बैंक फ्रॉड की राशि पिछले साल की तुलना में 73.8 प्रतिशत अधिक हो गई है. 2017-18 में 41,167 करोड़ का फ्रॉड हुआ था. 2018-19 में 71,542 करोड़ का फ्रॉड हुआ है. केस की संख्या के मामले में 15 प्रतिशत की वृद्धि है. फ्रॉड के 6801 मामले दर्ज हुए हैं. 90 प्रतिशत राशि सरकारी बैंकों की है.
डिजिटल इंडिया के तमाशे के दौर में बैंक नोट का चलन भी 17 प्रतिशत बढ़ा है. वित्त वर्ष 18 में 18 लाख करोड़ नोट का चलन था तो वित्त वर्ष 19 में 21 लाख करोड़ से अधिक हो गया है. ये रिज़र्व बैंक का आंकड़ा है. 20 रुपये के जाली नोटों में 87 प्रतिशत की वृद्धि है और 50 रुपये के जाली नोटों में 57 प्रतिशत की. 100 रुपये के जाली नोटों के मामले में गिरावट देखी गई है.
नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी(NBFC) की सालाना रिपोर्ट कहती है कि कर्ज़ लेने वाली कंपनियों की संख्या कम हो गई है. 20 प्रतिशत की गिरावट है.
ONGC अपना कर्ज़ चुकाने के लिए विदेशों से 2 अरब डॉलर का कर्ज़ लेगी. इस फंड का इस्तमाल 15000 करोड़ का लोन चुकाने में होगा. वोडाफोन आइडिया के कारण आदित्य बिड़ला ग्रुप को दस साल में पहली बार घाटे का मुंह देखना पड़ा है. पूरे समूह का घाटा 6134 करोड़ हो गया है.
NHAI नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की हालत ख़राब है. पांच साल में इसका कर्ज़ा 7 गुना बढ़ गया है. लाइव मिंट और मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाईवे के निर्माण पर रोक लगाने के लिए कहा है. मिंट की रिपोर्ट कहती है कि 17 अगस्त को प्रधानमंत्री
कार्यालय ने NHAI को लिखा है कि अनियोजित और अति विस्तार के कारण NHAI पूरी तरह से फंस चुका है. इसकी लागत बढ़ती जा रही है. सड़क बनाना वित्तीय रूप से घाटे का काम हो गया है. हालत इतनी खराब है कि NHAI को सड़क संपत्ति प्रबंधन कंपनी में बदलने का सुझाव दिया गया है.
अब याद कीजिए. पांच साल तक मोदी सरकार यही कहती रही कि कितनी तेज़ी से हाईवे का निर्माण हो रहा है. वे खुद भी आधे अधूरे बने प्रोजेक्ट का उद्घाटन कर रहे थे और श्रेय ले रहे थे. अब खुद ही कह रहे हैं कि NHAI ने अनियोजित सड़क निर्माण किया है मतलब जिसकी ज़रूरत नहीं थी.
NHAI को आइडिया दिया है कि अब प्रोजेक्ट नीलाम कर दें. जो बनाएगा वही टोल वसूलता रहेगा. फिर एक समय के बाद NHAI को सड़क लौटा देगा. यह यूपीए सरकार की नीति थी मगर सफल नहीं रही. मोदी सरकार ने आते ही कहा कि ये नहीं चलेगा. NHAI 100 फीसदी लागत उठाएगी. नतीजा यह संस्था कर्ज़ में डूब गई.
NHAI पर 1 लाख 80 हज़ार करोड़ का कर्ज़ हो गया है. 140 अरब का तो सालाना ब्याज़ हो गया है. NHAI मात्र 100 अरब रुपये ही टोल से वसूलती है.
कर्नाटक के सूक्ष्म, लघु व मध्यम (MSME) उद्योगों के संघ के अध्यक्ष ने बयान दिया है कि मंदी एक हकीकत है. अगर जल्दी नहीं कुछ हुआ तो 30 लाख लोगों की नौकरी जा सकती है.
पांच साल काफी होता है किसी सरकार की आर्थिक नीतियों के मूल्याकंन करने का. आप किसी भी सेक्टर में देख लीजिए. हालत चरमरा गई है. ठीक से रिपोर्टिंग हो जाए तो बोगसबाज़ी की सारी खबरें सामने आ जाएंगी.
यह ज़रूरत है कि मोदी सरकार राजनीतिक रूप से भयंकर सफल सरकार है इसलिए भी आप इस सरकार को हर वक्त राजनीति करते देखेंगे. यह कहते भी सुनेंगे कि वह राजनीति नहीं करती है. कश्मीर उसके लिए ढाल बन गया है. इस तरह के विश्लेषण लिखते लिखते साढ़े पांच साल गुज़र गए.
इस वक्त आप हिन्दी अख़बारों और चैनलों का ठीक से मूल्यांकन कीजिए. नौकरी जाने वालों में 90 फीसदी मोदी की राजनीति के अनन्य समर्थक हैं. ये अखबार और चैनल भी मोदी मोदी करते हुए गोदी मीडिया बने हैं. अब मोदी समर्थक देखें कि गोदी मीडिया उनकी कितनी परवाह करता है. गोदी मीडिया में उनकी जाती हुई नौकरियों, शिक्षा लोन, नौकरी के घटते अवसर पर कितनी चर्चा है. तभी कहता हूं कि मोदी के नाम पर गोदी मीडिया सत्ता का गुंडा है. यह मोदी विरोधियों के लिए नहीं बल्कि मोदी के समर्थकों को चुप कराने के लिए है. आप खुद चेक कीजिए. मेरी बात सौ फीसदी सही निकलेगी. गोदी मीडिया के खिलाफ भारत में जनआंदोलन की ज़रूरत है. फैसला आपको करना है. मोदी समर्थकों के हाथ में ही यह देश है. उन्हीं से अपील है कि गोदी मीडिया को मीडिया बनाएं. यह सबके हित में है. यही देश हित है. जय हिन्द.
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