विज्ञापन
This Article is From Nov 19, 2021

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह कमजोर नहीं थे 

Aadesh Rawal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2021 15:10 pm IST
    • Published On नवंबर 19, 2021 15:08 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2021 15:10 pm IST

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन किसान क़ानूनों को वापिस लेने का ऐलान किया. सुबह प्रधानमंत्री के ट्विटर हैंडल से यह जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सुबह 9 बजे देश को सम्बोधित करेंगे. सबने क़यास लगाने शुरू कर दिए कि आख़िरकार आज क्या बड़ा फ़ैसला होने वाला है? 

किसान संगठनों के एक साल के लम्बे संघर्ष और 700 किसानों के बलिदान के बाद आज मोदी सरकार ने तीनों किसान क़ानून वापिस लेने का फ़ैसला किया. मोदी सरकार ने तो किसान क़ानूनों को आने वाले सत्र में रद करने का ऐलान कर दिया लेकिन आज यह भी साबित हो गया कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह कमजोर नहीं थे. 

डॉ मनमोहन सिंह को हमेशा कमजोर प्रधानमंत्री कहा गया लेकिन याद कीजिए यूपीए-1 का दौर. कांग्रेस के पास महज़ 141 सीटें थी. मनमोहन की सरकार पूरी तरह से क्षेत्रीय पार्टियों के पहियों पर चल रही थी. मनमोहन सिंह ने ठान लिया था कि वह अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील करेंगे. क्षेत्रीय पार्टियों ने समर्थन देने से मना कर दिया था. लेफ़्ट ने तो अपना समर्थन वापिस ले ही लिया था. कांग्रेस के भीतर मनमोहन सिंह के फ़ैसले का विरोध हो रहा था लेकिन मनमोहन सिंह नहीं माने. कुर्सी जाने का डर भी मनमोहन सिंह के अंदर नहीं था और आख़िर में 141 सीटें वाली पार्टी के प्रधानमंत्री ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील कर दी थी.

वहीं आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब किसानों से माफ़ी माँगी तो वह पिछले सात साल में दूसरी बार कमजोर नज़र आए. 

पहली बार 2015 में भूमि अधिग्रहण बिल को मोदी सरकार ने वापिस लिया था और आज तीन किसान क़ानूनों को भी वापिस लेना पड़ा. बीजेपी के पास दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार है. 2019 में बीजेपी ने 303 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाई लेकिन आज पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के डर से केन्द्र सरकार ने तीनों किसान क़ानून वापिस लेने का फ़ैसला किया जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कठोर फ़ैसले के लिए ही जाने जाते रहे है फिर चाहे वह नोटबंदी, जीएसटी हो या फिर धारा 370 को हटाना.

मोदी समर्थक उनकी तारीफ़ इस बात को लेकर करते थे कि प्रधानमंत्री मोदी कभी भी कठोर फ़ैसले करने से पीछे नहीं हटेंगे. आज जब प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से माफ़ी माँगी और तीन क़ानून रद करने का फ़ैसला किया तो हो सकता है उनके समर्थकों में थोड़ी निराशा हुई हो. 

एक साल पहले जब सरकार ने इन तीन क़ानूनों को संसद में पास किया तो इसके पीछे तर्क दिए गए कि यह किसानों और देश में लिया गया फ़ैसला है. इससे किसानों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आएगा. अगर यह तर्क सही था तो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माफ़ी माँगने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

किसान और देश हित की बात को चुनाव हित में वापिस लेना पड़ा. यानि बीजेपी महज़ चुनाव जीतने के लिए सरकार के किसी भी फ़ैसले को सही या ग़लत ठहरा सकती है.

कुछ जानकार मानते हैं कि किसान क़ानूनों की वापिस लेने की सबसे बड़ी वजह पंजाब का विधानसभा चुनाव नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश का चुनाव है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का गहरा प्रभाव है. बीजेपी को किसान आंदोलन से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पूरा समर्थन मिलता रहा है फिर चाहे वो 2014 का लोकसभा चुनाव हो, 2017 का विधानसभा चुनाव रहा हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव. इन तीनों ही चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश ने एक तरफ़ा बीजेपी को वोट दिया था. 

इन तीन क़ानूनों की वापिसी से एक बात ज़रूर साफ़ हो गई है कि लोकसभा में संख्या कितनी भी हो प्रधानमंत्री के भीतर इच्छा शक्ति होनी बहुत ज़रूरी है. इस लिए यह कहना पड़ेगा कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री नहीं थे. 

आदेश रावल वरिष्ठ पत्रकार हैं... आप ट्विटर पर @AadeshRawal पर अपनी प्रतिक्रिया भेज सकते हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com