मुद्दों को भले न जगह मिल रही हो मगर हार-जीत के हिसाब से ही नगरपालिका चुनावों को मीडिया में काफी महत्व मिलने लगा है. बीजेपी ने पंचायत, ज़िला परिषद, नगर पालिका और नगर निगम चुनावों को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया है. इन चुनावों की राजनीतिक खोज या फिर से खोज का काम बीजेपी ने किया है. बीजेपी पूरी ताकत झोंक देती है, राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर सांसद मंत्री तक इन चुनावों में प्रचार करते हैं. इसके ज़रिये बीजेपी बड़ी संख्या में अपने कार्यकर्ताओं की राजनीतिक महत्वकांक्षा को बनाए रखती है. कार्यकर्ताओं को भी लगता है कि पार्षद बन जाओ, कल विधायक भी बन जाएंगे. इस तरह से कार्यकर्ताओं की फौज को खपाने का या सक्रिय रखने का बीजेपी ने एक बड़ा ही अच्छा तरीका निकाला है. इस रणनीति ने बीजेपी को अर्धसैनिक बल की तरह बना दिया है, जिसका ट्रक किसी नए लोकेशन पर जाने के लिए हमेशा तैयार रहता है.
एमसीडी चुनाव के कवरेज़ का जो स्वरूप आपने मीडिया में देखा वो बीजेपी के कारण ही है. चंद हिन्दी और अंग्रेज़ी अखबार ही नगरपालिका की खबरें नियमित रूप से कवर करते हैं. चैनलों में तो न के बराबर ही एमसीडी को जानने वाले रिपोर्टर होंगे. इसके बाद भी पहली बार न्यूज़ चैनलों ने एमसीडी के चुनाव और नतीजों को लोकसभा की तरह कवर किया है. आप याद कीजिए कब 800 करोड़ से भी कम बजट वाले एमसीडी के चुनाव को चैनलों पर इतनी जगह मिली है. एमसीडी के इस चुनाव से पहले मीडिया में बृहन मुंबई नगरपालिका के चुनाव को ही महत्व दिया जाता था. 30-40 हज़ार करोड़ के बजट के कारण और शिवसेना के नियंत्रण के कारण. बीएमसी पर नियंत्रण के ज़रिये वो हिन्दुस्तान की एकमात्र पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना महत्व बनाए रखती है. अभी भी कई दल निकाय चुनावों को महत्व ही नहीं देते हैं. बीजेपी ने निकाय चुनावों को हाई प्रोफाइल बना दिया है. जो कि होना भी चाहिए था.
एमसीडी के चुनावों में बीजेपी 2007, 2012 के बाद लगातार तीसरी बार जीती है. कांग्रेस 2012 की तुलना में आधे से भी कम हो गई है. 30 वार्ड में ही जीत मिली. पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी को 48 वार्ड में जीत मिली है. बीजेपी को 181 वार्ड में जीत मिली है. उत्तरी एमसीडी के 104 में से 64 वार्ड में बीजेपी विजयी रही है. दक्षिणी एमसीडी के 104 में से 70 वार्ड में बीजेपी जीती है. पूर्वी एमसीडी के 64 वार्ड में से 48 वार्ड में बीजेपी जीती है. तीन निगमों में बीजेपी को बहुमत हासिल है.
आज कई चैनलों पर एमसीडी के नतीजों के विश्लेषण के दौरान, एंकर, रिपोर्टर और विशेषज्ञों के सवालों में दो सवाल मुख्य रूप से थे. आप चाहें तो यू ट्यूब पर जाकर फिर से देख भी सकते हैं और आपने देखा ही होगा. बीजेपी ने दस साल में कुछ नहीं किया, भ्रष्टाचार और गंदगी रही, फिर भी प्रचंड तरीके से जीत गई. बीजेपी ने नाराज़गी से बचने के लिए अपने सभी पार्षदों के टिकट काट दिये. प्रवक्ताओं के जवाब भी सुनियेगा. शायद ही किसी ने कहा होगा कि हमारे दस साल के काम पर वोट मिला है. सबने प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिया. एंकरों और जानकारों ने बार-बार कहा कि बीजेपी ने 153 पार्षदों के टिकट काट दिये. उम्मीद करता हूं कि चुनाव के दौरान भी भ्रष्टाचार और गंदगी के सवालों को जगह मिली होगी. जब ख़ुद ही नहीं किया तो दूसरों से क्या उम्मीद. 153 पार्षदों के टिकट काट देने की रणनीति का एक दूसरा पहलू भी है. जिसकी चर्चा नहीं हुई या कम हुई. ऐसी कौन सी पार्टी है जो 153 पार्षदों के टिकट काट दे और बग़ावत न हो. टिकट कटने वाले चंद पार्षदों ने ही बग़ावत की, बाकी शांत ही रहे. इसके बाद भी पार्टी ने 21 नेताओं को बग़ावत के जुर्म में निकाल दिया. इस लिहाज़ से देखेंगे तो आज के समय में ऐसा करने की हिम्मत किसी भी दल में नहीं है. अगर कोई दल टिकट काट भी दे तो उसी क्षण वो दूसरे दल की सदस्यता लेते नज़र आएंगे. मगर बीजेपी के 100 से अधिक पार्षद टिकट कटने के बाद भी पार्टी के लिए काम करते रहे. इससे अंदाज़ा मिलता है कि एक संगठन के रूप में बीजेपी कितनी सक्रिय है और उसका कितना नियंत्रण है. लेकिन चुनाव दर चुनाव जीतने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कहां थे, जब इतनी बड़ी जीत मिल रही थी.
अमित शाह उस बंगाल में लौट गए हैं जहां पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को जीत नहीं मिली. 2016 शुरू होते ही नेताजी की तमाम फाइलें सार्वजनिक होने लगी थीं, टीवी एंकरों ने नेताजी खूब बहस की, लेकिन बीजेपी को सीट मिली 3. इतनी बड़ी हार के एक साल के भीतर अमित शाह बंगाल लौट गए हैं. नक्सलबारी में पार्टी कार्यकर्ता के घर भोजन कर रहे हैं. अमित शाह के पास जीत का जश्न मनाने और दिल्ली में रहने के कई कारण होंगे, मगर वे वहां पदयात्रा कर रहे हैं. अमित शाह अगले साल बंगाल के स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं. 11 मार्च को यूपी विधानसभा में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत मिली लेकिन उसके दस दिन बाद मीडिया में मैंने एक खबर देखी कि अमित शाह 21 मार्च तमिलनाडु के कोयंबटूर जायेंगे, आरएसएस की एक बैठक में हिस्सा लेने के लिए. 2016 में तमिलनाडु विधानसभा में बीजेपी को ज़ीरो सीट मिली थी, मत प्रतिशत था 2.8 प्रतिशत. इसके बाद भी अमित शाह और उनकी बीजेपी वहां भिड़ी हुई है.
क्या आप वर्तमान समय में किसी भी दल के अध्यक्ष के बारे में जानते हैं जो बड़ी जीत के बाद भी वहां चला जाता है जहां उसे बड़ी हार मिली होती है. अमित शाह की जगह अगर कोई दूसरा अध्यक्ष होता तो कई महीने तक दिल्ली से ही नहीं निकलता. यह सही है कि आज की मीडिया में बीजेपी का ही पक्ष रहता है उसी के रंग में सवाल होते हैं, विपक्ष का मज़ाक उड़ाया जाता है लेकिन हार का कारण विपक्ष का आलस्य भी है. चुनाव कैसे लड़ा जा रहा है, लड़ने पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है इन सब बातों से भारत की जनता को कोई तकलीफ नहीं है.
अब बात आम आदमी पार्टी की. आज जब विरोधी और आलोचक सिर्फ इतनी उम्मीद कर रहे थे कि अपनी हार स्वीकार कर ले, मगर आप ने ईलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी पर अपना विश्वास बनाए रखा. सर्वे से लेकर तमाम पत्रकारों ने कहा था कि आप एमसीडी हारेगी. पंजाब हारने पर आप ने यही तो कहा था कि पत्रकार भी आप के जीतने की बात कर रहे थे. आम आदमी पार्टी की विधायक अलका लांबा ने विधायकी से इस्तीफा दे दिया है और अपने क्षेत्र में हार की ज़िम्मेदारी ली है. अलका का कहना है कि हार के और भी कारण थे जो ज़मीन पर दिख रहे थे. संयोजक दिलीप पांडे ने भी इस्तीफा दे दिया है. उसी तरह से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने भी हार के बाद इस्तीफा दे दिया. प्रभारी पीसी चाको ने भी इस्तीफा दे दिया है. अगर इस्तीफा देने वाले किसी का नाम छूट गया हो तो मैं कान पकड़ कर माफी मांगता हूं.
अब प्रॉब्लम ये है कि जिन पर इन इस्तीफों के स्वीकार करने की ज़िम्मेदारी है, उनसे भी तो इस्तीफा मांगा जा रहा है. मेरी राय में हर दल में एक इस्तीफा सचिव होना चाहिए जिसके पास अध्यक्ष से लेकर विधायक तक का इस्तीफा स्वीकार करने का पावर हो. एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी के अलावा एक और पार्टी पहली बार हिस्सा ले रही थी, जो उसी से निकली हुई है, स्वराज इंडिया. 117 महिलाओं को टिकट दिया, पर्यावरण को मुद्दा बनाया. दिल्ली की जनता ने साबित कर दिया कि उसे सिर्फ अच्छाई नहीं चाहिए. सुबह से जानकार अरविंद केजरीवाल के अंहकार पर पीएचडी कर रहे थे, अगर उन्हें विनम्रता की इतनी ही तलब थी तो योगेंद्र यादव का ट्वीट देखना चाहिए था, और दिल्ली से पूछ सकते थे कि योगेंद्र जी की विनम्रता में ऐसी क्या कमी थी जो एक भी सीट नहीं मिली. सुबह- सुबह उनका ट्वीट आया कि एमसीडी की गिनती शुरू हो रही है. मैं शून्य अपेक्षाओं के साथ शुरू कर रहा हूं. इसके अलावा जो भी आएगा वो बोनस होगा. राजनीति में ऐसी भाषा अब कहां बची है लेकिन ऐसी भाषा से भी वोट नहीं मिला, फिर भी आप ये नहीं कह सकते कि भारत की राजनीति में शराफ़त नहीं बची है. नतीजे आने के बाद स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने एक और ट्वीट किया, उम्मीद के अनुसार स्वराज इंडिया को कोई सीट नहीं मिली. अभी तक वोट शेयर के नंबर नहीं आए हैं, पर उम्मीद से कम लग रहा है. हमें भी आत्ममंथन करने की ज़रूरत है.
अंत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ट्वीट में भी विनम्रता की झलक मिली. मैं बीजेपी को तीनों एमसीडी में विजय पर बधाई देता हूं, मेरी सरकार दिल्ली की बेहतरी के लिए एमसीडी के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है.
मुद्दों पर चुनाव हुआ या नहीं, अब इस पर बात करने से कोई फायदा नहीं है. यह जीत उन 46 फीसदी लोगों की भी है, जिन्होंने वोट नहीं डाले.
This Article is From Apr 26, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या मोदी के कारण हारता है विपक्ष?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अप्रैल 26, 2017 21:39 pm IST
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Published On अप्रैल 26, 2017 21:39 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 26, 2017 21:39 pm IST
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