बिहार में रविवार को बहुत कुछ हुआ... कुछ घटना ऐसी हुई जो पहले न सुनी गयी न देखी गयी. ऐसा क्या हुआ और क्यों हुआ लेकिन जो भी हुआ सब कहते हैं ये तो आज नहीं तो कल होना ही था .
हां, रविवार को राज्य के इतिहास में पहली बार एक चुनी हुई राज्य सरकार के खिलाफ शिकायत और और अपना अविश्वास जगजाहिर करते हुए राज्य के 80 से अधिक आईएएस अधिकारी राजभवन मार्च ही नहीं किया बल्कि राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा. और ये भी घोषणा कर डाली कि आने वाले दिनों में राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी से मिलकर अपनी गुहार लगाएंगे. हालांकि ये अधिकारी या आईएएस एसोसिएशन का एक दल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिला था लेकिन वहां पहली बार अधिकारियो ने नीतीश कुमार के कद और गरिमा को नजरअंदाज करते हुए उन्हें दो टूक शब्दों में कहा था की अब वो किसी चयन आयोग या परीक्षा का भार नहीं लेंगे. ये अधिकारी इस बात को लेकर खफा हैं की पुलिस अधिकारी जो भी उन्हें समझते हैं वो उनकी बातो में आकर उनके खिलाफ कार्रवाई पर अपनी सहमति दे देते हैं. और अब पानी सर से ऊपर चला गया हैं.
भले इस बार विवाद राज्य चयन आयोग आयोग के अध्यक्ष सुधीर कुमार के गिरफ्तारी से शुरू हुआ हो लेकिन इस असंतोष की खिचड़ी काफी दिनों से पक रही थी केवल नीतीश इसे भाप नहीं पाए. ये नीतीश कुमार का अपना अति आत्मविश्वास या अधिकारियो में उनकी घटती साख दोनों का परिणाम हैं. लेकिन आखिर राज्य के आईएएस अधिकारी इतने खफा-खफा क्यों चल रहे हैं क्योंकि नीतीश कुमार अभी भी जितना समय अपने पार्टी और परिवार को नहीं देते उससे कई गुना अधिकारियो की संगत में गुजरते हैं. ये सब जानते हैं की कुछ नेता ऐसे होते हैं जो अधिकारियों को अपने इशारे पर नचाने में विश्वास करते हैं तो कुछ राजनैतिक मित्रों और कार्यकर्ताओं से ज्यादा अधिकारियों के साथ अपने आप को व्यस्त रखते हैं और नीतीश के समर्थक और उनके कट्टर विरोधी भी इस बात पर सहमत हैं कि वो दूसरे श्रेणी के राजनेता हैं. लेकिन नीतीश कुमार के आसपास के जो अधिकारी हैं उन्होंने अपने बात विचार से अधिकारियों के एक बड़े वर्ग को न केवल अपमानित किया हैं बल्कि उनके कारण काफी नाराजगी हैं. दूसरी बात की नीतीश कुमार हर बार बोलते हैं कि कानून अपना काम करता हैं और वो न किसी को बचाते हैं न किसी को फंसाते हैं लेकिन हाल के दिनों में आईएएस अधिकारी ही सब को इस बात का उदाहरण देते हैं कि जब मेधा घोटाला हुआ तब उस समय के शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव धर्मेंद्र सिंह गंगवार से पुलिस ने पूछताछ करने की भी जरूरत नहीं समझी जबकि वैशाली के जिला अधिकारी ने फाइल में लिखा है कि गंगवार के मौखिक आदेश पर परीक्षा केंद्र बदल गया जहां सारा गरबड़ घोटाला हुआ. दबी जुबान में लोग ये कहते हैं कि चूंकि गंगवार और नीतीश कुमार एक जाति से आते हैं इसलिए कानून ने वहां आँखों पर पट्टी बांध ली. दूसरी बात अधिकारियों का कहना है कि नीतीश कुमार की कोई योजना या कार्यक्रम हो अधिकारी दिन-रात एक कर उसे सफल बनाते हैं लेकिन जब श्रेय लेने की बारी आती है तो किसी को क्रेडिट देने में नीतीश विश्वास नहीं करते.
इस सम्बन्ध में दो उदाहरण दिया जाता हैं. एक शराबबंदी से सम्बंधित मानव श्रृंखला जिसके लिए तीन करोड़ से अधिक लोगों की भागीदारी खुद नीतीश कुमार ने स्वीकार की हैं. लेकिन अधिकारियों का कहना हैं कि ये निचले स्तर तक के अधिकारियों की विश्वसनीयता और मेहनत का फल था क्योंकि वो चाहे प्रधानमंत्री मोदी की सभा हो या खुद नीतीश कुमार की राजनीतिक रैली, जब तक साधन और खाने की व्यवस्था न हो उनकी रैली में लोग या भीड़ नहीं जुट पाती. वैसे ही नीतीश कुमार के सात निश्चय कार्यक्रम में जिला अधिकारियों ने उनकी यात्रा के मद्देनजर इधर-उधर से फण्ड डाइवर्ट कर गांवों में हर घर नल का जल और अन्य कार्यक्रम चलाये लेकिन नीतीश अब अधिकारियों को ही सूली पर चढ़ाने पर लगे हैं. इसके अलावा किसी कार्यक्रम में चूक होने पर नीतीश कुमार जांच की रिपोर्ट आने पर करवाई करते हैं. आईएएस अधिकरियो का कहना हैं कि मकर सक्रांति के अवसर पर नाव दुर्घटना के लिए अगर पर्यटन सचिव और छपरा के पुलिस कप्तान पर कार्रवाई हुई लेकिन पटना के जिला अधिकारी या पुलिस अधीक्षक पर नरमी क्यों बरती जा रही हैं. वैसे ही पटना में 2013 में गाँधी मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान बम ब्लास्ट हुआ या दशहरा के अवसर पर भगदड़ में लोग मारे गए लेकिन उस समय के पुलिस अधीक्षक अभी भी मनु महाराज विराजमान हैं.
वैसे ही शराबबंदी में जब जनता दल यूनाइटेड के एक ब्लॉक अध्यक्ष पुलिस के निशाने पर आये तब अधिकारी को भी गिरफ्तार किया गया और इसके एवज में के. के. पाठक जैसे अधिकारी को नीतीश ने तिलांजलि देना उचित समझ, जिसके बारे में शराब के अवैध कारोबार में लगे लोग भी मानते हैं की उनके कार्यकाल में डर से शराब का अवैध कारोबार टप पर गया था...
इसके अलावा जब से राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी हैं अधिकारियो का कहना हैं कि हस्तक्षेप काफी बढ़ा है. नीतीश भले ही अधिकारियों के खिलाफ शिकायत आने पर अनसुना करते हो लेकिन अब एक माहौल बनता जा रहा है कि नीतीश अपने कुछ प्रिय अधिकारियों की बातों पर विश्वास कर पूरी अफसरशाही से दूर जा रहे हैं और अपने गठबंधन के सहयोगी पर लगाम कसने में पूरी तरह विफल हैं.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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This Article is From Feb 27, 2017
बिहार में आईएएस अधिकारियों का विद्रोह... ये तो होना ही था...
Manish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 27, 2017 12:02 pm IST
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Published On फ़रवरी 27, 2017 11:11 am IST
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Last Updated On फ़रवरी 27, 2017 12:02 pm IST
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