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This Article is From Apr 05, 2016

अमेरिका के लिए आसान नहीं क्यूबा के साथ रिश्ते सामान्य करने की राह

Anjilee Istwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 05, 2016 19:39 pm IST
    • Published On अप्रैल 05, 2016 19:30 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 05, 2016 19:39 pm IST
दुनिया का एक छोटा सा कोना ऐसा भी है जहां अभी तक शीत युद्ध जारी है। यहां अभी भी लेनिन और मार्क्स का पाठ पठाया जाता है....और अभी भी मैक डॉनल्ड्स नहीं खुला है। दुनिया का ये छोटा सा कोना ठीक अमेरिका की नाक के नीचे है-कैरेबियाई देश क्यूबा। 1961 में रिश्ते तोड़ने के बाद करीब दो हफ्ते हुए पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति ने क्यूबा की सरज़मीं पर क़दम रखा। दरअसल क्यूबा में फिडेल कास्त्रो के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद बनी कम्युनिस्‍ट सरकार और अमेरिका के बीच लगातार तनातनी रही है। और अब इस तनाव को खत्म करने और नये रिश्ते बनाने के इरादे से बराक ओबामा पूरे लाव-लश्कर के साथ क्यूबा की राजधानी हवाना पहुंचे।

इस दौरान मैं भी क्यूबा घूमने पहुंची.....ऐसे में आदत से मजबूर मैं हवाना के बाशिंदों से सवाल-जवाब करने लगी। मेरे सवाल एक पत्रकार के तौर पर नहीं पूछे गए.....लेकिन कभी एक टूर गाइड के क्लाइंट के तौर पर....कभी किसी बारटेंडर से मोहितो कॉकटेल की बारीकियां सीखते वक्त..... तो कभी अपनी बेड एंड ब्रेकफास्ट की मालकिन से कॉफी की चुस्कियों के बीच हो रही गपशप के दौरान पूछे गए। ऐसे में लोगों ने मुझे अपने दिल में झांकने का एक मौका दिया। सवाल वही था.....क्या ओबामा के यहां आने को लेकर आप उत्साहित हैं, जवाब भी अकसर एक जैसा ही था, "उसके आने, न आने से हम जैसे आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता। "

आम आदमी में भले ही ओबामा के इस दौरे को लेकर दिलचस्पी मुझे कम ही दिखी हो लेकिन एक बात तो सभी मानते थे.....अमेरिका अगर व्यापार पर लगी पाबंदियां हटाएगा तो शायद ज़रूरी दवाओं और खाद्य पदार्थों की कमी दूर होगी। अमेरिका से आने वाले लाखों टूरिस्ट क्यूबा के नौजवानों के लिए नौकरियां और अमेरिकी डॉलर की बौछार भी साथ ला सकते हैं। एक ऐसे देश में जहां औसत आमदनी 25 अमेरिकी डॉलर प्रति माह हो वहां अमेरिकी टूरिस्टों के बेफिक्री से खर्च किए गए ये डॉलर बहुत मायने रखते हैं।

लेकिन सबसे ज़्यादा दिलचस्पी की कमी अगर किसी में दिखी तो वो थी खुद फिडेल कास्त्रो में। एक तरफ उनके भाई, क्यूबा के वर्तमान राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ओबामा को गले लगा रहे हैं और दूसरी तरफ खुद फिडेल ने तीखे स्वर में एक लेख में साफ कहा कि अमेरिकी साम्राज्य से हमें कुछ नहीं चाहिए। फिडेल की बातों को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.....ये वो शख़्स है जिन्होंने मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी अमेरिका की तरफ से फूड एड लेने से इंकार कर दिया था और पूंजीवादी देशों के साथ नरमी बरतने की वजह से मिखाइल मिखाइल गोर्बाचेव के वक्त रूस की तरफ भी बेरुख़ी दिखाई थी।

फिडेल 89 साल के हैं, लेकिन अब भी उनके देशवासियों में उनकी छवि एक लौह पुरुष की है। ऐसे में ओबामा के लिए क्यूबा के साथ रिश्ते सामान्य करने की राह इतनी आसान नहीं होगी.....आखिर 54 साल से भी ज़्यादा की कड़वाहट, 2 दिन की यात्रा में दूर होना मुश्किल है।

अंजिली इस्‍टवाल NDTV में एसोसिएट एडिटर एवं एंकर हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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