विज्ञापन
Story ProgressBack

अब टेस्ट मैच में लीजिए टी-20 का मजा!

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    January 05, 2024 18:42 IST
    • Published On January 05, 2024 18:42 IST
    • Last Updated On January 05, 2024 18:42 IST

केपटाउन टेस्ट में कई इतिहास रचे गए. एक तो ये भी कि किसी एक टेस्ट मैच में दर्शकों ने पहली बार तीनों फॉर्मेट के मजे लूट लिए! शक्ल-सूरत टेस्ट क्रिकेट जैसा, ओवर (कुल 107) वनडे जैसा और पतझड़ यानी आवागमन टी-20 जैसा. हो गई न मौज!

आप इसे भारत का बढ़ता दबदबा कह लीजिए, विश्वगुरु की बढ़ती ताकत कह लीजिए या दक्षिण अफ्रीका वालों की अनूठी मेहमाननवाजी! भारत ने अब वहां भी झंडे गाड़ दिए, जहां 31 साल से जीत का सूखा पड़ा था. निश्चित तौर पर बात खेल की हो रही है, राजनीति की नहीं.

खेल और राजनीति
वैसे खेल और राजनीति एक-दूसरे से इस तरह गुत्थम-गुत्थी कर चुके हैं कि दोनों को अलग करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. दो जिस्म, एक जान. खेल वाले राजनीति से और राजनीति वाले खेल से प्रेरणा लेते रहे हैं. अपने यहां ये एकदम नॉर्मल है. राजनीति वाले खेला खूब करते हैं. उधर खेल वालों पर आरोप लगता है कि वे संघ बना-बनाकर राजनीति करते हैं.

केपटाउन अगर राजनीति का मैदान होता, तो कप्तान रोहित विपक्षी टीम को पहली पारी (55) के बाद ही विलय या गठबंधन का प्रस्ताव दे चुके होते! जैसे-तैसे, अलग-अलग क्या लड़ना. अब एक ही बैनर तले लड़ते हैं ना! नेतृत्व और नीतियों पर पेच फंसेगा, तो उसे बाद में सुलट लेंगे. अगर नहीं भी सुलटेंगे, तो क्या? सस्पेंस का भी तो अपना मजा है. पब्लिक भी मजे लेगी.

हालांकि ये पक्के तौर पर कह नहीं सकते कि फटाफट क्रिकेट वालों ने राजनीति से ज्यादा प्रेरणा ली या राजनीति वालों ने खिलाड़ियों से. जर्सी-पोशाक छोड़ दें, तो बहुत-कुछ कॉमन है. बोली दोनों तरफ लगती है. खेल में कौन, कितने करोड़ में बिका, सब जानते हैं. लेकिन राजनीति में बोली शालीनता से लगाई जाती है, समवेत स्वर में- जय हिंद! किसी-किसी पैमाने पर खेल ज्यादा डेमोक्रेटिक दिखता है. खेल का टिकट काउंटर सबके लिए खुला होता है. लेकिन राजनीति में टिकट के लिए भारी धक्का-मुक्की होती है. जात भी बताइए, फिर भी पांत बहुत लंबी है.

टेस्ट में कन्फ्यूजन
टेस्ट में कन्फ्यूजन पैदा होना कोई नई बात नहीं है. विद्यार्थी भी घर में सब सुना देते हैं, लेकिन टेस्ट में भुला जाते हैं. पहले ओएमआर शीट पूरा रंग लेते हैं, फिर याद आता है कि इसमें तो नेगेटिव मार्किंग था. तुक्का नहीं लगाना था. ऐसा खेल में भी होता है. केपटाउन में हम देख चुके.

मेजबान आए. टॉस जीता, लेकिन चुनना क्या है, इसमें भूल कर गए. एक्सपर्ट कह रहे हैं कि उनका घर था, तो उन्हें पिच के बारे में ज्यादा पता होना चाहिए था. हालांकि भारत के हिसाब से इसमें कुछ भी गलत नहीं था. आप छत और गली-मोहल्ले वाले क्रिकेट में ऐसा कोई उदाहरण खोजकर ला दीजिए, जिसमें किसी ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग न ली हो!

वैसे केपटाउन में आखिर हुआ क्या, ठीक-ठीक समझ नहीं आया. अफ्रीका वालों ने अरसे बाद थोड़ी दरियादिली दिखाई, लेकिन अपने कप्तान पिच के मिजाज को लेकर उखड़ गए. दिल में कुछ नहीं रखा. बड़े भोले आदमी हैं. ऐसे में तो मेजबान ही रूठ जाता. थाली भी परोसकर दो, ऊपर से ताने भी सुनो.

ताने फटाफट क्रिकेट को भी बहुत सहने पड़े हैं. एक्सपर्ट कहते रहे हैं कि इसके आने से क्रिकेट की आत्मा को बहुत नुकसान पहुंचा है. अगर क्रिकेट को जिंदा रखना है, तो टेस्ट को जीवनदान देना ही होगा. हर सीरीज में इसकी तादाद बढ़ानी होगी. लीजिए, मान ली आपकी बात. खेल लिया टेस्ट. लेकिन टेस्ट को किस फॉर्मेट में खेलना है, ये तो खिलाड़ी ही तय करेंगे ना! केपटाउन में मिल गई कलेजे को ठंडक?

विकेट का पतझड़
कहा जा रहा है कि किसी टेस्ट मैच के पहले ही दिन 23 विकेट गिरना सदियों में एकाध बार ही होता है. उसमें भी टीम इंडिया की जर्सी पहनने वाले अगर 6 खिलाड़ी लगातार बिना रन जोड़े पवेलियन लौट जाएं, तो ये भी कम अजूबा नहीं है. इन सबकी कुछ न कुछ मजबूरियां रही होंगी. आप जानते ही हैं कि यूं ही कोई बेवफा नहीं होता. रही बात पिच की, तो सिराज और बुमराह की कामयाबियों को कम आंकने का हमारा कोई इरादा नहीं है.

अब दोनों देश के बोर्डों पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है. उन्हें विचार करना चाहिए कि जो खिलाड़ी घंटों का काम मिनटों में और पांच दिनों का काम पांच सेशन में ही निपटा दे रहे हैं, उनको पुरस्कृत करने का उनके पास क्या प्लान है. श्रम-कानून के हिसाब से अगर सैलरी-पैकेज में कोई कमी है, तो उसे दूर करें. वर्ना जब पैसे उतने ही मिलने हैं, तो कोई पांच दिन तक क्यों काम करेगा. ऐड वाले वैसे ही हर वक्त पीछे पड़े रहते हैं. अगर खेलते वक्त इन खिलाड़ियों के घर से बार-बार फोन कॉल आ रहे थे, तो ये सावधानी रखते कि ग्राउंड पर किसी को पानी लेकर न जाने देते.

खैर, जो भी हो, केपटाउन टेस्ट सबके लिए कुछ न कुछ उम्मीदें जगा गया. भारत केपटाउन में मेजबान टीम को टेस्ट में हराने वाला एशिया का पहला देश बन गया. इसमें बताने वाली क्या बात है? हम बड़े से बड़ा कप छोड़ें तो छोड़ें, पर पड़ोसियों को जलाने का कोई मौका कहां छोड़ते हैं!

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
गोगी सरोज पाल की चित्रकला में नियति, प्रारब्ध और कथाएं
अब टेस्ट मैच में लीजिए टी-20 का मजा!
अयातुल्ला खुमैनी को कहा था 'हिंदुस्तानी मुल्ला' और छिन गई थी ईरान के शाह की बादशाहत
Next Article
अयातुल्ला खुमैनी को कहा था 'हिंदुस्तानी मुल्ला' और छिन गई थी ईरान के शाह की बादशाहत
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;