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This Article is From Nov 24, 2021

पेगासस के ख़िलाफ़ एप्पल का मुक़दमा, क्या सरकार पूछेगी एप्पल से?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 24, 2021 22:37 pm IST
    • Published On नवंबर 24, 2021 22:37 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 24, 2021 22:37 pm IST

पेगासस जासूसी कांड को लेकर बार बार यह समझने की ज़रूरत है कि इस सॉफ्टवेयर से क्या किया जाता है और क्यों सभी के लिए चिन्ता की बात है. पहली बात तो यह है कि इसके ज़रिए आपके फोन में या लैपटॉप में ऐसे दस्तावेज़ चोरी से रख दिए जा सकते हैं जिनके आधार पर सरकार आपको आतंक से लेकर तमाम तरह के गंभीर मामलों में फंसा सकती है. अगर आप इतनी सी बात समझ गए हैं कि आपके इनबाक्स में पड़े हज़ारों ईमेल के बीच दो तीन ईमेल इस तरह की डाल दी जाए और आपके ईमेल से जवाब दे दिया जाए तो आप पेगासस को लेकर सतर्क हो जाएं.

नहीं समझ आए तो इन ख़बरों को दोबारा से सर्च कर ज़रूर पढ़िए. अमरीका के ही आर्सेनल लैब ने फोरेंसिक जांच के बाद बताया कि भीमा कोरेगांव केस के आरोपी रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, आनंद तेलतुंबडे, स्टेन स्वामी के कंप्यूटर को हैक किया गया, उसमें फर्ज़ी दस्तावेज़ डाले गए और फिर इन सभी को भारत के खिलाफ साज़िश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. स्टेन स्वामी की तो जेल में ही मौत हो गई. आर्सेनल ने बताया था कि भीमा कोरेगांव की हिंसा के बाद रोना विल्सन के कंप्यूटर में 22 संदिग्ध फाइलें डाल दी गई थीं.

दुनिया भर में छपी पेगसस जासूसी कांड की खबरों में इन लोगों का भी नाम है और कहा गया है कि इनमें से कई लोगों के फोन की जासूसी की गई. क्या यह बात डराने वाली नहीं है कि आपके ईमेल में कोई इस सॉफ्टवेयर के ज़रिए ईमेल भेज रहा है, जवाब दे रहा है, ऐसी बातें लिख रहा है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से ख़तरनाक हो? आपको पता भी न हो और आप एक दिन जेल के भीतर डाल दिए जाएं. ऐसे सॉफ्टवेयर से यह संभव है.

क्योंकि पेगासस जासूसी के ज़रिए आपके फोन से सब कुछ देखा जा सकता है. आपने फोन स्विच ऑफ कर दिया है तब भी उसका कैमरा ऑन किया जा सकता है और आपको देखा जा सकता है. सुना जा सकता है. यह काम पत्रकारों, विपक्ष के नेताओं और अन्य लोगों के फोन में यह सॉफ्टरवेयर पहुंचा कर किया गया है. अगर यह साबित होता है कि अपने नागरिकों की जासूसी सरकार ने कराई है तो यह शर्मनाक भी है. सिर्फ जानकारी ही नहीं, सरकार ने किसी को नहाते सोते भी देखा है. अगर महंगाई के जिन सपोर्टरों को लगता है कि यह ठीक है और इसका बचाव किया जाना चाहिए तो उन्हें बिना दरवाज़े और पर्दे वाले घरों में रहना चाहिए. मुझे भरोसा है कि महंगाई के सपोर्टर उछल पड़ेंगे और कहेंगे कि हां बिल्कुल ठीक है. राष्ट्रहित में कपड़े पहनने की कोई ज़रूरत नहीं है. वैसे भी वो कहानी पुरानी हो गई जिसमें केवल राजा ही नंगा हुआ करता था. महंगाई के सपोर्टर तो कपड़े भी पहनते हैं.

हमारा मकसद यह बताना है कि पेगासस जासूसी कांड पुराने ज़माने में होने वाला फोन टैपिंग नहीं है. वो भी ग़लत था लेकिन इस सॉफ्टवेयर के ज़रिए न सिर्फ किसी को नहाते हुए देखा जा सकता है बल्कि उसके कंप्यूटर या फोन में खतरनाक दस्तावेज़ डालकर उसे आतंकी साबित किया जा सकता है. अगर इतना बेसिक क्लियर हो गया है तो आगे बढ़ता हूं. और इसके ज़रिए किसी भी फोन पर हमला किया जा सकता है केवल आईफोन ही नहीं, एंड्रायड फोन पर भी.

आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल ने पेगासस सॉफ्टवेयर बनाने वाली इज़राइल की कंपनी NSO पर मुकदमा दायर किया है. एप्पल ने NSO के इस सॉफ्टवेयर को ख़रीदने वाली सरकारों पर मुकदमा नहीं किया है, कंपनी पर किया है. NSO पर मुकदमा करने वाली एप्पल पहली कंपनी नहीं है. 2019 में व्हाट्सऐप ने भी इस कंपनी पर मुकदमा किया था जब उसके कई उपभोक्ताओं के फोन की जासूसी की खबर आई थी. तब व्हाट्सऐप ने अपनी तरफ से भारत के कुछ उपभोक्ताओं को बताया था कि आपका फोन हैक हुआ है. इसे लेकर भारत में खूब हंगामा हुआ था. इस साल जुलाई में जब द वायर ने पेगासस जासूसी कांड की खबर छापी तब भी व्हाट्सऐप के प्रकरण को याद किया गया था. तब गूगल, माइक्रोसाफ्ट और सिस्को ने व्हाट्सऐप को सपोर्ट किया था मगर एप्पल कंपनी चुप्प रह गई थी. पेगासस कांड के बाद भी एप्पल इस विवाद से दूरी बना रहा था लेकिन उसके ग्राहकों को भरोसा हिल गया कि यह फोन भी सुरक्षित नहीं है. शायद यह वजह रही हो कि एप्पल ने अब अपना रुख बदला है और इज़राइल की इस कंपनी पर मुकदमा किया है. NSO के प्रवक्ता ने कहा है कि NSO की टेक्नॉलजी के ज़रिए दुनिया भर में हज़ारों लोगों की जान बची है. पिडोफाइल और आतंकियों को पकड़ा गया है.

आई फोन बनाने वाली कंपनी एप्पल ने कहा है कि वह संदेश देना चाहती है कि एक मुक्त समाज में राज्य द्वारा प्रायोजित ऐसे हथियारों के इस्तमाल की अनुमति नहीं दी जा सकती है. बताने की बिल्कुल ज़रूरत है कि पेगासस हथियार ही है और इसका इस्तमाल राज्य के द्वारा ही किया जाता है. गार्डियन अख़बार ने लिखा है कि आईफोन के आई मैसेज के ज़रिए इस सॉफ्टवेयर को फोन में घुसा दिया गया और पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वालों के फोन की जासूसी की गई. टोरॉन्टो स्थित सिटिज़न लैब ने कहा है कि NSO जैसी कंपनियां दुनिया भर में मानवाधिकार के उल्लंघन को बढ़ावा दती हैं और बदले में पैसे कमाती हैं. ये दावा तो करती हैं कि केवल सरकारों को बेचती हैं और इसका इस्तमाल कानूनी रूप से होता है लेकिन असलीयत में तानाशाहों को अपनी सेवा मुहैया कराती हैं.

आईफोन एक सुरक्षित फोन माना जाता है. पेगासस जासूसी कांड के बाद यह भ्रम टूट गया. इसके बाद आईफोन ने जासूसी रोकने का एक सॉफ्टवेयर भी जारी किया लेकिन लगता है कि ग्राहकों में अब पहले जैसा विश्वास नहीं रहा. शायद इसलिए कंपनी उस भरोसे को हासिल करने के लिए केवल मुकदमा ही नहीं बल्कि सॉफ्टवेयर के ज़रिए होने वाले सर्विलांस को पकड़ने के लिए जो लैब हैं और इसके खिलाफ अभियान चलाने वाले जो संगठन हैं उन्हें यह कंपनी दस मिलियन डॉलर की मदद देना चाहिए. 

हाल ही में अमरीका ने इज़राइल की NSO कंपनी पर प्रतिबंध लगा दिया. इस कारण इस कंपनी की रेटिंग काफी गिरी है. ख़बरें छप रही हैं कि प्रतिबंध लगाने से कंपनी दिवालिया हो सकती ह. उसका कर्ज़ा बढ़ सकता है. भारत सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया और न ऐसा कुछ कहा. अमरीका ने वाणिज्य विभाग ने अपने बयान में कहा है कि इस तरह के टूल्स विदेशी सरकारों को अलग अलग देशों में दमन के लिए सक्षम बनाते हैं. तानाशाही सरकारें ऐसे टूल्स का इस्तमाल खूब करती हैं. इसके ज़रिए अपने देश की सीमा के बाहर जाकर भी असमहित रखने वालों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को चुप कराना आसान हो जाता है.

इसका मतलब है कि पेगासस के ख़तरे को लेकर दुनिया की सरकारें अपनी तरह से सतर्क हो रही हैं, केवल भारत सरकार का रुख ही साफ नज़र नहीं आता है. क्यों? इज़रायल में भी इस मामले की जांच हो रही है जिसके नतीजे का इंतज़ार है. इस जुलाई में जब द वायर ने पेगासस कांड को लेकर ख़बर छापी तो कहा गया कि मानसून सत्र को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया है. ऐसी कहानी कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद बनाई जा रही है कि पंजाब में अशांति रोकने के लिए कानून वापस लिया गया. कहानी बनाने से कहानी नहीं बन जाती है. आखिर भारत सरकार ने इस कांड के पर्दाफाश के बाद सक्रियता क्यों नहीं दिखाई. यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि इसका सॉफ्टवेयर किसके कहने पर ख़रीदा गया और क्या सरकार ने ख़रीदा? राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अगर ख़रीदा भी गया तो पत्रकारों और विपक्ष के नेताओं के फोन की जासूसी किसने कराई, इसका पता लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस रवींद्रन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है. कोर्ट ने माना कि अपने नागरिकों की जासूसी करना बहुत गंभीर बात है लेकिन सरकार को ऐसा कुछ नहीं लगा न सरकार ने इसे लेकर सतर्कता दिखाई. चीफ जस्टिस एन वी रमना ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि भारत सरकार ने पेगासस को लेकर जो आरोप लगे हैं उनसे विशिष्ट रूप से इंकार नहीं किया है. मतलब साफ साफ नहीं कहा है कि आरोप सही हैं या गलत हैं.

आख़िर भारत सरकार ने इस पर साफ साफ क्यों नहीं कहा. संसद के दोनों सदनों में सरकार के जवाबों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए. यह समझना मुश्किल है कि सरकार को दिक्कत किससे है? क्या इसलिए कि द वायर ने इसका पर्दाफाश किया या दिक्कत है कि इस बार उन लोगों के नाम भी आ गए जिनकी जासूसी हुई थी. क्योंकि पेगासस से जासूसी हुई है इसकी जानकारी सरकार को तो थी ही. अब हम आपको नवंबर 2019 से लेकर अगस्त 2021 के बीच राज्यसभा और लोकसभा में सरकार के पांच जवाबों के बारे में बताना चाहते हैं. इन जवाबों में आप एक ही मंत्रालय के अलग अलग जवाब और दूसरे मंत्रालय के अलग जवाब देख सकते हैं. पहला जवाब है 21 नवंबर 2021 का, जिसे इलेक्ट्रानिक राज्य मंत्री संजय धोत्रे ने राज्यसभा में लिखित रूप में दिया था. सवाल पूछा था सांसद रवि प्रकाश वर्मा ने. 

हाल में खबर आई थी की व्हाट्सऐप के ज़रिए भारतीयों की निजता का हनन हुआ है? क्या सही है तो डिटेल दें. क्या व्हाट्सऐप ने मई और सितंबर 2019 में इसे लेकर सरकार को सतर्क किया था? अगर किया था तो जानकारी दें. तब राज्य मंत्री अपने जवाब में कहते हैं कि सरकार को व्हाट्सऐप द्वारा पेगासस नामक स्पाइवेयर के ज़रिए कुछ व्हाट्सऐप मोबाइल प्रयोक्ताओं के उपकरणों को प्रभावित करने वाली सुभेदताओं के बारे में सूचित किया गया है. व्हाट्सऐप के अनुसार इस स्पाइवेयर का विकास इज़राइल स्थित कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा किया गया है तथा इसने पेगासस स्पाइवेयर के इस्तमाल के ज़रिए विश्व भर के लगभग 1400 प्रयोक्ताओं के मोबाइल फोन तक पहुंचने का प्रयास किया है जिसमें 121 प्रयोक्ता भारत के शामिल हैं.

नवंबर 2019 के जवाब में इलेट्रानिक राज्य मंत्री कहते हैं कि व्हाट्सऐप ने पहले मई 2019 को जानकारी दी और फिर सितंबर महीने में जानकारी दी कि 121 मोबाइल यूज़र तक पहुंचने का प्रयास किया गया है. इस आधार पर सरकार की एक संस्था The Indian Computer Emergency Response Team (CERT-In) एक नोट बनाया था. सवाल है कि इसके बाद भी सरकार ने क्या किया, क्या सरकार को इसकी जांच नहीं करनी चाहिए थी कि उसके नागरिकों की कोई जासूसी कर रहा है? सरकार किस आधार पर निश्चिंत हो गई. यही नहीं मंत्री जी जवाब दे रहे हैं कि व्हाट्सऐप को नोटिस जारी किया गया है कि इस बारे में ज़रूरी सूचना उपलब्ध कराए. सरकार को व्हाट्सऐप से किस तरह की जानकारी मिली हमें नहीं जानकारी है. अब जवाब नंबर दो पर आते हैं. यह जवाब 5 दिसंबर 2019 को रविशंकर प्रसाद का दिया हुआ है.

कांग्रेस सासंद अभिषेक मनु सिंघवी सवाल करते हैं कि NSO पेगासस स्पाईवेयर स्कैंडल पर सरकार ने क्या क्या कदम उठाए, जानकारी दीजिए. क्या मंत्रालय उन कंपनियों के बारे में जानकारी रखता है जो स्पाइवेयर बेचती हैं या ऐसी सेवाएं देती हैं. उनके तीन सवाल हैं. दूसरे सवाल का जवाब रविशंकर प्रसाद सीधे ना में देते हैं. नो सर लिखते हैं.

यानी सरकार को पता नहीं है कि NSO जैसी जासूसी के सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियां है और ऐसी सेवा देती है. जबकि अभिषेक मनु सिंघवी के पहले सवाल के जवाब में सरकार वही बात कहती है जो नवंबर के महीने में राज्य मंत्री संजय धोत्रे मोटा-मोटी बता चुके हैं. कि व्हाट्सऐप ने खुद से पेगासस के बारे में सूचना दी है. 
लेकिन इस जवाब में रविशंकर प्रसाद एक दिलचस्प जानकारी देते हैं. कहते हैं CERT-In ने 26 नवंबर 2019 को NSO ग्रुप को नोटिस भेज कर भारतीय यूज़र पर इस तरह के साफ्टवेयर और उसके असर की जानकारी मांगी है.

क्या रविशंकर प्रसाद या उनके मंत्रालय को पता नहीं था कि NSO अपना सॉफ्टवेयर केवल देश की सरकारों को बेचता है. NSO यह जानकारी सार्वजनिक नहीं करता है कि उसने सॉफ्टवेयर किसे बेचा है फिर इलेक्ट्रानिक मंत्रालय NSO को नोटिस भेज कर क्यों पूछ रहा था. NSO का जवाब क्या आया, इसके लिए कितना कोई रिसर्च करे. यहां तक आपने दो जवाब देख लिया. इलेक्ट्रानिक मंत्रालय जिस जवाब में कहता है कि पेगासस सॉफ्टवेयर है और कंपनी से पूछ रहा है, विडंबना है कि उसी जवाब में यह भी कहता है कि स्पाईवेयर की दुनिया में कौन कौन सी कंपनियां हैं, पता नहीं है. सरकार ने ऐसी कंपनियों के बारे में जानने की कोशिश क्यों नहीं की जबकि यह सरकार का ही आंकड़ा है कि 2015 से 2019 के बीच साइबर हमले 600 प्रतिशत बढ़ गए हैं. अब आते हैं जवाब नंबर तीन पर. यह जवाब राज्यसभा में 12 मार्च 2020 में दिया गया है. कांग्रेस के राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा सवाल करते हैं. कि क्या यह सही है कि पेगासस सॉफ्टवेयर को भारत सरकार की किसी एजेंसी ने खरीदा है तो राज्य मंत्री संजय धोत्रे लिखित जवाब में कहते हैं कि इलेक्ट्रानिक और इंफोर्मेशन टेक्नालजी मंत्रालय के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है.

इस मंत्रालय के पास कोई जानकारी नहीं है कि ऐसा कोई स्पाईवेयर खरीदा गया है या नहीं. इस मंत्रालय के मंत्री को यह भी पता नहीं है कि स्पाईवेयर बनाने वाली कंपनियां कौन कौन है. इस मंत्रालय का नाम इलेक्ट्रानिक और इंफोर्मेशन टेक्नालजी मंत्रालय है. मंत्रालय ने बोला जानकारी नहीं है. ये नहीं बोला कि ऐसा कोई सॉफ्टवेयर खरीदा गया है या नहीं. अभी तक हमने राज्यसभा और लोकसभा में सरकार के तीन जवाबों के बारे में ही बताया है. अब जवाब नंबर चार पर आते हैं.

लोकसभा में मेनका संजय गांधी और अन्य सांसद इलेक्ट्रानिक और इंफोर्मेशन टेक्नालजी मंत्री से सवाल करते हैं कि क्या सरकार को देश में पेगासस नाम के स्पाइवेयर की मौजदूगी के बारे में जानकारी है? क्या सरकार ने कोई जांच शुरू की है? तो 24 मार्च 2021 को मंत्रालय का जवाब आता है कि सरकार के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है.

नवंबर 2019 में सरकार के पास जानकारी है कि पेगासस स्पाईवेयर का इस्तमाल हुआ है और यह जानकारी व्हाट्सऐप ने सरकार को दी है. मार्च 2021 में बीजेपी के ही सांसद को सरकार कहती है कि उसके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि पेगासस का इस्तमाल हो रहा है. क्या आप इस खेल और खेल के इस कमाल को समझ पाए. इसके लिए बैक डेट में यानी पुराना अखबार पढ़ना बहुत ज़रूरी है. संसद में दिए गए जवाबों पर बारीक नज़र रखनी पड़ती है. रिसर्च करना पड़ता है. मार्च 2021 के इस जवाब से यह भी साफ है कि व्हाट्सऐप की तरफ से सूचना देने के बाद भी सरकार ने कोई जांच नहीं की है. अगर सरकार ने नवंबर 2019 में NSO से पूछा था तब उसकी जानकारी भी सदन में रखी जा सकती थी या सदन के बाहर कि NSO ने ये कहा है वो कहा है. अब आते हैं जवाब नंबर पांच पर. 9 अगस्त 2021 का जवाब अलग है.

वी शिवादासन के जवाब में रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट कहते हैं कि रक्षा मंत्रालय ने NSO ग्रुप टेक्नालजी के साथ कोई लेन-देन नहीं की है. यानी रक्षा को मंत्रालय को पता है कि कोई लेन-देन नहीं हुआ है. लेन-देन हुआ है या नहीं हुई इसके बारे में इलेक्ट्रानिक मंत्रालय को कुछ नहीं पता है. क्या आप अब भी इन जवाबों में आ रहे इतने अंतरों को देखकर कुछ संदेह करना चाहेंगे? पांच-पांच जवाब में अलग-अलग बातें हैं. ऐसा लगता है कि किसी को कुछ पता नहीं है. इस साल जुलाई में खबर आने के बाद फ्रांस में जांच हो गई, लेकिन भारत ने मई 2019 और जुलाई 2021 में दो दो बार पेगासस से जुड़ी खबर आने के बाद कोई जांच नहीं की. यहां तक सरकार की हर जानकारी को देखिए तो एक जवाब के अलावा हर जवाब में सरकार को कुछ पता नहीं है.

पेगासस साफ्टवेयर हमारे आपके नागरिक होने के अस्तित्व पर ख़तरा है. इसे लेकर वही सरकार निश्चिंत हो सकती है जो इस बात से निश्चिंत है कि लोग ऐसे मुद्दों की परवाह नहीं करते हैं. या उसे हवा का इंतज़ार है जो इस मुद्दे को कहीं उड़ा कर ले जाए. सुप्रीम कोर्ट ने आज वायु प्रदूषण के बारे में ऐसा ही कुछ कहा कि ईश्वर का धन्यवाद दीजिए कि हवा चल गई और वायु प्रदूषण कम हो गया. सरकार के करने से नहीं हुआ.

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