GST पर बहस हो रही है, क्या यह बहस विपक्ष के बीच हो रही है या जनता भी तरह-तरह के टैक्स से त्रस्त महंगाई और GST पर बहस कर रही है? वह जनता कहां चली गई, जो महंगाई से परेशान हुआ करती थी. उसकी इस परेशानी को लेकर फिल्में बना करती थीं. गाने लिखे जाते थे. सीरियल बना करते थे. 2008 में जब आर्थिक मंदी आई थी, उस वक्त एक फिल्म आई थी, फंस गए रे ओबामा. 2010 में पीपली लाइव आई जिसका एक गाना बहुत मशहूर हुआ, महंगाई डायन खाए जात हैं. उस समय महंगाई को लेकर आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन में लोग पहुंच रहे थे, इसके गाने को बजा रहे थे. महंगाई इतनी लोकप्रिय हो गई कि पिपली लाइव के बाद 2013 में एक और फिल्म आती है सारे जहां से महंगा. आज वैसे भी विश्व श्रोता दिवस है, तो आप साथ देंगे तो आपको काफी कुछ सुनाई देगा. केवल गाना ही नहीं, डायलॉग भी और इसी के सहारे जीएसटी का ऐसा विश्लेषण करेंगे कि आप यू ट्यूब में जाकर दस बार देखेंगे.
यूट्यूब पर बहुत से लोग लाइव देख भी रहे हैं. सारे जहां से महंगा. दिलचस्प नाम है. निर्देशक अंशुल शर्मा की फिल्म है और अभिनय संजय मिश्रा और अन्य कलाकारों का. इस फिल्म को देखते ही लगता है कि आप फिल्म देखने नहीं बल्कि महंगाई के खिलाफ किसी प्रदर्शन में गए हैं. बल्कि महंगाई को लेकर जो उस समय बोला जा रहा था, वैसे ही डायलाग इस फिल्म में हैं. पता चलता है कि उस वक्त महंगाई को लेकर समाज और सिनेमा किस तरह से बातें किया करते थे. फिल्म का शुरूआत हिस्सा महंगाई की बात से आगे बढ़ता है. ध्यान से सुनिएगा, आपका काफी कुछ याद आने वाला है. “जानते हो देश में क्यों खाना पीना इतना महंगा हो गया है, क्योंकि हमें महंगी चीज़ें बेच कर सारा पैसा विदेशों में जमा हो रहा है. देश में पैसा नहीं है बिल्कुल भी, पता है हमारा कितना पैसा स्विस बैंक में जमा है, 280 लाख करोड़.280 के बाद कितनी बिंदियां लगीहैं, ये तो अंडे की दुकान लगा रखी है, ये सारा पैसा हमारा पैसा है, हमने ही तो इन्हें पैसे दिए हैं.काला धन है. अभी तो कह रहे थे कि हमारा पैसा है, हमारा नहीं है इसलिए तो काला है, हमसे तो ले लिया न.जानते हो अगरये सारा पैसा हमारे देश में वापस आ जाए तो देश के हर आदमी को 4 लाख मिल सकते हैं, जी हां हर आदमी को चार लाख और और औरतों को 10 रुपये. “
हुआ भी यही दस रुपये भी नहीं मिले, काला धन कितना आया किसी को बता नहीं, पर क्या यह संयोग नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के कहने से पहले फिल्म के ज़रिए यह बात घर घऱ में पहुंच गई थी कि काला धन आएगा तो हर आदमी के खाते में पैसे आएंगे.
अमित शाह ने इसी बयान को जुमला बता दिया था. लेकिन क्या यह रहस्य जैसा नहीं लगता कि जो डायलाग सिनेमा में पहले आ चुका था, वही राजनीति में छा जाता है. क्या यह सब अलग अलग हो रहा था, यहां संगठित रुप से होने लगा था? लोग फिल्मों के ज़रिए भी काला धन के आ जाने पर अपने खाते में चार चार लाख रुपये आने का सपना देखने लगे और वही सपना उन्हें राजनीति के ज़रिए भी दिखाया जाने लगता है. 30 मार्च 2014 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया किया. कांग्रेस सरकार काला धन लाने से हिचक क्यों रही है? क्योंकि उन्हें पता है कि किसका है. NDA विदेशों में जमा काला धन लेकर आएगी.
बताइये एक एक गरीब आदमी को 15-20 लाख रुपये यूं ही मिल जाने वाले थे अब आम आदमी को पता ही नहीं है कि कितना पैसा उसकी जेब से टैक्स के रुप में निकल गया. बेशक जनता पुराने बयानों पर ध्यान नहीं देती है लेकिन उन बयानों का मतलब तो है ही. इसी तरह जीएसटी पर बयान है कि गेहूं चावल लस्सी छाछ पर जीएसटी नहीं है, लेकिन अब उस पर जीएसटी है.
17 जून 2022 के स्क्रोल डॉट इन की वेबसाइट पर छपा है कि स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा रुपया 14 साल में सबसे अधिक है. 30,500 करोड़ हो गया है.पिछले साल 20, 700 करोड़ जमा है.इसे भी ध्यान से सुने कि स्विस बैंक में जमा राशि काला धन नहीं है, ऐसी कोई जानकारी इस रिपोर्ट में नहीं है, बस ये जानकारी है कि स्विस बैंक में भारतीयों का जमा पैसा काफी बढ़ गया है. 30,500 करोड़ हो गया है. ये और बात है कि 2014 के पहले स्विस बैंक में जमा हर पैसे को काला धन कहा जाता था और राशि बताई जाती थी कि 2 लाख करोड़ या कुछ भी.आज तक उतनी राशि का पता नहीं चला.दिसंबर 2021 में राज्यसभा ने कहा था कि पिछले पांच साल में विदेशी बैंकों जमा कितना पैसा काला धन है, इसकी कोई जानकारी नहीं लेकिन तब भारत की जनता एक झूठ को गले लगा रही थी, आने वाले समय में झूठ के साथ गले लगे रहने के लिए.आपको याद तो है न कि प्रधानमंत्री बनते ही मोदी सरकार का पहला फैसला क्या था.काला धन का पता लगाने के लिए SIT का गठन करना. उसकी रिपोर्ट कहां है, थोड़ा गूगल सर्च आप भी कीजिए.
देश में पैसा नहीं है बिल्कुल भी, पता है हमारा कितना पैसा स्विस बैंक में जमा है, 280 लाख करोड़.280 के बाद कितनी बिंदियां लगीहैं, ये तो अंडे की दुकान लगा रखी है, ये सारा पैसा हमारा पैसा है, हमने ही तो इन्हें पैसे दिए हैं.काला धन है. अभी तो कह रहे थे कि हमारा पैसा है, हमारा नहीं है इसलिए तो काला है, हमसे तो ले लिया न.जानते हो अगरये सारा पैसा हमारे देश में वापस आ जाए तो देश के हर आदमी को 4 लाख मिल सकते हैं, जी हां हर आदमी को चार लाख और और औरतों को 10 रुपये. “ सारे जहां से महंगा का उदाहरण इसलिए दिया ताकि आप याद कर सकें कि एक वक्त था जब फिल्मों में महंगाई को लेकर राजनीतिक पार्टी का घोषणापत्र ही पढ़ा जा सकता था और कोई रोक-टोक नहीं थी इस फिल्म का प्रमोशन मशहूर टीवी सीरीयल तारक मेहता का उल्टा चश्मा में भी होता है. हम उस सीरियल का वीडियो तो नहीं दिखा सकते लेकिन सारे जहां से अच्छा का प्रमोशन तारक मेहता का उल्टा चश्मा में होता है.
सीरियल के भीतर का सीन ऐसा होता है कि फिल्म के प्रचार के लिए निकले संजय मिश्रा तारक मेहता से कहते हैं कि फिल्म महंगी नहीं है, महंगाई पर है. तारक मेहता कहते हैं कि महंगाई से उनकी कमर टूट गई है और एक किरदार कहता है कि महंगाई के कारण उसकी कमर ही दिखनी बंद हो गई है.क्या ऐसी फिल्में बन सकती हैं जिसमें नायक लाल किले पर चढ़ कर कहता हो कि टैक्स से दम घुट रहा है. लोग हंसने के बजाए उस पर मुकदमा कर देंगे और फिल्म निर्देशक के अलावा कलाकारों को घर में रहना मुश्किल कर देंगे. या ऐसा नहीं होगा, आप ही बेहतर बता सकते हैं.इस फिल्म का एक गाना बेहद स्मार्ट है. लेफ्ट से लग गई. सेंटर से लग गई. राइट से लग गई.सेंटर से लग गई.गाना लिखने वाला आर्थिक नीतियों की ठीक समझ रखता होगा.
सारे जहां से महंगा, अब तो कोई ऐसा नाम रखेगा तो कहीं उस पर केस न हो जाए कि भारत का अपमान कर दिया. हर दौर का सिनेमा अलग होता है लेकिन सिनेमा में उस दौर की जनता की बात पहुंच ही जाती है. इस दौर में भले महंगाई पर फिल्म न बने लेकिन क्या जनता महंगाई पर इतनी भी बात नहीं करती कि कोई अपनी फिल्म का डायलाग ऐसा ही लिख दे कि यहां की हवा पर भी जीएसटी और सांस पर पुलिस. ये वो भारत है जहां चीफ जस्टिस को भी कहना पड़ता है कि बेमतलब ही किसी को उठाकर जेल में डाल देते हैं. सेंशर क्या करेगा, अलग विषय है लेकिन क्या कोई फिल्मकार ऐसे संवाद को शामिल करने का रिस्क भी उठाएगा?यही नहीं अब तो मुहावरों पर भी आफत है.अब आप महंगाई में आटा गीला नहीं कर पाएंगे. आपको सोचना चाहिए था कि अगर इतनी महंगाई में आटा गीला करेंगे तो एक दिन सरकार की नज़र आटे पर पड़ जाएगी.आटे पर पांच प्रतिशत जीएसटी के बाद महंगाई में आटा गीला करना आसान नहीं होगा.
आपको याद होगा कि गरमकर खाने के लिए तैयार पराठे पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगी थी, किसी ने इसे Authority of Advance Ruling के कर्नाटक बेंच में चुनौती दी, कोर्ट ने फैसला दिया कि तैयार पराठे को गर्म कर खाना होता है, इसलिए फैसला सही है. जब आप पराठे पर जीएसटी दे सकते हैं तो आटे पर क्यों नहीं. यही नहीं पवन ऊर्जा से चलने वाली आटा चक्की पर भी जीएसटी 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दी गई है.नवंबर 2019 में रिपब्लिक टीवी के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पहले गेहूं, चावल, दही, लस्सी, छाछ इस पर भी टैक्स लगता था, आज ये सब जीएसटी के बाद टैक्स फ्री हो गए हैं. जुलाई 2022 में इन सभी पर जीएसटी लग गई है. आपकी कमाई कितनी घटी है और तरह-तरह के टैक्स कितने बढ़े हैं, इन सब पर ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिलेगा.इस वक्त जो भी जीएसटी को लेकर रो रहे हैं, उन्हें जल्दी ही गर्व करने का मौका मिलने जा रहा है.
सभी देशवासियों के लिए एक नया अभियान आ रहा है, हर घर तिरंगा. राष्ट्र ध्वज, हाथ से बना हो या मशीन से, पोलियेस्टर से बना हो या किसी अन्य कपड़े से, उसे जीएसटी से बाहर रखा गया है. हर घर तिरंगा 13 से 15 अगस्त तक चलेगा. इन तीन दिनों के दौरान 20 करोड़ से ज्यादा घरों पर तिरंगा फहराया जाएगा.PIB की प्रेस रिलीज़ में लिखा है कि तीन दिनों तक लोगों को तिरंगा फहराना होगा और तिरंगे के माध्यम से फिर से अपने आप को भारत माता की सेवा में समर्पित करेंगे. याद रखें आपको फिर से भारत माता की सेवा में समर्पित करना है. सरकार मानती है कि यह कार्यक्रम देश में देशभक्ति की एक नई भावना जगाने में बहुत बड़ा योगदान देगा. लोगों से कहा जाएगा कि 22 जुलाई से ही देश का प्रत्येक व्यक्ति फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट पर तिरंगा लगाएं. harghartiranga.com नाम से एक वेबसाइट बना दी गई है,कहा गया है कि अगर आप अपने घर पर झंडा फहराकर भारत सरकार की इस डेडीकेटेड वेबसाइट पर अपनी सेल्फी डालते हैं तो 13 तारीख से ही इस अभियान को गति मिल जाएगी.
दो साल बाद ऐसा अभियान आ रहा है.आप भी मिस कर रहे होंगे. ज़माना हो गया जब आपने 22 मार्च 2020 को कोरोना को भगाने के लिए शाम पांच बजे पांच मिनट के लिए दरवाज़ों, खिड़कियों और बालकनी में खड़े होकर थाली बजाई थी.5 अप्रैल 2020 को आखिरी बार आपने रात के नौ बजे 9 मिनट के लिए दीया जलाया था. दो साल के बाद ऐसा सामूहिक अभियान आ रहा है. जिसमें आप टैक्स से लेकर हर तरह का दुख भूल कर एक सामूहिक उत्सव के उत्साह में समाहित हो जाएंगे. एक बार फिर से एक राष्ट्र एक व्यवहार का प्रदर्शन करते हुए आपको प्रदर्शन करने का मौका और सौभाग्य दिया जा रहा है. घर घर मोदी राजनीतिक नारा था लेकिन अब हर घर तिरंगा नारा आपके भीतर राष्ट्र के प्रति जज़्बा पैदा करने आ रहा है. जनता के लिए मुश्किल वक्त है. वह दही पनीर और आटा पर जीएसटी लगने के विरोध की तैयारी करे या हर घर तिरंगा की. व्यापारी और विपक्ष तो आंदोलन करेंगे लेकिन जनता की भागीदारी हर घर तिरंगा में होगी क्योंकि हर घर में, हर नागरिक तिरंगा को प्यार करता है. वह नहीं चाहेगा कि कोई उस पर संदेह करे.20 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने के लिए तिरंगा की सप्लाई कम नहीं पड़ेगी.
इसके लिए सरकार ने हर घर तिरंगा डॉट कॉम पर सप्लायरों के नाम और फोन नंबर भी दे दिए हैं. 11 सप्लायरों में से चार गाज़ियाबाद,दिल्ली, कोलकाता और गुरुग्राम के हैं और बाकी पांच सूरत और अहमदाबाद के हैं. जिन तीन सप्लायर के शहर के नाम नहीं दिए गए हैं वे भी सूरत के हैं. सूरत टेक्सटाइल का सेंटर भी है. एक झंडे की कीमत 15 से 50 रुपये बताई गई है. अगर आप 25 रुपये के औसत से हिसाब लगाएं तो 20 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने के लिए करीब 500 करोड़ के झंडे बिकेंगे. चूंकि कई जगहों पर आयोजन भी होता तो उसका खर्चा भी शामिल कर सकते हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 2000 संरक्षित इमारतों पर ध्वाजारोहण का कार्यक्रम बनाया है, जहां आस-पास के लोगों को आमंत्रित किया जाने वाला है.ऐसा नहीं है कि जीएसटी या अन्य मुद्दों से भटकाने के लिए हर घर तिरंगा अभियान लाया गया है. जब यह अभियान नहीं था तब भी भारत की जनता ने दो तीन साल तक पेट्रोल और डीज़ल पर भयंकर उत्पाद शुल्क देकर दिखा दिया था कि वह देश के लिए टैक्स देने में कभी पीछे नहीं हटेगी. विपक्ष जनता की भावना को न तो तब समझ पाया और न अब समझ पा रहा है. मार्च और दिसंबर 2021 में सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा में जवाब दिए हैं. उसके अनुसार, 2014-15 में पेट्रोल, डीज़ल और गैस पर उत्पाद शुल्क से 74,158 करोड़ रुपये टैक्स मिले थे.
2016-17 में पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क से वसूली 2 लाख 42 हज़ार करोड़ से अधिक हो गई. 2020-21 में पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क से 3 लाख 72 हज़ार 970 करोड़ टैक्स की वसूली हुई. 2019-20 की तुलना में 2020-21 में 66 प्रतिशत ज़्यादा उत्पाद शुल्क से वसूली हुई थी. दिसंबर 2021 में सरकार ने राज्य सभा में यह बताया था कि मार्च 2020 से लेकर मई 2020 में पेट्रोल पर 60 परसेंट टैक्स बढ़ा दिया. डीज़ल पर तो टैक्स 101% बढ़ा था. जो जनता 60 से 100 परसेंट टैक्स बढ़ने को स्वीकार कर सकती है इसका मतलब है कि वह 12 से 18 परसेंट जीएसटी दे सकती है. लेकिन उस समय मंत्रीगण उत्पाद शुक्ल और 100 रुपया लीटर पेट्रोल का खूब बचाव करते थे.कोई कहता था कि मुफ्त अनाज योजना चल रही है इसलिए पेट्रोल महंगा है, कोई कहता कि मुफ्त टीका दिया जा रहा है इसलिए पेट्रोल पर टैक्स ज्यादा है. आप से ही पैसा लेकर आपको जो चीज़ दी जा रही थी उसे मुफ्त कहा जा रहा था और आपको सुनाई नहीं दे रहा था.
आज विश्व श्रोता दिवस है, आज तो सुन लीजिए. इसी तरह जीएसटी का बचाव किया जा रहा है. कोई कह रहा है कि वित्तीय घाटा कम करने के लिए टैक्स का आधार बढ़ाना ज़रूरी है.विपक्ष सकारात्मक सुझाव दे, जीएसटी बढ़ाने के लिए दूसरा रास्ता नहीं. पेट्रोल पर 60 परसेंट और डीज़ल पर 101 परसेंट टैक्स बढ़ाने का अगर बचाव हो सकता है तो 5 और 18 परसेंट जीएसटी का तो और भी आसानी से हो जाएगा.ट्विटर पर जीएसटी की नई दरों के समर्थक खूब तर्क दे रहे हैं. जब पूरी आबादी का 6-7 प्रतिशत हिस्सा प्रत्यक्ष कर देता है तो देश कैसे चलेगा? GST की की दरों की आलोचना करने से पहले वित्तीय घाटा का बेहतर समाधान भी तो लेकर आइये? सरकार खुशी खुशी उसे लागू कर देगी. रोना-धोना बंद करें, केवल समाधान बताएं. ज़रूरी चीज़ों पर GST लगाने के सरकार के फैसले का स्वागत करता हूं. टैक्स कम होना चाहिए लेकिन सभी के लिए होना चाहिए. वित्त मंत्री से आग्रह है कि बिना एसी वाले परिवहन पर भी 5 प्रतिशत टैक्स लगाएं.
@nishantlakkar - तो आप क्या चाहते हैं, श्रीलंका ने जो किया उसकी तरह रेवड़ियां बांटें? टैक्स घटा दें? आपके सुझाव क्या हैं, टैक्स बढ़ाने के अलावा देश के मुखिया और क्या कर सकते हैं? क्या आप इस्तीफे के अलावा कुछ और सुझाव दे सकते हैं? @bhuvaneshpraja1 क्या सभी MLA MP जनता के टैक्स से free की रेवड़िये नही लेते है. आप भी तो जनता के पेसो से सभी VIP सुविधा लेते हो. आम पब्लिक बेचारी अपना परिवार को कम खिलाकर के tax भर्ती है. ओर सुविधाएं अब जाकर कुछ ढंग की हुई है कहि कहि केवल. @PMOIndia
@anilkohli54 इस ट्वीट में अनिल कोहली ने लिखा है कि GST काउसिंल में विरोध क्यों नहीं किया?संसद में व्यवधान डालना देश के संसाधनों को बर्बाद करना है. यह विपक्ष का दोहरापन है कि जीएसटी काउंसिल में जीएसटी दरों का समर्थन करता है, और संसद में विरोध. यह केवल केंद्र सरकार का अकेले का फैसला नहीं है. क्या विपक्ष की सरकारों ने जीएसटी काउंसिल में जीएसटी दरों का समर्थन किया है? जीएसटी काउंसिल की वेबसाइट पर 47 वें बैठक के मिनट्स नहीं हैं. आम तौर पर मिनट्स डाल दिए जाते हैं जिससे अंदाज़ा हो जाता है कि किसने क्या कहा. 44 वें दौर की बैठक के बाद के मिनट्स नहीं हैं. आप भी चेक कर सकते हैं. लोग सवाल कर रहे हैं कि वित्तीय घाटा इतना ज़्यादा है कि टैक्स बढ़ाए बिना काम नहीं चलेगा लेकिन इस पर बहस नहीं है कि यह घाटा क्यं इतना अधिक पहुंचा है?
यह सवाल तो है कि इतना टैक्स देने के बाद क्या जनता की आर्थिक शक्ति मज़बूत हो गई है, जिसके कारण उस पर तरह-तरह के टैक्स का भार डाला जा रहा है? एक तरफ जीएसटी का संग्रह बढ़ रहा है तब फिर टैक्स क्यों बढ़ाया जा रहा है, जीएसटी सपोर्टर शायद इस पर भी प्रकाश डाल सकते हैं.द वायर में प्रो अरुण कुमार ने लिखा है कि अगर जीएसटी सही तरीके से लागू हो रही है तब संगठित क्षेत्र की कर चोरी क्यों बढ़ रही है.मीडिया में आप फर्ज़ी कंपनियां बनाकर हज़ारों करोड़ रुपये की जीसटी चोरी की खबरें देखते ही रहते होंगे.पैक्ड दही, लस्सी, बटर मिल्क, पर जीएसटी लगने का विरोध क्यों हो रहा है.14 जुलाई 2017 के बिजनेस स्टैंडर्ड में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली का बयान छपा है. उन्हीं के कार्यकाल में 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू हुई थी. तब राहुल गांधी मांग कर रहे थे कि जीएसटी की अलग अलग दरों की जगह एक दर हो.
इसके जवाब में अरुण जेटली ने कहा था कि खाने पीने की चीज़ों पर ज़ीरो टैक्स लगना चाहिए. आम आदमी से जुड़ी चीज़ों पर न्यूनतम जीएसटी 5 प्रतिशत की होनी चाहिए. हम सभी आइटम पर एक दर से टैक्स नहीं लगा सकते. क्या गेहूं, चावल, चीनी पर मर्सिडिज़ कार के बराबर टैक्स लगाया जा सकता है. फिर इन पर टैक्स क्यों लगाया गया है? आज हीरे पर जीएसटी बढ़ाने के बाद भी 1.5% प्रतिशत है और स्याही पर 18 प्रतिशत.ये 2017 की बात है, 2022 में बात बदल चुकी है. यही तो अमृत काल है कि स्याही पर टैक्स ज्यादा है,हीरे पर कम.मुकुल गुप्ता जीएसटी से जुड़े मामलों के जानकार हैं.उनका कहना है कि 28 जून 2017 के नोटिफिकेशन के मुताबिक 149 आइटम को जीएसटी से बाहर रखा गया था. 13 जुलाई 2022 के नोटिफिकेशन के अनुसार 137 आइटम ही जीएसटी मुक्त हैं. इस दौरान 16 आइटम पर जीएसटी लग गई तो 4 आइटम से जीएसटी हट भी गई. मुकुल गुप्ता का मानना है कि आम लोगों की क्रय शक्ति घटी है, ऐसे में उसकी ज़रूरत की चीज़ों पर जीएसटी का भार उचित नहीं है.
व्यापारियों के संगठन कैट(Confederation of all India traders) ने कहा है कि वित्त मंत्रालय ने सफाई दी है कि 25 किलो से ऊपर की पैकिंग पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. व्यापारी इसे राहत मान रहे हैं कि जो इस टैक्स के दायरे में आएंगे उन्हें इनपुट क्रेडिट मिल जाएगा और खुली सामग्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. भारत में हाथ से खाने की संस्कृति है.चम्मच और कांटा चम्मच पर जीएसटी 12 से 18 प्रतिशत हो गई है तो व्यापारी संगठन इसका क्यों विरोध हो रहा हैै.भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कारण लोग काफी लिखते हैं, इसलिए प्रिंटिंग, राइटिंग और ड्राईंग इंक,पेंसिल कटर और पेपर नाइव्स पर भी जीएसटी 12 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दी गई है.2022 में किसानों की आय दोगुनी हो चुकी है इसलिए सबमर्सिबल पंप, ट्यूबवेल टरबाइन पंप पर जीएसटी 12 से 18 प्रतिशत कर दी गई है.जिन होटलों के कमरों किराया 1000 से कम है उन पर भी जीएसटी लगेगी और अस्पतालों में 5000 से अधिक के कमरे पर 5% जीएसटी लगती है. भारत की जीडीपी में टैक्स का आधार दुनिया के अन्य विकसित देशों की तुलना में नहीं है.सरकार चाहती है कि जीडीपी का कम से कम 20 प्रतिशत तक का हिस्सा टैक्स से आए. लेकिन तब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रुप में क्यों कहा करते थे कि टैक्स का पैसा ईमानदार लोगों की जेब में आएगा. ऐसे बयानों पर आज तक सफाई नहीं आई, कि क्यों कहा, आएगा या नहीं लोग इंतज़ार करें या छोड़ दें.
फ्लैशबैक में बयानों और खबरों को देखा कीजिए, रिवर्स रीडिंग कल्चर की बहुत ज़रूरत है. आपको सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां नज़र आएगा. आज सुप्रीम कोर्ट में मोहम्मद ज़ुबैर के मामले में सुनवाई थी. ज़ुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर ने उसके खिलाफ 6 FIR रद्द करने की याचिका दायर की है.यूपी सरकार की तरफ से पेश हो रहे सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें याचिका देखने का समय नहीं मिला है इसलिए आज सुनवाई न हो.वृंदा ग्रोवर ने कहा कि इस तरह की टारगेंटिंग होनी चाहिए. वृंदा ने बताया कि ज़ुबैर पर FIR के लिए 28 राज्यों में इनाम की घोषणा हुई है.हाथरस में दो, लखीमपुरखीरी में एक, सीतापुर में एक, गाज़ियाबाद में एक मामला दर्ज हुआ है. सीतापुर मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रोटेक्शन दिया था, दिल्ली वाले मामले में भी ज़मानत मिल चुकी है 4 जुलाई को जब हाथ हाथरस में FIR हुई तब तक तब तक ज़ुबैर एक अन्य मामले में दिल्ली पुलिस की हिरासत में था.
जुबैर को जान से मारने की सीधी धमकी दी गई यूपी पुलिस ने उन ट्विटर हैंडल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.मैं उनके लिए अंतरिम जमानत की मांग कर रही हूं जैसे सीतापुर मामले में SC ने दी थी . जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि कोर्ट को नोटिस जारी करना होगा. और कहा कि बुधवार को अंतरिम ज़मानत की याचिका पर सुनवाई होगी. तब तक उनके खिलाफ कोई आक्रामक कदम नहीं उठाया जाना चाहिए.जस्टिस चंद्रचूड़ की ने कहा कि जब एक मामले में उसे अंतरिम जमानत मिलती है लेकिन किसी और मामले में गिरफ्तार हो जाता है. यह दुष्चक्र परेशान करने वाला है. इसके बाद हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को पांच मामलों में संरक्षण दिया है. यूपी पुलिस से राज्य में 5 FIR पर कार्रवाई नहीं करने के आदेश जारी हुआ है.
ज़ुबैर का केस कानून की प्रक्रिया को लेकर एक गंभीर बहस का मुद्दा बन गया है. महंगाई से लेकर मुकदमे का एक ही हाल है.अब तो चीफ जस्टिस भी कह रहे हैं कि जल्दबाज़ी में गिरफ्तारी होने लगी है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है कि उन्हें सिंगापुर जाने की इजाज़त नहीं दी गई. आम आदमी हो या आम आदमी पार्टी के नेता हों, सबकी हालत एक जैसी है.