रंगों का प्रबल आकर्षण मनुष्य के लिए कितनी सहज परिघटना है. उसकी सौन्दर्यानुभूति का स्थूल प्रकटन रंगों में उसकी रुचि से अभिन्न है. हर रंग एक मनोदशा है. आशा-निराशा, उल्लास-अवसाद, पराक्रम-पराजय, करुणा-क्रूरता, राग-विराग, सबका एक रंग है. प्रेम में होना दरसअल किसी रंग में होना है. घृणा और युयुत्सा में होना भी किसी रंग में होना है. शायद तभी कलाविदों ने अभिव्यक्ति के अभिनय-रूप को रंगमंच कहा होगा.
सभी युवाओं की तरह मुझे भी रंगों में रुचि थी. तरह तरह के रंग और उनके दबाव. इतने सारे रंग कि मैं अक्सर भयभीत हो जाता. रंगों का व्यापार जोखिम भरा जो ठहरा. कई बार कई सारे रंग आपस में भिड़ जाते. उनके रक्त-रंजित युद्ध लहूलुहान कर देते. हर रंग अपने प्रतिद्वन्द्वी रंग से अधिक मुखर होने और उस पर आरूढ़ हो जाने की हिंसक-लालसा को लिए रोज नए नए परियोजन रचता. रंग षड्यंत्रकारी भी थे. यह जानकर मैं उद्दिग्न हो जाता. कुछ रंग चालबाज थे. कुछ केवल चतुर और कुछ गज़ब के पैंतरेबाज़. सरल रंग अक्सर इस यूद्ध को दूर से देखते. वह नियतिवादी रंग थे. जीवन में हस्तक्षेप करने, न करने के उनके अपने तर्क थे. कुछ मननशील, निष्कपट और मतवाले रंग थे. वह प्रायः ऋतु-समदर्शी थे. कुछ कुछ दार्शनिकों जैसे. वसंत उन्हें आल्हादित करने में विफल रहता था और शिशिर प्रभावित करने में.
युद्ध जीतने को व्यग्र किसी सिपाही-सा, मैं रंग-युद्ध में लगभग निकट-पराजय था कि सहसा एक रंग नमूदार हुआ. वह कोई तेज चटख रंग नहीं था लेकिन उसके पास एक परंपरा-प्रदत्त ओज था. वह गहरा, गाढ़ा भी था और सौम्य, मटमैला भी. मैं प्रथम-दृश्य प्रेमी की तरह उसे निहारता रह गया.
वह खाकी का रंग था. मैं इस रंग के गहरे प्रेम में था. प्रेम का पहला सुकोमल चरण. बिना किसी संकोच और लज्जा के मैं सुग्गे पक्षी की तरह चहकता. मेरा रोम रोम ..मेरी काया अब रंग के कारागार में एक कैदी थी. पर आह क्या कैद थी ये! मैं दिनभर खुश रहता था. रात को नींद कम ले पाता. जितनी नींद लेता वह आंखों को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त न थी. मेरे नेत्र गोलक अक्सर उनींदे रह जाते. उनकी कोरों में अल्प-निन्द्रा की लाल काई जमी रहती लेकिन मुझे शिकायत न होती. प्रेम में प्रतिवाद निर्बल पड़ जाता.
कई पहर हम दोनों साथ-साथ ही रहते. मेरी सामाजिकता दरकने लगी थी. मुझे दूसरे रंगों की सोहबत न सुहाती. वह खूब गाढ़े, जरूरी और शक्तिशाली रंग थे. मैं कई बार उनके साथ होते हुए भी अन्यमनस्क रहता. वह मुझे समाज का व्यवहार-बोध कराते. 'एक ही रंग के प्यार में होना कितना खतरनाक और गैर-जरूरी है'. मैं सुनता रहता. कभी समर्थन में सिर भी हिलाता. लेकिन अपने रंग का पुनर्स्मरण मुझे फिर यथार्थ से खींचकर उसी प्रेम-कारागार में ला पटकता जहाँ कैद ही मेरी मुक्ति थी. मुझसे जब भी गलती होती, मैं छुपाना चाहता. मेरा रंग मेरे अपराध-बोध को भांप लेता. वह मुझे फटकारता और फिर अचानक मुझसे बोलना छोड़ देता. मैं अकेला और भयभीत, आत्म-ग्लानि के अंधे कुओं में भटकता. मेरा अनुताप मुझे मेरे एकांतिक प्रेम का दंड प्रतीत होता परंतु वही मेरा खाकी रंग मुझे ढूंढकर अंधेरी खोहों से बाहर निकालता. मुझे फिर से ऊर्जस्वित कर सुग्गे जैसा चपल बना देता.
कई बार जब कोई मेरे रंग पर हमला करता तो मैं प्रत्युत्तर को अधैर्य हो उठता. रंग प्रायः अपनी आलोचना को लेकर असहिष्णु थे. खाकी रंग अपवाद था. वह घंटों अपनी निर्मम आलोचना सुन सकता था. कई बार मैं झल्ला उठता और उसे कायर कह देता. वह इस पर भी बस मुस्कराकर रह जाता. कटाक्ष तो साधारण बात थी. उसे गालियाँ दी जाती. वह चुप ही रहता. मुझे याद है उसने एक दिन अपनी सफाई में इतना ही कहा था- 'सब बोलते रहें इसके लिए एक का चुप रहना लाजिमी है'. मैं शब्द-हीन हो गया था. इसलिये नहीं कि उसके इस दार्शनिक उत्तर का मेरे पास कोई प्रत्युत्तर न था, बल्कि सिर्फ इसलिए कि वह मुझे ज्यादा व्यावहारिक जान पड़ा. वह एक अतार्किक प्रकार के त्याग की बात कर रहा था. लेकिन त्याग किसी भी रूप में त्याग ही है. मेरे पास इस का कोई जबाब नहीं था.
मुझे याद है कि एक दिन किसी शाम को वह ढलते हुए सूरज को घूर रहा था. उसे सूरज को अस्त होते हुए देखना पसंद था. वह इस दृश्य को एक नए और अबूझ नाम से पुकारता था- 'आलौकिक चेतावनी'. मेरे जिद करने पर उसने इस शब्द का अर्थ खोला था. 'देखो सबको डूबना है'. फिर एक दिन वह कहीं चला गया. कई दिनों तक वह न मिला. मैं रोज उन जगहों पर जाता जहाँ अक्सर मैं और मेरा रंग मिला करते थे. मैं उदास रहने लगा. उसके जाने के बाद लगा मैं किस सीमा तक निर्भरता से पीड़ित था! यह वैधव्य काल था. जीवन से प्रिय रंग का तिरोहित हो जाना ही तो वैधव्य है.
धर्मेंद्र सिंह भारतीय पुलिस सेवा के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी हैं...
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This Article is From Oct 31, 2017
मैं और मेरा प्रिय रंग
Dharmendra Singh
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 31, 2017 17:00 pm IST
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Published On अक्टूबर 31, 2017 16:49 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 31, 2017 17:00 pm IST
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