तिब्बत से उमाशंकर सिंह और कादम्बिनी शर्मा:
'जिस व्यक्ति ने 1959 में तिब्बत छोड़ दिया हो उसे तिब्बत को लेकर कुछ भी बोलने का हक़ नहीं' - यह कहना है तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के कार्यकारी उप-सचिव वु यिंग्जी का। यिंग्जी ने ये बात भारत, नेपाल और भूटान के पत्रकारों के दल के साथ बातचीत में दलाई लामा को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कही।
एनडीटीवी इंडिया ने जब यिंग्जी से पूछा कि तिब्बत से आज भी आज़ादी समर्थक प्रदर्शनों की ख़बर आती है तो उनका जवाब था कि ये सब सुनी सुनाई बातें हैं। चीन की केंद्रीय सरकार की तरफ़ से तिब्बत में की गई तरक़्क़ी से हर कोई ख़ुश है।
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत को लेकर दलाई लामा से बिल्कुल अलग ख्याल रखता है। भारत में पिछले 55 साल से निर्वासित जीवन बिता रहे दलाई लामा तिब्बत के लिए अधिक स्वायत्ता की मांग करते रहे हैं। इसमें तिब्बत से चीनी सेना की वापसी के साथ साथ स्वायत्त क्षेत्र में तिब्बत के उन हिस्सों को शामिल करने की मांग है, जिसे चीन के दूसरे प्रांतों में शामिल कर दिया गया है।
हालांकि दलाई लामा की मांग पर सवाल उठाते हुए यिंग्जी पूछते हैं कि दलाई लामा को अपने वतन से इतना प्यार था तो वह यहां से गए ही क्यों? उनको ये मान लेना चाहिए कि तिब्बत चीन का हिस्सा है और अपना अलगाववादी व्यवहार छोड़ देना चाहिए। वह ऐसी स्वायतत्ता चाहते हैं जो एक अपने आप में अलग देश (de facto independence) के पास होता है। वे तिब्बत को भारत और चीन के बीच बफ़र ज़ोन बनाना चाहते हैं। ये संभव नहीं है। चीन और भारत के बीच दशकों से दोस्ती रही है।
दरअसल तिब्बत आटोनामस रीज़न (टीएआर)के ज़रिए ही चीन का तिब्बत पर शासन है। ऐसे में दलाई लामा को लेकर टीएआर के विचार चीन की केंद्रीय सरकार से मेल खाते हैं इसमें कोई अचंभे की बात नहीं। अलबत्ता टीएआर भारत में रहने वाले तिब्बतियों से ज़रूर अपील कर रहा है कि वे तिब्बत लौट आएं और अपनी नई ज़िंदगी शुरू करें। टीएआर की दलील है कि पिछले 55 सालों में तिब्बत काफ़ी बदल चुका है और चीन की केंद्रीय सरकार ने इसके विकास के लिए कोई क़सर बाकी नहीं छोड़ा है। ढांचागत विकास से लेकर आम तिब्बतियों के लिए जीविका तक, हर मोर्चे पर चीन तिब्बत के साथ खड़ा है। इसके लिए टीएआर रेल और रोड नेटवर्क से लेकर किसानों के लिए सरकारी योजना तक की दुहाई देता है।
टीएआर बीजिंग की तरह ही है मानता है कि धर्मशाला में 'तथाकथित निर्वासित सरकार' को किसी तरह की वैधानिकता प्राप्त नहीं है। टीएआर का मानना है कि दलाई लामा के साथ बीजिंग की बातचीत मधुर नहीं रही हैं, लेकिन उसका ये भी दावा है कि दलाई लामा के निजी प्रतिनिधियों के साथ बीजिंग लगातार संपर्क में बना रहा है।