प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम के पांच बड़े सितारे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम के पांच बड़े सितारे

कोई भी कैप्टन अपने-आप में चाहे कितना भी बेहतर और महान खिलाड़ी क्यों न हो, टीम के अन्य खिलाड़ियों के बेहतर हुए बिना जीत नहीं दिला सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपने पूर्ववर्ती डॉ मनमोहन सिंह की टीम के साथ हुए 'हादसे' का उदाहरण मौजूद था। वैसे भी इस बारे में मोदी जी का रिकॉर्ड 'मानने वाले' का रिकॉर्ड नहीं रहा है। वह यदि अपनी अहमियत जानते हैं, तो अपने टीम के सदस्यों की भी, इसलिए जब अपनी टीम तैयार करने का वक्त आया, तो अधिकांश मामलों में उन्होंने सिर्फ एक ही शख्स की सुनी, जो वह खुद थे।

राजनीति की कमान अपने सबसे विश्वस्त अमित शाह को थमाकर वह उधर से निश्चिंत हो गए। अमित शाह की दो मुख्य जिम्मेदारियां हैं - क्षेत्रीय क्षत्रपों को कंट्रोल में रखना तथा सेना के विजय अभियान को आगे बढ़ाना। मंत्रिमंडल के रथ में जुते सभी घोड़ों की लगाम अपने हाथ में रखी। इसके नतीजे सामने हैं। जहां मनमोहन सिंह को अपने ही मंत्रियों के कामों की कोई जानकारी नहीं रहती थी, वहीं मोदी जी के मंत्रियों की नींद यही सोच-सोचकर बीच-बीच में उड़ती रहती है कि कहीं ऐसा न हो कि अपने मंत्रालय के बारे में उन्हें खुद कुछ मालूम न हो, और उसकी जानकारी उन्हें प्रधानमंत्री से मिले।

और जब बारी आई नौकरशाहों की टीम बनाने की, तो वहां भी उन्होंने कोई समझौता नहीं किया, भले ही इसके लिए अध्यादेश ही क्यों न लाना पड़ा हो। प्रधानमंत्री के चयन के इस तरह के तौर-तरीकों पर बहस की जा सकती है, लेकिन उन लोगों की योग्यताओं के बारे में बहस करने की ज्यादा गुंजाइश नहीं बचती, जिनको वह अपनी सबसे निकट की टीम में लेकर आए।

उनकी अभी की टीम के पांच मुख्य लोगों में तीन सिविल सर्वेन्ट हैं और दो एकेडेमिक पृष्ठभूमि से। यह बात गौर करने की है कि इनके शिक्षा-दीक्षा और करियर में अमरीकी अनुभवों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नृपेंद्र मिश्र ने न केवल हार्वर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री ली है, बल्कि वह वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास में तीन साल तक मिनिस्टर (अर्थशास्त्र) भी रहे हैं। 1967 बैच के इन सिविल सर्वेन्ट को अपनी टीम में लाने के लिए मोदी जी को अध्यादेश लाना पड़ा था, जो उनके कार्यकाल का तत्काल और पहला अध्यादेश था।

विदेश सचिव एस जयशंकर तो इससे पहले यूएसए में भारत के राजदूत ही थे। चीन जैसे महत्वपूर्ण और चुनौतियों से भरे देश में भी उन्होंने साढ़े चार साल तक भारतीय राजदूत की सफल भूमिका निभाई है। जयशंकर विदेश सेवा से रिटायर होने वाले ही थे कि एक दिन पहले ही मोदी जी उन्हें विदेश सचिव के रूप में ले आए। मुझे उनके साथ दो साल तक काम करने का अनुभव है, जब वह राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के प्रेस सचिव थे। राजनयिक अनुभव और क्षमता से भी परे उनकी सबसे बड़ी खूबी उनका सौहार्दपूर्ण व्यवहार और बहुत संतुलित व्यक्तित्व है, और ऊर्जावान तो वह हैं ही।

इसी तरह के ऊर्जावान, किंतु विलक्षण व्यक्ति हैं अजीत डोभाल, जिनकी पूरी दुनिया 'आज के जेम्स बॉन्ड' के नाम से तारीफ करते नहीं थकती। ऐसे हैं हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार। भारतीय पुलिस सेवा के डोभाल का मिजोरम, पंजाब और कश्मीर में चलने वाली राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम में बड़ा योगदान रहा है। कोई अधिकारी छह साल तक पाकिस्तान में 'अंडरकवर' रहकर सफलतापूर्वक आ जाए, यह कम बड़ी बात नहीं है। सुरक्षा संबंधी मामलों के वह बेजोड़ जानकार हैं। उनके जैसा दमदार जानकार ही खुलेआम कह सकता है कि ''तुम मुम्बई पर एक और हमला करो, बलूचिस्तान खो दोगे...''

मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम तथा नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगड़िया - दोनों अंतरराष्ट्रीय स्तर के अर्थशास्त्री हैं। दोनों के पास विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं का सीधे-सीधे अनुभव है। ज़ाहिर है, नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले देश से जिस विकास का वादा किया था, उसे सच कर दिखाने के लिए आर्थिक क्षेत्र की ऐसी ही व्यापक समझ रखने वाले अकादमिक लोगों की ज़रूरत थी। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन तो हैं ही।

निःसंदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम तो ज़बर्दस्त है, लेकिन अब देखना यह है कि जीत भी ज़बर्दस्त होती है या नहीं।

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

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