श्रीलंका की स्थिति बहुत खराब है. श्रीलंका के प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में घुस गए हैं. राष्ट्रपति के स्विमिंग पूल में लोग नहा रहे हैं. राष्ट्रपति भवन में टीवी पर, बड़े पर्दे पर रास्ट्रपति के भागने की खबर देख रहे हैं. राष्ट्रपति भवन से बहुत सारा कैश मिला है. एक गोपनीय सुरंग होने की बात सामने आ रही है. सबसे बड़ा सवाल है श्रीलंका का क्या होगा ? श्रीलंका की मदद करने के लिए कौन सामने आएगा. क्या श्रीलंका दोबारा पहले की तरह खड़ा हो पायेगा. इन सवालों के बीच मैं एक दूसरे सवाल पर पहुंच गया है. श्रीलंका के कई क्रिकेटर खड़े हुए नज़र आ रहे हैं. क्या भारत में ऐसा होता है ? क्या भारत के क्रिकेटर लोगों की समस्या के साथ खड़े होते हुए नज़र आते हैं ? क्या भारत के क्रिकेटर किसी मुद्दे को लेकर खुलकर आलोचना करते हैं. श्रीलंका के क्रिकेटरों ने एक उदाहरण पेश किया है.
9 जुलाई को श्रीलंका के पूर्व कप्तान एस जयसूर्या सड़क पर लोगों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट करते हुए नज़र आये. जयसूर्या 1996 वर्ल्ड कप के हीरो थे. जयसूर्या की शानदार बल्लेबाजी की वजह से श्रीलंका ने वर्ल्डकप जीता था. जयसूर्या मैन ऑफ द सीरीज बने थे. सिर्फ जयसूर्या नहीं पूर्व कप्तान अर्जुना राणातुंगा, कुमार सांगाकारा, महेला जयवर्धने, रोशन महानामा जैसे कई महान खिलाड़ी सरकार के खिलाफ लोगों के साथ खड़े हुए नज़र आ रहे हैं.
अप्रैल के महीने में जयवर्धने ने एक लंबा ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार लोगों के अधिकार को नजरअंदाज नहीं कर सकती. लोगों को प्रदर्शन करने का पूरा अधिकार है. लोगों को गिरफ्तार करना सही नहीं है. देश की लोगों को बचाना बहुत जरूरी है. यह समस्या इंसान द्वारा बनाई गई समस्या है और योग्य इंसान ही इसे ठीक कर सकते हैं. जयवर्धने सीधे तरीके से मौजूदा सरकार पर सवाल उठा रहे थे और देश को बचाने के लिये एक योग्य नेता की बात कर रहे थे. जयवर्धने श्रीलंका पुलिस के खिलाफ भी आवाज़ उठा चुके हैं. श्रीलंका पुलिस ने जब प्रदर्शन कर रहें लोगों के ऊपर गोली चलाई जिसमें कुछ लोगों को घायल भी कर दिया था तब जयवर्धने ने लिखा था कि अगर लोग हिंसा प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता हैं लेकिन उन पर गोली चलना पूरी तरह गलत है. यह भी लिखा था कि श्रीलंका पुलिस आपको शर्म आनी चाहिए.
पूर्व कप्तान कुमार संगकारा भी प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं. संगकारा की पत्नी भी भीड़ के साथ प्रदर्शन करते हुए नज़र आई है. सिर्फ पूर्व क्रिकेटर ही नहीं बल्कि कई मौजूदा क्रिकेटर भी लोगों के साथ खड़े हुए नज़र आ रहे हैं. किंग्स इलेवन पंजाब की तरफ से खेलने वाले श्रीलंकाई बल्लेबाज भानुका राजपक्षे ने ट्वीट करते हुए कहा था कि मैं देश से दूर हूँ लेकिन देशवासियों की पीड़ा को मैं समझ सकता हूँ. लोगों के मौलिक अधिकार को दमन किया जा रहा है, लेकिन जब 22 मिलियन लोग एक साथ आवाज़ उठा रहे हैं तो उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. वनिन्दू हसरंगा ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि साथ रहिए मजबूत रहिए. इस बार आईपीएल में ज्यादा विकेट लेने के मामले में हसरंगा दूसरे स्थान पर थे.
शांतिपूर्ण प्रदर्शन एक मौलिक अधिकार है. जब ऐसे प्रदर्शन को क्रिकेटरों का समर्थन मिलता है तो प्रदर्शनकारियों का मनोबल बढ़ता है. भारतमें लोग क्रिकेट को धर्म मानते हैं और क्रिकेटरों को भगवान. जिन क्रिकेटरों को हमारे देश के लोग भगवान मानते हैं क्या वही भगवान कभी अपने भक्तों के लिए सड़क पर उतरे हैं.कभी अपने भक्तों की समस्या के साथ खड़े होते नज़र आये हैं.
भारत का क्रिकेट बोर्ड दुनिया का सबसे ताकतवर क्रिकेट बोर्ड है. ताकत पैसे और पावर से ही आती है. यहां बोर्ड को चलाने वाले ज्यादातर लोग राजनेता हैं. ऐसे भी जहां राजनेता आ जाते हैं वहां ताकत आ जाती है और यही ताकत प्रदर्शन करने की ताकत को कमजोर कर देती है. 2007 में कपिल देव इंडियन क्रिकेट लीग का चेयरमैन बने. आईसीएल एक अलग लीग थी , BCCI के साथ आईसीएल का कोई लेना देना नहीं था. BCCI ने कपिल देव की पेंशन बंद कर दिया. कई पदों से हटा दिया था. आईसीएल में खेलने वाले खिलाड़ियों का कैरियर बर्बाद हो गया. ये खिलाड़ी आगे ना राज्य टीम में खेल पाए न राष्ट्रीय टीम में. 2008 में BCCI ने खुद आईपीएल शुरू की और आईपीएल इतना लोकप्रिय हुआ कि आईसीएल अपने आप बंद हो गया.
बाद में कपिल देव और कई और खिलाड़ियों ने BCCI से माफी मांगी और फिर पेंशन शुरू हुई. अगर भारत के खिलाड़ी कभी सड़क पर उतरेंगे, लोगों की समस्या के साथ खड़े होंगे तो उनका हाल क्या होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं लेकिन फिर भी शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करना एक मौलिक अधिकार यह बात हमारे क्रिकेटरों को भी समझनी चाहिए.