जब निर्भया केस सामने आया, मैं 7 महीने की प्रेगनेंट थी। मन में आया था कि चौराहे पर खड़ी हो जाऊं और खुद पर लिख लूं- 'ऐसी दुनिया में आने से अच्छा तू मत आ...' पर पता नहीं क्या सोचकर ऐसा नहीं किया। शायद जानती थी कि कुछ तस्वीरों और थोड़े दिन के चर्चे के अलावा मेरी ये बात किसी की समझ नहीं आएगी...
शायद सुनने में आपको अजीब लगे, लेकिन मेरे ज़ेहन में एक सवाल है। आखिर क्यों हम संगीन अपराधों और किसी बड़े क्रिमिनल की ही तरह अंजाम देने वाले उन अपराधों को छोटा मान बैठते हैं, जब उन्हें करने वाला उम्र में छोटा हो या न हो, पर कुछ दिन, कुछ घंटों, कुछ महीनों या फिर साल भर के अंतराल से ही नाबालिग साबित किया जा सकता हो। और फिर इस देश में अगर एक तबके को छोड़ दिया जाए, तो कितने लोगों को अपने सही उम्र पता है?
निर्भया, तुम एक बार इस हादसे की शिकार नहीं हुईं, तुम पर बार-बार हमले किए गए। यहां तक कि बिना तुमसे पूछे तुम्हारा नाम तक बदल दिया गया... ज़रूरत और तुम्हारी कहानी की ‘हैसियत’ के मुताबिक... और फिर अचानक तुम्हारा नाम उजागर होने पर मचे बवाल के बाद भी।
दिल्ली में हुआ ये गैंगरेप सिर्फ कुंठित पुरुषों द्वारा एक लड़की का बलात्कार नही था... लड़की को पीड़ित कहना तो एक क्षण के लिए समझ भी आता है, लेकिन यह कहना कि 'लड़की की इज्जत तार-तार कर दी गई', 'इज्जत लूट ली गई', 'अस्मत लुट गई' बहुत अख़रता है। वास्तव में यही शब्द और इसी सोच ने यह बलात्कार किया है न कि कुछ एैरे-गैरे पुरुषों ने... समझ नहीं आता कि आखिर पुरुष द्वारा की गई किसी गंदी हरकत में लड़की की इज्जत कैसे लुट जाती है... इज्जत तो पुरुष की लुटनी चाहिए ना, कि उसने इतना घिनौना काम किया... फिर आखिर क्यों ऐसी आवाजें उठती हैं 'लड़की की अस्मत लूटने वालों को कड़ी सजा हो...'
अगर यह मानसिकता नहीं होती तो शायद ये हादसा नहीं हुआ होता, क्योंकि बदला लेने और शर्मिंदा करने के लिए बलात्कार करने वाले उन पुरुषों को पता होता कि ऐसा करने से लड़की की नहीं उनकी इज्जत दांव पर लगेगी। लड़की की नहीं उनकी अस्मत लुटेगी। क्या ये हमारा दोहरा रवैया नहीं है, हम दोषी को दोषी नहीं कहते, बल्कि एक अपराध के पीड़ित को ‘अपराधी’ बना देते हैं। मैं हमारे सभ्य और मर्यादित समाज से पूछना चाहती हूं आख़िर क्यों वो बलात्कार की शिकार लड़की का नाम छिपाना चाहता है, क्या उसे उनसे सहानुभूति है या फिर एक दया...? अगर समाज की नज़र में वह गुनहगार नहीं पीड़ित है, तो उसके नाम को चोरों की तरह दबाकर क्यों रखा जाता है...? अगर इसके पीछे दिए गए सारे तर्क एक औरत की अस्मिता, उसके सम्मान और उसके मान से जुड़े हैं तो क्या वो सब धता नहीं हैं?
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