यह ख़बर 12 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

चुनाव डायरी : आखिर 'नमो-नमो' क्यों बन गया है मुद्दा...?

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा में दिए गए एक बयान से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सकते में है... दरअसल, जब मोहन भागवत से पूछा गया कि बीजेपी में 'नमो-नमो' हो रहा है, तो ऐसे में संघ को क्या करना चाहिए, उन्होंने कहा कि 'नमो-नमो' हमारा मुद्दा नहीं... हम राजनीतिक दल नहीं हैं और हमारी सीमा है... हमें 'संघ-संघ' और 'डॉ हेडगेवार' करना चाहिए...

संघ प्रमुख के इस बयान का यही मतलब निकाला गया कि बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को लेकर पार्टी जिस तरह प्रचार कर रही है, उससे पार्टी पर व्यक्तिवाद हावी हो रहा है, और इससे आरएसएस खुश नहीं... संघ प्रमुख की बातों से यह भी लगा कि वह बीजेपी में नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव से प्रसन्न नहीं हैं... यह कहकर भागवत ने एक तरह से बीजेपी में उन मोदी-विरोधी नेताओं का पक्ष लिया है, जो पार्टी में नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव से खुश नहीं, और खुद को धीरे-धीरे हाशिये पर जाता महसूस कर रहे हैं... लेकिन, वास्तविकता इसके ठीक उलट है...

मोहन भागवत कई बार हल्की-फुल्की और तुरत-फुरत प्रतिक्रियाएं देने के लिए जाने जाते हैं... भागवत के इस बयान के साथ भी ऐसा ही हुआ है, वरना कोई कारण नहीं कि जिन भागवत के संघ प्रमुख रहते हुए बीजेपी में पीढ़ी का बदलाव हुआ, लालकृष्ण आडवाणी जैसे कद्दावर नेता के रहते हुए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया, वह अपनी ही पसंद के खिलाफ हज़ार से ज़्यादा प्रचारकों के सामने कोई बात कहें...

यह छिपी बात नहीं है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार आरएसएस की पसंद से ही बनाया गया है... मोदी को यह जिम्मेदारी देने से पहले मोहन भागवत के कम से कम तीन बड़े बयान उनके पक्ष में आए... पहला, नासिक में, जहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इंटरव्यू के बाद उन्होंने कहा कि कोई हिन्दुत्ववादी प्रधानमंत्री क्यों नहीं हो सकता... दूसरा, मेरठ में, जहां उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता... और तीसरा, इलाहाबाद कुंभ में, जहां उन्होंने सार्वजनिक रूप से बीजेपी से देश की भावनाओं पर ध्यान देने को कहा...

दिलचस्प बात यह है कि बेंगलुरू में इसी प्रतिनिधि सभा की बैठक में तीन दिन पहले सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का समर्थन किया था... उन्होंने कहा था कि मोदी संघ के स्वयंसेवक रह चुके हैं और संघ को उन पर गर्व है... जबकि बनारस और गांधीनगर की लोकसभा सीटों पर हुए विवादों से मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी पर संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने उम्मीद जताई थी कि बीजेपी इसे हल कर लेगी...

बीजेपी नेताओं का कहना है कि वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनावों के बाद यह पहली बार है, जब कांग्रेस को हराने के लिए संघ सक्रिय हुआ है... कथित हिन्दू आतंकवाद को लेकर कांग्रेस और संघ आमने-सामने हैं... शायद इसीलिए भागवत ने यह कहा भी कि इस समय सवाल यह नहीं है कि कौन आना चाहिए, बल्कि बड़ा सवाल यह है कि कौन नहीं आना चाहिए...

आरएसएस का मानना है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी कार्यकर्ताओँ में जोश आया है और बीजेपी मोदी के नेतृत्व में कांग्रेस को हरा सकती है... लोकसभा चुनाव 2014 में संघ ने अपने कार्यकर्ताओं से 100 फीसदी मतदान सुनिश्चित करने के लिए पूरा जोर लगाने को भी कहा है... वर्ष 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की शिकायत रही थी कि संघ का कैडर घरों से बाहर नहीं निकला, लेकिन इस बार ऐसा होने की संभावना कम है...

यह ज़रूर है कि संघ व्यक्तिवाद के खिलाफ है, लेकिन उसके नेता यह मानते हैं कि चुनावी राजनीति में किसी चेहरे को आगे करना एक रणनीति का हिस्सा होता है... खासतौर से तब, जब बीजेपी चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर इन्हें राष्ट्रपति चुनाव की तर्ज पर बनाने की कोशिश करती रही है... इससे पहले भी, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के पीएम उम्मीदवार रहते हुए बीजेपी ने व्यक्ति-केंद्रित प्रचार किया था...

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सो, अब मोदी के नाम को घर-घर तक पहुंचाने के लिए बीजेपी को 'नमो-नमो' करना पड़ रहा है, लेकिन जहां तक पार्टी में फैसले लेने का सवाल है, अभी तक ऐसा कोई मामला नहीं आया है, जब मोदी ने अकेले ही कोई फैसला किया हो, बल्कि नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी, रामलाल जैसे कई नेता मिलकर ही बड़े फैसले कर रहे हैं...