारे संघीय ढांचे का मतलब। जिसकी भी सरकार केन्द्र में होती है वह मजबूत केन्द्र की बात करता है और राज्य अपने हक की और अपने साथ भेदभाव का आरोप खूब लगाते रहे हैं। ऐसे में हूटिंग की कुछ घटनाओं ने जो शुरुआत की है उसमें मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री की सभा में जाने से कतरा रहे हैं और यह दूरियां पाटने का नहीं बढ़ाने का ही काम करेगा।

फिलहाल हालात की गंभीरता को समझते हुए केंद्र सरकार ने रिश्तों को पटरी पर लाने की पहल की है। वेंकैया नायडू ने पृथ्वीराज चव्हाण से फोन पर बात की कि वह प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में ज़रूर रहें। लेकिन चव्हाण ने न जाने का ही फ़ैसला किया। शायद उन्हें सीधे नरेंद्र मोदी से दखल का इंतज़ार हो।

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