विज्ञापन
This Article is From Mar 17, 2014

चुनावी डायरी : 'कम बोला, काम बोला', क्या वाकई?

Akhilesh Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:12 pm IST
    • Published On मार्च 17, 2014 10:36 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:12 pm IST

कांग्रेस में चुनाव से पहले अजीब होड़ लगी है। चुनाव न लड़ने की होड़। कई दिग्गज नेताओं ने अलग-अलग कारण बताते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। ताजा नाम सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी का है, जिनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और इस कारण वह संभवतः लुधियाना से चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।

कांग्रेस में चुनाव से पहले एक और होड़ लगी है। पार्टी के खिलाफ बने माहौल का ठीकरा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर फोड़ने की। सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का ठीक से जवाब न देने के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। टूजी घोटाले की जांच कर प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री पी चिदंबरम को क्लीनचिट देने वाली संयुक्त जांच समिति यानी जेपीसी के अध्यक्ष रहे पीसी चाको ने सार्वजनिक रूप से कहा भी है कि प्रधानमंत्री सरकार की कामयाबियों के बारे लोगों को ठीक से नहीं बता सके।

यह शायद पहली बार है जब चुनाव होने से पहले ही सत्तारूढ़ दल हथियार डालता दिख रहा है। चुनाव के परिणामों की प्रतीक्षा किए बगैर ही संभावित हार के लिए बलि का बकरा भी ढूंढ़ा जाने लगा है। प्रधानमंत्री पर धीरे-धीरे शुरू हुए इन हमलों के पीछे यही वजह मानी जा सकती है, लेकिन कांग्रेस की समस्या यह है कि वहां समस्याओं का ईमानदारी से विश्लेषण नहीं होता।

इसमें कोई शक नहीं कि 2004 की जीत का सेहरा सोनिया गांधी के सिर बंधता है। उन्होंने 1999 में पार्टी को मिली सबसे कम सीटों के झटके से पार्टी को उबार कर सत्ता तक पहुंचाया। गठबंधनों के प्रति पार्टी की झिझक को तोड़ा। खुद प्रधानमंत्री बनने के बजाए साफ छवि के मनमोहन सिंह को यह जिम्मेदारी देकर सबको हैरान कर दिया।

यह भी सही है कि 2009 में मिली जीत का सेहरा सोनिया गांधी नहीं, बल्कि मनमोहन सिंह के सिर बंधता है। आर्थिक मंदी से देश को उबार कर और अमेरिका के साथ परमाणु समझौता कर शहरी मध्यवर्ग का दिल जीता। किसानों के कर्ज माफ कर और मनरेगा जैसी लोकलुभावन योजनाओं से ग्रामीण इलाकों में पार्टी को मजबूत किया।

लेकिन 2009 के बाद से ही कांग्रेस और सरकार की लोकप्रियता ढलान पर है। एक के बाद एक सामने आए घोटालों ने छवि धूमिल कर दी। कमरतोड़ महंगाई, घटती विकास दर, बढ़ती महंगाई दर, लचर विदेश नीति जैसी नाकामियों से लोगों का भरोसा टूटने लगा है।

पर इस सबके लिए अकेले मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहरा कर कांग्रेस अध्यक्ष के वफादार नेता अन्याय कर रहे हैं। मीठा-मीठा गप-गप और कड़वा-कड़वा थू नहीं हो सकता। ऐसे कई नेता मिल जाते हैं, जो कहते हैं कि मनमोहन सिंह को बदल दिया जाना चाहिए था। सत्ता के दो केंद्रों के प्रयोग को नाकाम बताने वाले कुछ नेताओं के बयान यही इशारा करते हैं। कुछ कांग्रेसी मनमोहन सिंह पर संवादहीनता का आरोप भी लगाते हैं। लेकिन यूपीए एक में भी प्रधानमंत्री कम ही बोलते थे।

कुल मिला कर कोशिश यह दिखती है कि यूपीए टू की नाकामियों से सोनिया और राहुल गांधी को बचा कर अलग दिखा जाए। यह कोशिश भी कि अगर 2014 में नतीजे खिलाफ हों तो कांग्रेस प्रचार की अगुवाई कर रहे राहुल को दोष न दिया जाए। लेकिन कांग्रेस को अगर पटरी पर रहना है तो उसे अपनी असली समस्या की ओर ध्यान देना होगा।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
यूपीए सरकार, यूपीए-2, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, कांग्रेस, आम चुनाव 2014, लोकसभा चुनाव 2014, यूपीए सरकार की उपलब्धियां, यूपीए सरकार की नाकामियां, UPA-2, PM Manmohan Singh, Sonia Gandhi, Lok Sabha Election 2014, General Election 2014
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com