कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ 30 मिनट की बैठक के बाद अशोक गहलोत रिपोर्टरों से मुखातिब हुए. राजस्थान के सीएम (फिलहाल) ने कहा, "मैंने उनसे माफी मांगी." अपनी 'बॉस' को नाराज नहीं करने के अलावा उनका अगला कदम वह होना चाहिए कि उनका पद नहीं लेना है. गहलोत ने पुष्टि की, "मैं कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ूंगा."
इसके साथ ही यह साफ हो गया कि अशोक गहलोत ने ट्रुथ ऑर डेयर (सच्चाई या साहस) के अपने उस अभियान को विराम दे दिया है जिसे उन्होंने गांधी परिवार के समक्ष यह साबित करने के लिए शुरू किया था कि राजस्थान उनकी इच्छा के अनुसार चलेगा. ऐसे में जैसा कि वे चाहते थे कि उन्हें पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ना और निर्वाचित होना था, लंबे समय के उनके प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाया जा सकता था और नया नेता गहलोत की पसंद का होना चाहिए.
यह संदेश राजस्थान के 92 विधायकों के इस्तीफे के जरिये दिया गया था जिन्होंने कहा था कि अशोक गहलोत को ही यह अधिकार होगा कि वे अपना उत्तराधिकारी चुनें.
इस तरह गांधी परिवार की पसंद से लेकर जिसका अर्थ था कि उन्हें अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की पेशकश करनी पड़ी, अब वह गांधी परिवार की सबसे बड़ी समस्या बन गए. इस तरह से उन्होंने इस बात का बदला लिया कि राहुल गांधी जैसी शख्सियत ने उन्हें सार्वजनिक रूप से 'एक व्यक्ति, एक पद' के नियम के लिए बताया कि यह नियम उनके लिए नहीं बदला जाएगा जब वे कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे यानी जब वे कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे तो उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर अपने ड्रीम जॉब को छोड़ना ही होगा.
आज वो अशोक गहलोत थे जो अमन का सफेद झंडा लहराते नजर आए लेकिन वे बहुत हल्के में छूट गए हैं क्योंकि अब न तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना पड़ेगा और यह ऐसा काम है जो दरअसल वे चाहते भी नहीं थे और अब तक उन्हें इस बात के लिए कोई 'जुर्माना' भी अदा नहीं करना पड़ा है क्योंकि उन्होंने गांधी परिवार को कमजोर दिखने पर मजबूर किया क्योंकि ऐसा लग रहा था जैसे समूची राज्य इकाई गांधी परिवार के कुछ कहते की परवाह किए बिना अपना काम करते जा रही है. उनके आदेश को टालने के लिए तैयार बैठी है.
अशोक गहलोत ने यह भी कहा कि वे राजस्थान के मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं रहेंगे, यह सोनिया गांधी तय करेंगी." इसके बाद सोनिया गांधी के अधिकारों को तुरंत स्थापित करने लिए केसी वेणुगोपाल ने भी इसमें जोड़ा कि इस मुद्दे पर फैसला दो दिन में ले लिया जाएगा.
अब बार-बार सामने आते रहना कैंप गांधी के लिए भी मुश्किल होगा. दो दशक से अधिक समय में पहली बार पार्टी के शीर्ष पद पर चुनाव के जरिये नाम तय होने वाला था. इसके अब तक दो उम्मीदवार सामने आए हैं : दिग्विजय सिंह और शशि थरूर. ऐसा नजर नहीं आता कि गांधी परिवार इनमें से किसी का समर्थन कर रहा है. सो, एक तीसरा उम्मीदवार जो उनकी पसंद हो सकता है, माना जा रहा है कि सामने आ सकता है . यदि ऐसा शख्स सामने आता है तो इस बात की पूरी संभावना है कि दिग्विजय सिंह चुनाव से हट जाएंगे.
यदि अशोक गहलोत ने गांधी परिवार की स्थिति को कमजोर किया है तो उनका दावा है कि ऐसा अनजाने में किया है. उधर 45 वर्षीय सचिन पायलट की स्थिति भी बहुत मजबूत नहीं है. दो साल में दूसरी बार वे यह प्रदर्शित करने में नाकाम रहे हैं कि कांग्रेस की राजस्थान इकाई मुख्यमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत पर उन्हें प्राथमिकता दे सकती है. वर्ष 2018 में जब पार्टी ने राज्य में चुनाव जीता था तब उनसे कहा गया था कि यह पद उनके और अशोक गहलोत के बीच 'शेयर' किया जाएगा लेकिन ऐसे समय जब चुनाव को बस एक साल शेष है, गहलोत का 'लॉग आउट' करने का कतई इरादा नहीं लग रहा है.
मैंने दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों, गहलोत और पायलट धड़े सहित पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से जुड़े कई नेताओं से बात की जो इस समय गांधी परिवार और सचिन पायलट का सम्मान बचाने के लिए कोई ढंग का बहाना ढूंढ़ रहे हैं. राजस्थान में जो अभी हंगामा हुआ, उसे निपटाने की कोशिश कर रहे एक कांग्रेस नेता ने कहा, "गांधी परिवार का मानना था कि अशोक गहलोत अडिग चट्टान की तरह हैं जो पूरी तरह वफादार भी हैं लेकिन सोनिया गांधी का विश्वास आज चूर-चूर हो गया है."
सचिन पायलट के करीबी सूत्र तो उनकी चुप्पी को भी उनकी खासियत बताते हैं और ऑन रिकॉर्ड बताते हैं. वह बार-बार कहते हैं कि अपने मामले को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला और कहा कि वे गांधी परिवार के विजन को लेकर प्रतिबद्ध हैं, बावजूद इसके कि उनसे किए गए मूल वादे को पूरा नहीं किया गया. सूत्रों ने कहा, "गहलोत को गांधी परिवार का नामित होने के नाते VRS, एक गोल्डन पैराशूट दिया गया. हमारी पार्टी में कई पूर्व मुख्यमंत्री हैं जो उनकी ओर देखते भी हैं? सचिन पायलट, गांधी परिवार को अशोक गहलोत के इरादे के बारे में यही बताने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन अब गहलोत ने खुद ही पायलट की बात को साबित कर दिया है." निजी तौर पर सचिन पायलट को उनके प्रतिद्वंद्वी कमजोर साबित करने पर तुले थे लेकिन उन्हें समर्थन देने के लिए एक बड़े आधार के बगैर उनका भविष्य अब इस बात पर निर्भर हैं कि क्या गांधी परिवार, पार्टी द्वारा शासित सबसे बड़े राज्य में अशोक गहलोत के साथ नए सिरे से 'जंग' का जोखिम मोल लेगा.
जैसा कि NDTV ने आज रिपोर्ट किया कि दिग्विजय सिंह ने ऐसी टिप्पणी की जो अपने आप में बहुत कुछ कहती है. उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के बारे में गांधी परिवार से बात नहीं करने का बयान दिया. यह स्पष्ट नहीं है कि यह बात स्वतंत्र नेता के तौर पर श्रेय लेने के लिए थी या फिर वे गांधी परिवार को अपना आदर्श प्रतिनिधि नहीं मिलने तक पूरी तरह से कार्यशील चुनाव प्रदर्शित करने के लिए एक 'प्लेस होल्डर' के तौर पर थे.
दिलचस्प बात यह है कि आज मैंने गहलोत खेमे सहित जिन सभी नेताओं से बात की, वे सब सोनिया गांधी के करीबी रहे दिवंगत अहमद पटेल के वास्तविक सियासी कौशल को याद कर रहे थे. अहमद पटेल ने 2020 में सचिन पायलट के विद्रोह को विफल कर दिया था और प्रियंका गांधी के साथ मिलकर कांग्रेस में उनकी वापसी की राह को प्रशस्त किया था.
सोनिया गांधी के सहयोगी इस बात से चिंतित है कि पार्टी का अध्यक्ष पद सुरक्षित हाथों में जाता नजर नहीं आ रहा. वे तुरंत ही यह दावा भी करते हैं कि यदि कोई गांधी, पार्टी का नेतृत्व नहीं करेगा तो हाल ही में पार्टी की जो हालत देखी गई, वह बिखराव बढ़ता जाएगा. जब तक गहलोत अपने पद से नहीं हटाए जाते, तब वे अपने सार्वजनिक पश्चाताप के जरिये इस मुश्किल से निकल गए हैं और गांधी खेमे के कुछ ही लोगों को यह बात हजम हो पाएगी.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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