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बस आने ही वाला है बोर्ड एग्जाम का सीजन, कैसी हो अभिभावकों और स्टूडेंट की रणनीति?

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 29, 2024 16:09 pm IST
    • Published On नवंबर 29, 2024 16:01 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 29, 2024 16:09 pm IST

आने वाले तीन-चार महीनों में 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाएं होने जा रही हैं. CBSE ने 10वीं बोर्ड परीक्षा की डेटशीट जारी कर दी है. अन्य बोर्ड भी इसकी तैयारी में हैं. ज्यादातर स्टूडेंट परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कुछ खास रणनीति बनाने में जुट गए होंगे. कई अभिभावक भी अपने बच्चों के भविष्य को लेकर तरह-तरह के विचारों में डूबे होंगे. ऐसे में इस पूरे मुद्दे पर चर्चा वक्त की मांग है.

एग्जामिनेशन-फीवर

आम तौर पर एग्जामिनेशन-फीवर हर तरह के स्टूडेंट पर हावी होता आया है. जो तेज-तर्रार और मेधावियों में गिने जाते हैं, उन पर भी एक खास किस्म का दबाव रहता है. दबाव इस बात का कि कहीं इस बार परसेंटेज गिर न जाए. कहीं रैंकिंग की रेस में कोई दूसरा बाजी न मार ले. दूसरी ओर, कुछ छात्र ऐसे भी होंगे, जो केवल पास या फेल के सवाल में सिर खपा रहे होंगे. मतलब, फीवर सबके ऊपर होता है, बस अपने-अपने लेवेल और टारगेट का फर्क है.

वैसे कई रिसर्च में यह बात पाई गई है कि अगर डर संतुलित और सीमित मात्रा में हो तो कई मौकों पर यह फायदेमंद साबित होता है. मसलन, जब गाड़ी एकदम तेज रफ्तार से ड्राइव की जा रही हो तो थोड़ा भय का भाव आना भी जरूरी होता है. यह भय इंसान को मौके के मुताबिक सचेत-सतर्क करता है, ताकि समय रहते संभावित हादसे को टाला जा सके. ठीक इसी तरह एग्जामिनेशन फीवर को भी सकारात्मक नजरिए से देखे जाने की जरूरत है.  

सेहत का सवाल

परीक्षा की गहन तैयारी शुरू करने से लेकर रिजल्ट आने तक जिस एक चीज पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, वह है सेहत. यही वो चीज है, जिसकी ज्यादातर विद्यार्थी अति उत्साह में या हैरानी-परेशानी की स्थिति में उपेक्षा कर बैठते हैं. तैयारी के दौरान असंतुलित या अनियमित दिनचर्या का सेहत पर बुरा असर पड़ता है. ज्यादा लोड पड़ने पर रात-रातभर जागकर पढ़ाई करना न तो सेहत के लिए अच्छा है, न ही परीक्षा के लिए. नींद को जबरन रोककर की गई पढ़ाई एग्जामिनेशन हॉल में काम आ सकेगी या नहीं, इसे लेकर संदेह बना रहेगा. इस पॉइंट पर आकर अभिभावकों के मार्गदर्शन का रोल बड़ा हो जाता है.

बेहतर है कि चाहे अगले दो-तीन महीने के लिए ही सही, एक रुटीन बना लिया जाए. पढ़ने-लिखने, खाने-पीने का एक समय निश्चित कर लिया जाए. पढ़ाई की अवधि भी हर दिन कमोबेश एक जैसी हो, तो बेहतर. ऐसा न हो कि किसी दिन जोश में आकर 12-14 घंटे पढ़ाई की जाए और अगले दिन लस्त-पस्त होकर 3-4 घंटे. बच्चों को समझना चाहिए कि लगातार अनुशासित होकर की गई पढ़ाई न केवल बोर्ड परीक्षा में, बल्कि पूरे जीवन में ढेर सारे मौकों पर सफलता के दरवाजे खोल सकती है.

मॉडल पेपर और प्रैक्टिस सेट

चाहे कोई भी सब्जेक्ट हो, उसका ज्ञान होना एक बात है और उसे परीक्षा हॉल में तय समय-सीमा के भीतर और ठीक ढंग से लिख पाना दूसरी बात. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हर विषय में सवालों के जवाब घड़ी देखकर निश्चित समय में लिखने का पूरा अभ्यास किया जाए. एग्जामिनेशन हॉल में किसी टॉपिक पर चिंतन-मनन और विचार-मंथन का समय नहीं मिलता. इसलिए इन कामों को वक्त रहते घर पर ही निपटा लेना चाहिए. परीक्षा में केवल पेन चलना चाहिए, वह भी बेधड़क.

आजकल हर विषय के मॉडल पेपर, प्रैक्टिस सेट और पुराने साल के क्वेश्चन बैंक बाजार में आसानी से उपलब्ध रहते हैं. अपनी जरूरत के मुताबिक, इनके जरिए ज्यादा से ज्यादा सवालों को हल करने का अभ्यास किया जाना चाहिए. इसके बाद तैयारी में जहां-कहीं कमी नजर आए, उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए. 'Practice makes a man perfect' वाली कहावत सदियों पहले भी कारगर थी, आज भी है.

परीक्षा का आईना

चाहे स्टूडेंट हों या अभिभावक, हर किसी को समझना चाहिए कि परीक्षा आईने जैसी ही होती है. चाहे मन ही मन हम अपनी जैसी भी छवि गढ़ लें, लेकिन आईना वही दिखाता है, जैसे हम हैं. रिजल्ट की ओर लगी ढेर सारी उम्मीदों, अपेक्षाओं और हकीकत के बीच एक फासला भी हो सकता है, लेकिन इसमें परीक्षा का कोई कसूर नहीं होता. परीक्षा लिए जाने का मकसद ही यह होता है कि इससे हमारे ज्ञान और रुचियों-रुझानों का ठीक-ठीक पता चल सके.

परीक्षा की तैयारी या रिजल्ट को लेकर किसी दूसरे बच्चे से तुलना किया जाना भी एकदम गैरजरूरी है. आखिरकार, हर बच्चे की क्षमता अलग-अलग होती है. हर किसी की अपनी खूबियां या खामियां होती हैं. यहां हर कोई अपनी खासियत के दम पर ही अपनी अलग पहचान बनाता है.

माता-पिता की जिम्मेदारी

जिन बच्चों के सामने बोर्ड की परीक्षा आने वाली है, उनके माता-पिता या अभिभावकों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है. इनकी कोशिश होनी चाहिए कि घर का माहौल पॉजिटिव बनाए रखें. ऐसे मौके पर बच्चों को मेहनत करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करने की जरूरत होती है. छात्रों से नियमित रूप से बातचीत की जानी चाहिए, जिससे वे अपनी उलझनों और समस्याओं को खुलकर बता सकें. उनकी समस्याओं को न केवल सुनना, बल्कि उनका वाजिब समाधान निकाला जाना भी जरूरी है.

परीक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा पढ़ने का दबाव बनाना घातक हो सकता है. संभावित रिजल्ट को लेकर बच्चों के मन में डर पैदा करना भी गलत है. इससे उनका आत्मविश्वास डगमगा सकता है. बड़े मौकों पर आत्मविश्वास बनाए रखने की कहीं ज्यादा जरूरत होती है. बच्चों को पढ़ाई के दौरान बीच-बीच में ब्रेक और पर्याप्त नींद लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए. हेल्दी डाइट भी जरूरी है, जिससे बच्चे पूरे दिन ऊर्जावान रहकर काम कर सकें.

लंबी रेस के पड़ाव

परीक्षा चाहे 10वीं बोर्ड की हो या 12वीं बोर्ड की, दोनों एक लंबी रेस के पड़ाव की तरह हैं. सिर्फ बोर्ड के नतीजों के आधार पर जीवनभर की कामयाबी या नाकामी तय नहीं हो जाती है. ये महज मील के पत्थर हैं, अपने-आप में कोई मंजिल नहीं. पूरा इंटरनेट इन सच्चे किस्सों से भरा पड़ा है कि बोर्ड में औसत या खराब मार्क्स लाने वालों ने भी किस तरह आगे सफलता के बड़े-बड़े कीर्तिमान खड़े कर दिए. इसके उदाहरण भी आसानी से मिल जाते हैं कि बोर्ड में बहुत शानदार अंक लाने वाले भी आगे चलकर कुछ खास हासिल न कर सके.

इसलिए बोर्ड परीक्षा और इसके नंबर को लेकर अभी से ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. हां, इसका मतलब यह भी नहीं कि इन परीक्षाओं को एकदम हल्के में लिया जाए. परीक्षा की तैयारी पूरी मेहनत और उचित रणनीति बनाकर की जानी चाहिए. लेकिन रिजल्ट को लेकर पहले से ही आशंकित या आतंकित रहना कतई जरूरी नहीं. परीक्षा के खौफ से उबरकर मनचाही सफलता पाई जा सकती है.

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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