क्या किसानों की आमदनी वाक़ई दुगनी हो जाएगी? इस साल भले न हो मगर छह साल बाद 2022 में हो जाएगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी किसान रैलियों में इस बात पर खासे ज़ोर दे रहे हैं कि उनकी सरकार के प्रयासों से छह साल बाद किसानों की आमदनी डबल हो जाएगी। वित्त मंत्री ने भी अपने बजट में इस बात को दोहराया है। पहली बार किसानों की आमदनी दुगनी होने की बात की जा रही है और इस पर चर्चा तक नहीं। क्या पता किसान दिन रात यही बात करते हों कि जब इतना सब्र किया तो छह साल और सही। क्या पता वाक़ई इनकम डबल हो जाए।
क्या वाक़ई ऐसा हो जाएगा? ज़रूर होना चाहिए और क्यों नहीं होगा। क्या हम जानते हैं कि अभी किसानों की सालाना आमदनी कितनी है? आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में लिखा है कि देश के 17 राज्यों के किसानों की सालाना आय बीस हज़ार रुपये हैं। इसे आप महीने में बांटेंगे तो करोड़ों किसानों की मासिक औसत आय 1662 रुपये होती है। हमारा किसान इतने कम पैसे में कैसे जीता होगा यह सोचना बंद ही कर दीजिये तो ठीक रहेगा। अब अगर प्रधानमंत्री अपने वादे में सफल रहे तो साल 2022 में यही दुगनी होकर 3332 रुपये हो जाएगी। मुद्रास्फीति को शामिल कर लें तो इस रक़म की भी कोई हैसियत नहीं रहेगी।
अगर प्रधानमंत्री जी का कहना सही है तो क्या वे यही नहीं कह रहे हैं कि किसानों का कुछ नहीं हो सकता। इतनी मामूली वृद्धि में ऐसा क्या ख़ास नज़र आ रहा है कि डबल इनकम वाली बात पर सरकार इतना ज़ोर दे रही है। छह साल बाद अगर 3332 रुपये प्रति माह हो भी जाए तो किसानों की आर्थिक स्थिति में क्या बदलाव आएगा। यह भी साफ नहीं हो पा रहा है कि सरकार खेती की आमदनी को डबल कर देगी या ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आमदनी डबल कर देगी। प्रधानमंत्री तो किसान का ही नाम ले रहे हैं मगर गांव में सिर्फ किसान नहीं रहता है।
अगर सरकार किसानों की आमदनी डबल ही करना चाहती है तो फ़सलों की लागत का पचास फीसदी जोड़ कर दाम देने की बात क्यों नहीं करती? बीजेपी ने अपने घोषणापत्र के पेज 44 पर लिखा है कि सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का पचास फीसदी लाभ हो। सरकार बताये कि इसे सुनिश्चित करने के लिए क्या कर रही है? समर्थन मूल्यों में वृद्धि की हालत देखकर तो नहीं लगता न ही लागत में कोई कमी आई है। अभी जो समर्थन मूल्य मिलता है उससे बहुत मुश्किल से लागत निकल पाता है। क्या सरकार ने कोई नया फ़ार्मूला खोज लिया है जिसके दम पर इनकम डबल करने का दावा कर रही है। अगर ऐसा है तो यही बात साफ साफ कही जानी चाहिए। कई बार लगता है कि सरकार अपने उस वादे को छोड़ बाकी बातें करने में लगी है।
सरकार एकीकृत बाज़ार की बात करने लगी है। बाज़ार के सिस्टम में बिल्कुल सुधार होना चाहिए लेकिन यह अभी साफ नहीं है कि इससे क़ीमतों में उछाल ही आ जाएगा। अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा ने एक उदाहरण दिया कि कर्नाटक में दो सौ मंडियों को एकीकृत किया गया है फिर भी टमाटर के दाम लागत से कम है। चुनावी चर्चाओं के दौरान किसानों के लिए आय आयोग की बात चली थी वो बात भी नए नए सपनों में खो चुकी है।
रही बात इस बार के बजट में गांवों की तरफ ध्यान देने की तो वो स्वागत योग्य है। लेकिन हर मद में चंद हजार करोड़ की वृद्धि कर देने से ही मंज़िल आसान नहीं होने वाली। गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास से रोज़गार व्यापार के अवसर बढ़ेंगे लेकिन सबके लिए बढ़ेंगे कोई ज़रूरी नहीं। उन जगहों पर जाकर देखना चाहिए जहां सड़कें अच्छी हैं और सिंचाई के साधन बेहतर। पंजाब एक उदाहरण हो सकता है। वहां खेती और किसान की हालत ख़स्ता है।
इसलिये किसानों को अपने पास एक कैलकुलेटर रखना चाहिए। अभी से जोड़ना घटाना शुरू कर देना चाहिए कि 2022 में उसकी आमदनी डबल होने वाली है। महीने का 3332 रुपया बहुत होगा इसलिए उसे खर्च करने की योजना बनाने का अभ्यास शुरू कर देना चाहिए। दुखद है कि हम किसानों के पास स्लोगन पहुंचा देते हैं लेकिन स्लोगन कैसे साकार होगा नहीं बताते। हर दिन एक नया स्लोगन पुराने स्लोगन को खा जाता है।
This Article is From Mar 03, 2016
2014 में 2022 का ख़्वाब, डबल इनकम वाला किसान
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
-
Updated:मार्च 03, 2016 00:47 am IST
-
Published On मार्च 03, 2016 00:13 am IST
-
Last Updated On मार्च 03, 2016 00:47 am IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं