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This Article is From Jul 25, 2020

ध्यान रहे : कोरोना न तो भाभी जी के पापड़ से खत्म होने वाला है न बाबाओं की दवाई से

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 25, 2020 22:56 pm IST
    • Published On जुलाई 25, 2020 22:33 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 25, 2020 22:56 pm IST

करीब दो महीने पहले किसी एक रिसर्च स्कॉलर का फोन आया. रिसर्च करके वो कोरोना के ऊपर कोई किताब लिख रहे थे. जब मैंने पूछा कि आप मुझसे क्या चाहते हैं तो उनका जवाब था कि कोरोना के ऊपर उन्होंने काफी रिसर्च की है और टीवी पर आ कर बोलना चाहते हैं. उनका कहना था कि भारत में कोरोना का कोई असर नहीं होगा, लोगों को डरने की जरूरत नहीं. लॉकडाउन खोल देना चाहिए, लॉकडाउन करके सरकार ने गलती की है. जब मैंने पूछा कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं तो उनका जवाब था कि भारत जैसे गर्म देश में कोरोना कोई असर नहीं डाल पाएगा. अमेरिका जैसे ठंडे देश का उदाहरण देने लगे फिर अलग अलग ठंडे देशों के डेटा की भारत के साथ तुलना करने लगे. कहने लगे कि देखिये भारत में गर्मी की वजह से कम केस आ रहे हैं और कम लोग मरे हैं. मैंने उन्हें कहा कि भारत में तो अभी शुरुआत है, आप कैसे कह सकते हैं कि आगे केस नहीं बढ़ेंगे. वो सुनने को तैयार नहीं थे.

मैंने उन्हें कहा कि रूस में भी तो ठंड पड़ती है, वहां भी कम लोग मरे हैं. उनका कहना था रूस डेटा में गड़बड़ी कर रहा है. फिर मैंने उन्हें कहा कि अगर गर्मी की वजह से केस कम होते और कम लोग मरते तो साउथ इंडिया में तो कोरोना का कोई केस नहीं होना चाहिए था, लेकिन वो सुनने के लिए तैयार नहीं थे. मैंने उनसे कहा था कि दो महीने के बाद आपसे बात करूंगा. अगर केस कम होंगे तो आपकी बात मान लूंगा और आपको शो में बुलाऊंगा. करीब एक महीने के बाद उनका एक व्हाटसऐप आया जिसमें उनकी किताब का कवर था. उन्होंने वो किताब भी लिख भी दी. अब दो महीने हो गए, भारत की स्थिति क्या है आप सबको पता है. मैंने यह बात इसलिए लिखी क्योंकि कोरोना के इस संकट में भी कई लोग मौका ढूंढ रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो केंद्रीय मंत्री भाभी जी के पापड़ का प्रचार नहीं करते और यह नहीं कहते कि इस पापड़ से एन्टबॉडी पैदा होगी जो कोरोना से लड़ने में मदद करेगी. अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री जी को राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात नहीं करनी चाहिए, हर राज्य को भाभी जी पापड़ ही भेज देना चाहिए.

कोरोना के इस संकट में कोई पापड़ बेच रहा है तो कोई दवाई के नाम पर पैसा कमा रहा है. अगर कोरोना को समझना इतना आसान होता तो मास्क को लेकर अलग-अलग बयान नहीं आते. शुरुआत में तो यह कहा जा रहा था कि जो व्यक्ति संक्रमित हुआ है सिर्फ उसे मास्क पहनने की जरूरत है, फिर कहा गया कि सबको पहनना चाहिए और अब कहा जा रहा है कि कुछ मास्क ठीकठाक काम नहीं करते हैं. कभी वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन कहता है कोरोना हवा में नहीं फैलता है, कभी यह रिपोर्ट आती है कि हवा में फैल भी सकता है? इस पर जांच की जरूरत है. कोरोना को लेकर सब कंफ्यूज हैं. जैसे जैसे कोरोना अपना रंग बदलता है, वैज्ञानिकों के तथ्य भी बदल जाते हैं. पूरी दुनिया कोरोना को लेकर परेशान है लेकिन अभी तक एक वैक्सीन नहीं बन पायी है. पता नहीं 2021 तक वैक्सीन बन पाएगी या नहीं. इसे पता चलता है कि मेडिकल सिस्टम कितना घटिया है. बड़े-बड़े देशों के पास एटम बम है. दुनिया को खत्म करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ बैठे हैं लेकिन दुनिया को बचाने के लिए विज्ञान का जितना विकास होना चाहिए था वो नहीं हुआ है.

अब आंकड़े पर आता हूं. आजकल जब किसी देश या राज्य में कोरोना संक्रमित केस कम हो जाते हैं तो न्यूज़ पेपर के पहले पन्ने पर हेडलाइन होती है, ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में चलाया जाता है, यह तथ्य दिया जाता है कि कोरोना खत्म हो गया है. लेकिन कोरोना के हर रंग को समझने की जरूरत है. कोरोना को खत्म करना इतना आसान नहीं है. अगर 10 केस रह जाते हैं तो उसी से हज़ारों की संख्या में लोग संक्रमित हो जाते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो केरल और ओडिशा का उदाहरण ले लीजिए. एक समय दोनों राज्यों की काफी तारीफ हो रही थी. दोनों राज्य कोरोना को नियंत्रि‍त करने में सक्षम हुए थे लेकिन अब दोनों राज्यों की स्थिति देखिए. केरल में तो कई जगह कम्युनिटी ट्रांसमिशन की बात कही जा रही है. ओडिशा का गंजाम ज़िला, जहां एक भी केस नहीं था आज ओडिशा के कुल केस का 32 प्रतिशत इसी ज़िले से है.

8 मई तक केरल में कुल केस 503 थे जिसमें से 484 लोग ठीक होकर घर जा चुके थे, सिर्फ 16 एक्टिव केस थे, 3 लोगों की मौत हुई थी. उस समय यह कहा जा रहा था कि केरल में कोरोना के मामले बहुत जल्दी जीरो पर पहुंच जाएंगे. लेकिन 25 जुलाई तक केरल में कुल केस 16995 पहुंच गए हैं जिसमें से 7562 लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं, 9371 एक्टिव केस हैं और 54 लोगों की मौत हुई है. 8 मई तक जहां रिकवरी रेट 95 प्रतिशत के करीब था अब वहां एक्टिव केस रिकवरी रेट से ज्यादा हैं. ओडिशा में पहला केस 16 मार्च को आया. 30 अप्रैल तक ओडिशा में कुल केस 152 के करीब थे जिसमें 50 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग ठीक हो गए थे. 18 मई को ओडि‍शा में कुल केस 1000 के पार पहुंचे. 19 जून तक कुल केस 5000 पहुंच गए. ओडिशा में कुल केस 1000 पहुंचने में 63 दिन लगे जबकि 1000 से 5000 पहुंचने में 31 दिन के करीब लगे.

25 जुलाई तक ओडिशा में कुल केस 24013 पहुंच गए हैं यानी 5000 से 24000 पहुंचने सिर्फ 36 दिन लगे हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि केरल और ओडिशा में जहां कहा जा रहा था कि कोरोना जल्दी खत्म हो जाएगा, आज वहां स्थिति ठीक नहीं है. सिर्फ ओडिशा और केरल क्यों, आप दूसरे देशों के डेटा पर भी नज़र डाल सकते हैं. एक समय अमेरिका में रोज 40000 से भी ज्यादा केस आ रहे थे, फिर केस कम होकर 20000 के नीचे तक पहुंच गया थे. अब वहां रोज 60000-70000 केस आ रहे हैं. न्यूज़ीलैंड ने कोरोना को पूरी तरह खत्म करने की बात कही तो कुछ दिन के अंदर वहां नए केस आ गए थे.

इसीलिए कोरोना अभी पूरी तरह खत्म नहीं हो रहा है, वो ब्लड प्रेशर की तरह है. ब्लड प्रेशर की दवाई से ही BP कंट्रोल में रहता है लेकिन कभी पूरी तरह खत्म नहीं होता है, जैसे ही आप दवाई खाना बंद कर देते वैसे ही BP बढ़ जाता है. उसी तरह जि‍तने दिनों तक आप खुद को कोरोना से सुरक्षित रखेंगे आप सुरक्षित रहेंगे, जिस दिन आप ढील देंगे उस दिन कोरोना हमला कर देगा. इसलिए अपने आप को सुरक्षित रखिये. न तो भाभी जी के पापड़ से कोरोना ठीक होने वाला है ना बाबाओं की दवाई से. कोरोना तो सिर्फ वैक्सीन से खत्म होगा लेकिन तब तक वैक्सीन पर भरोसा मत करना जब तक खुद को न लग जाए. वैक्सीन का झांसा देकर कई मेडिसिन कंपनियां अपने शेयर के दाम बढ़ाने में लगी हैं जैसे लोग पैसा कमाने के लिए कोरोना पर किताब लिख रहे हैं.

(सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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