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This Article is From Dec 21, 2014

राजीव रंजन की कलम से : राजनीतिक दल नहीं, जम्मू-कश्मीर में जीता लोकतंत्र

Rajeev Ranjan, Sunil Kumar Sirij
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  • Updated:
    दिसंबर 21, 2014 08:53 am IST
    • Published On दिसंबर 21, 2014 08:47 am IST
    • Last Updated On दिसंबर 21, 2014 08:53 am IST

जम्मू-कश्मीर में इस बार अलगाववादियों और आतंकवादियों को चुनाव बहिष्कार के मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ी है। आतंकवाद के 26 सालों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब अलगाववादियों के बॉयकाट के आह्वान की जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने न केवल अवहेलना की है, बल्कि वे आतंकी धमकियों के आगे भी नहीं झुके।

इस बार चुनाव में 66 फीसदी मत पड़े, जबकि पिछले बार 61 फीसदी ही वोट पड़े थे। 87 सीटों के लिए हुए चुनावी समर में उतरे 792 प्रत्याशियों में से 275 निर्दलीय हैं। 72 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया।

अलगाववादियों की चुनाव बहिष्कार की अपील के फ्लॉप होने का एक कारण यह भी है कि अब हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कई गुटों में बंट चुकी है और कई गुट चुनाव बहिष्कार की मुहिम से अपने आपको दूर रखे हुए थे। इसमें सबसे बड़े दो गुट - मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और जमायत-ए-इस्लामी भी शामिल हैं।

मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अपने आपको सच्ची हुर्रियत के तौर पर पेश करती है। पर इस बार वह चुनाव बहिष्कार की मुहिम में सईद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के साथ नहीं थी। कश्मीर में सदी की सबसे भयंकर बाढ़ के बाद राहत कार्यों में लगे होने की वजह से मीरवाइज उमर फारूक गुट ने इस बार चुनाव बहिष्कार की मुहिम में शिरकत नहीं की। उसके इस कदम ने राजनीतिक दलों को सीधा फायदा दे दिया।

हालांकि जमायत-ए-इस्लामी ने भी स्पष्ट कर दिया था कि वह कश्मीरियों को कभी भी चुनाव बहिष्कार के लिए नहीं बोलेगी। उधर, चुनाव के दौरान आतंकवादियों ने चार सरपंचों की हत्या कर भय पैदा करने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी लोगों ने बेखौफ वोट डाले।

बीजेपी इस बार चुनाव में काफी जोश-खरोश के साथ उतरी। शायद पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने इतनी दफा घाटी में चुनावी रैली की। नतीजा सामने है। अब जबकि पांच दौर का मतदान खत्म हो चुका है, बात हो रही कि किस दल की सरकार बनेगी।

ज्यादातर एक्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर उभरेगी और बीजेपी का 'मिशन 44' पूरा नहीं हो पाएगा। अब राज्य में कोई भी दल अकेले सरकार बनाए या मिलकर, पर ये तो तय हो ही गया है कि जम्मू-कश्मीर में असल मायने में जीत लोकतंत्र की हुई है।

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