अब तक दूसरी राजनीतिक पार्टियों की ‘कथनी और करनी’ को लेकर अंगुली उठाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) भी अब पूरी तरह से उसी राह पर चल पड़ी है और पार्टी की कथनी और करनी में अंतर भी साफ नजर आने लगा है।
वैसे तो इस बात को साबित करने के कई उदाहरण हैं, लेकिन सबसे ज्वलंत मामला एक ईमानदार अफसर के तबादले का है और वह भी तब जब आम आदमी पार्टी इसी मुद्दे पर हरियाणा की खट्टर सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है।
आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हाल ही में निकाले गए प्रोफेसर आनंद कुमार ने भी दिल्ली सरकार द्वारा एक ईमानदार छवि वाले अधिकारी का तबादले किए जाने पर सवाल उठाए हैं। प्रोफेसर आनंद कुमार ने पूछा है कि दिल्ली डायलॉग कमीशन के सचिव पद पर आशीष जोशी की नियुक्ति करने के कुछ ही दिन बाद केजरीवाल सरकार ने उनका तबादला क्यों कर दिया?
आनंद कुमार की आपत्ति ऐसे वक़्त आई है, जब आम आदमी पार्टी ने हरियाणा की खट्टर सरकार पर अशोक खेमका का तबादला करने पर गंभीर सवाल उठाए हैं। प्रोफेसर आनंद कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर इस तबादले को लेकर सवाल दाग़े हैं।
बताया जा रहा है कि आशीष जोशी दिल्ली डायलॉग कमीशन में आम आदमी पार्टी के छह वॉलण्टियर्स (कार्यकर्ताओं) की समन्वयक के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ थे। इस बारे में उनकी कमीशन के चेयरमैन आशीष खेतान से अनबन भी हुई थी।
सूत्रों के हवाले से पता चला है कि आशीष जोशी इस बात से आहत थे कि कुछ आप वॉलण्टियर्स ने उनके ऑफिस में घुसकर उनसे बहसबाज़ी की। जब जोशी ने पूछा कि वो कौन लोग हैं, तो आप वॉलण्टियर्स ने कहा कि जोशी पहले अपने बॉस से पूछे कि वो कौन हैं। इसी वजह से उनका ट्रांसफर कर दिया गया। आशीष जोशी 1992 बैच के इण्डियन पोस्ट एण्ड टेलिकम्युनिकेशन अकाउंट्स एण्ड फाइनेंस सर्विसेज़ के अधिकारी हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आशीष खेतान ने इन वॉलण्टियर्स की नियुक्ति के लिए आशीष जोशी को मुंहजबानी कहा था। जोशी ने नियमों का हवाला देकर कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता। इस बात पर विवाद था और आशीष जोशी की छुट्टी हो गई।
यही नहीं खबर यह भी है कि दिल्ली के मौजूदा उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पिछले कार्यकाल के दौरान सरकारी मकान समय पर खाली न करने पर नियमानुसार नोटिस देने वाले अफसर को भी सरकार ने उनके पद से हटा दिया है। इस अधिकारी ने मनीष सिसोदिया को नोटिस तब दिया था, जब उनका कार्यकाल खत्म हो गया था और वो समय बीत जाने के बावजूद सरकारी मकान खाली नहीं कर रहे थे।
अब तो ऐसा लगता है कि ईमानदार अफसर की दरकार शायद बीजेपी, कांग्रेस या आम आदमी पार्टी किसी को नहीं है और सभी राजनीतिक दलों को अपने मनमाफिक चलने वाले अफसर चाहिए। ऐसे अधिकारी, जो बॉस की जी-हुजूरी करे। बेशक अन्य पार्टियों की तरह आम आदमी पार्टी भी ऐसा कर सकती है, लेकिन फिर उसे सिद्धांतों की दुहाई देकर खेमका के तबादले पर अंगुलियां उठाने का अधिकार नहीं है। सवाल ये उठता है किस पार्टी को चाहिए ईमानदार अधिकारी? उन्हें तो ऐसे ही अफसर चाहिए जो उनके अनुयायी हों। पार्टी के नेताओं की हर बात को माने।
अगर देखा जाए तो इस मामले में किसी भी पार्टी का रिकॉर्ड एक-दूसरे जुदा नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार को बने 49 दिन हो गए। पिछली बार 49 दिन में ही उसकी सरकार गिर गई थी। तब इतने ही दिनों में घोषणाओं का ढेर लगा दिया गया था, लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं है। लगता है भारी बहुमत के चलते पार्टी पूरी तरह से निश्चिंत है। जानकारों का मानना है कि अब पार्टी को लगता है कि उसके पास काफी वक्त है और कोई पूछने वाला भी नहीं है। वहीं पिछली बार वक्त भी कम था, बहुमत भी नहीं था और जनता को बढ़ा-चढ़ाकर झांकी भी तो दिखानी थी।
हां, दिल्ली के कर दाताओं के पैसे से बिजली और पानी में तात्कलिक तौर पर सब्सिडी तो केजरीवाल सरकार ने दे दी पर अभी तक स्थायी उपाय या फार्मूला नहीं पेश किया है। कहां तो बिजली कंपनियों का ऑडिट कराकर बिजली के रेट कम कराने की बातें की जा रही थीं, परंतु अब तो बिजली कंपनियां ही घाटे का रोना रोकर प्रति यूनिट तीन रुपये तक बिजली के दाम बढ़ाने की मांग करने लगी हैं। इसी तरह कोई अन्य ऐसा बड़ा काम भी नजर नहीं आता, जिसे गिनाया जा सके। मसलन पानी की नई पाइप लाइन, नयेएस्कूल और कॉलेज की बातें, तो अभी तक सिर्फ बातों में ही हैं। हां मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों तक ने अपने पहले घोषित सिद्धांतों के विपरीत बड़े बंगलों से लेकर बड़ी गाड़ियां ले ली हैं।
हालत ये है कि लोकपाल मूवमेंट में शुरू हुई पार्टी जिस राज्य में सरकार में है और सर्व शक्तिमान है वहां भी पिछले डेढ़ साल से लोकायुक्त नहीं है। खुद पार्टी ने अपने लोकपाल को जिस तरह चलता किया है, उससे तो यही लगता है लोकपाल बस सत्ता पाने का एक जरिया मात्र था।
इसके अलावा, मुलायम सिंह की सपा, ममता की टीएमसी, प्रकाश सिंह बादल की अकाली दल, नवीन पटनायक की बीजेडी, नीतीश की जेडीयू और मायावती की बीएसपी की तरह अब आम आदमी पार्टी में बस एक ही व्यक्ति की चलती है। कोई अगर उसके खिलाफ आवाज उठाना तो दूर जुबान भी खोलता है, तो उसे दरकिनार करने में देर नहीं की जा रही है।