इस चाल में तो ममता बनर्जी पर भारी पड़ गए अमित शाह

सुवेंदु अधिकारी जैसे नेताओं के जाने से ममता बनर्जी की छवि ऐसी नेता की बन रही है, जिसे अपनी टीम को एकजुट रखने में संघर्ष करना पड़ रहा है, और वह अपनी पार्टी के सदस्यों को BJP के आकर्षण से बचा नहीं पा रही हैं.

इस चाल में तो ममता बनर्जी पर भारी पड़ गए अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह के साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममत बनर्जी (फाइल फोटो).

किसी एक व्हॉट्सऐप मैसेज से इतनी नाराज़गी और गुस्सा शायद ही कभी देखा गया हो, जितना उस मैसेज से हुआ, जो कल रात तृणमूल कांग्रेस नेता सुवेंदु अधिकारी ने भेजा, और जिसमें कहा गया, "मुझे क्षमा कीजिए, मैं (तृणमूल कांग्रेस में) जारी नहीं रख पाऊंगा..." यह मैसेज कथित रूप से ममता बनर्जी की पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा सांसद सौगत रॉय को भेजा गया था.

यह मैसेज उस हाई-लेवल बैठक के एक दिन बाद भेजा गया, जो अधिकारी, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, अगले वर्ष के चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस (TMC) के साथ काम कर रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तथा तृणमूल कांग्रेस नेता सुदीप बंधोपाध्याय के बीच हुई थी.

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दो घंटे तक चली बैठक के बाद TMC ने दावा किया कि कैबिनेट से एक सप्ताह पहले इस्तीफा देने वाले सुवेंदु अधिकारी असल में अपने इस्तीफे पर अमल नहीं करेंगे, और पार्टी छोड़कर अंततः भारतीय जनता पार्टी (BJP) में नहीं जाएंगे. सुवेंदु अधिकारी इस बात से नाराज़ थे कि उनके TMC के साथ उठाए किसी भी मुद्दे पर दो घंटे तक चली बैठक में चर्चा नहीं की गई, और मीडिया को यही बताया गया कि सब कुछ ठीक चल रहा है.

सुवेंदु अधिकारी लोकप्रिय नेता हैं, जिनका पूर्वी मेदिनीपुर जिले (दक्षिण-पश्चिम बंगाल) में खासा आधार है. उनके पिता शिशिर अधिकारी केंद्र के पूर्ववर्ती डॉ मनमोहन सिंह सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रहे हैं. जब ममता बनर्जी ने वर्ष 2006 में टाटा नैनो फैक्टरी के खिलाफ बहुचर्चित विरोध प्रदर्शन किया था, वह उनके साथ खड़े अहम लोगों में शामिल थे. ममता से उनकी नाराज़गी एक साल पहले तब शुरू हुई, जब उन्हें दरकिनार किया गया, और परिणामस्वरूप ममता के भतीजे और PK का प्रभाव बढ़ने लगा.

पिछले कुछ समय से सुवेंदु अधिकारी दबी ज़ुबान में अपनी बेआरामी का ज़िक्र करते रहे हैं, जो चुनाव के सिलसिले में अभिषेक बनर्जी की बेहद तेज़ी से बढ़ती भूमिका से जुड़ी है. 49-वर्षीय सुवेंदु कथित रूप से ममता बनर्जी पर प्रशांत किशोर (जिन्हें राजनैतिक हलकों में PK के नाम से भी जाना जाता है) के बढ़ते प्रभाव से भी नाराज़ हैं.

सुवेंदु अधिकारी के करीबी एक सूत्र ने मुझे बताया, "दादा 6 दिसंबर (रविवार) को सार्वजनिक रूप से बात कहेंगे... वह इस बात से काफी नाराज़ है कि दीदी अब सिर्फ अपने भतीजे और PK की ही सुनती हैं... हमारा चुनावी अभियान उस शख्स को क्यों चलाना चाहिए...? क्या हम लड़ना भूल गए हैं...? दीदी एक मोदी एजेंट को तृणमूल में लाकर BJP से अपने डर को जगज़ाहिर कर रही हैं..." प्रशांत किशोर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावी अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम का हिस्सा थे. शाह और किशोर में नहीं बनी, और अब बंगाल चुनाव दोनों के बीच ताज़ातरीन मुकाबला होगा.

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अब लगता है, सुवेंदु आखिरकार तृणमूल छोड़कर जाने के विकल्प को अमली जामा पहनाने के मूड में हैं, जिससे BJP के हाथ जैकपॉट लग जाएगा. बंगाल चुनाव के लिए BJP प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, "सुवेंदु अधिकारी ने 'भाइपो' (भतीजा) सहित तृणमूल नेतृत्व में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई है... और अब वे उन्हें वहीं रखना चाहते हैं, ताकि वह भ्रष्टाचार जनता के सामने नहीं आ सके..."

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले अमित शाह की कोशिशों से BJP में चले गए मुकुल रॉय के विपरीत सुवेंदु अधिकारी ज़मीन से जुड़े लोकप्रिय नेता हैं और हल्दिया इलाके पर उनकी पकड़ बेहद मज़बूत है. ममता बनर्जी के लिए सुवेंदु पैसा और बाहुबल, दोनों ही जुटा सकते हैं. अहम बात यह है कि मुकुल रॉय की ही तरह सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ भी प्रवर्तन निदेशालय (ED) में कुछ मामले दर्ज हैं. तृणमूल नेता इस तरह पार्टी से चले जाने के पीछे की वजह जांच एजेंसियों की ओर से पड़ते दबाव को बताते हैं, जो अब BJP के कामकाज के तरीकों में शामिल हो गया है.

लेकिन ममता बनर्जी द्वारा प्रशांत किशोर को दिए जा रहे महत्व और उनके खुद के द्वारा तृणमूल नेताओं की कीमत पर खुद को ऊपर उठाने से भी पार्टी के भीतरी मुख्य नेता नाराज़ हैं. ममता से प्रशांत किशोर को अभिषेक बनर्जी ने ही मिलवाया था. अब कहा जाता है कि यही दोनों शख्स सभी बड़े फैसले लेते हैं, जो ममता बनर्जी नहीं लेतीं. मैंने प्रतिक्रिया जानने के लिए प्रशांत किशोर से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

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कुल मिलाकर पिछले दो दिनों में जो कुछ हुआ, उससे ममता बनर्जी आश्वस्त नहीं हो सकतीं. सुवेंदु अधिकारी की समस्या के अलावा ऑक्सफोर्ड यूनियन को दिया जाने वाला उनका संबोधन भी अंतिम मिनट पर रद्द हो गया. उन्हें भाषण के निर्धारित समय से सिर्फ 10 मिनट पहले कार्यक्रम के रद्द होने की सूचना दी गई. उनकी पार्टी के मुताबिक, BJP दोषी है. पार्टी ने एक बयान जारी कर कहा, "पहले भी, मुख्यमंत्री की चीन की प्रस्तावित यात्रा, सेंट स्टीफन्'स कॉलेज, शिकागो का दौरा बेहद कम समय रह जाने पर रद्द किए गए थे... इन कार्यक्रमों में अड़ंगा कौन लगा रहा है...? जानकारी मिली है कि आयोजकों पर शीर्षतम स्तर से काफी दबाव डाला गया है..."

पश्चिम बंगाल में चुनाव अब कुछ ही महीने दूर रह गए हैं, और BJP की तैयारियां पूरी हैं. 'मिशन बंगाल' के लिए पार्टी ने 11-सदस्यीय कोर टीम गठित की है, जिसमें पार्टी के बदनाम IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय भी शामिल हैं. अमित शाह ने सभी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को पांच भागों में बांटने के लिए कहा है, और हर भाग का प्रभार केंद्रीय पार्टी सचिव को दिया जाएगा. अंतिम निर्णय वहीं लेंगे. और वह इस वक्त मुख्यमंत्री के रूप में पेश किए जाने वाले चेहरे पर अंतिम निर्णय लेने में जुटे हैं. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान तथा बेहद शक्तिशाली क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड BCCI के मौजूदा अध्यक्ष सौरव गांगुली इस समय अमित शाह की सूची में शीर्ष पर हैं. BCCI में सौरव गांगुली की टीम में अमित शाह के पुत्र जय शाह भी हैं, जो कोषाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं. गांगुली भी कई बार अमित शाह से सीधी मुलाकातें कर चुके हैं, जिनमें आखिरी मुलाकात तो कुछ ही हफ्ते पहले हुई थी, और उन्होंने भले ही निश्चित रूप से हामी नहीं भरी है, लेकिन अहम बात यह है कि उन्होंने निश्चित रूप से इंकार भी नहीं किया है.

अमित शाह के सामने भी कुछ दिक्कतें हैं, जिन्हें उन्हें हल करना होगा - क्योंकि उन्होंने सभी के लिए पार्टी के द्वार खोल दिए हैं, नतीजतन पार्टी में गुट काफी हो गए हैं. पुराने संघ विचारधारा के समर्थक नेता तृणमूल से आए नए नेताओं के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे, जो अतीत में ममता के लेफ्टिनेंट रह चुके मुकुल रॉय के नेतृत्व में ही काम कर रहे हैं. कोई भी स्थानीय नेता या गायक बाबुल सुप्रियो जैसे दिल्ली से लाकर बिठाए गए नेता कामयाब नहीं रहे.

सुवेंदु अधिकारी जैसे नेताओं के जाने से ममता बनर्जी की छवि ऐसी नेता की बन रही है, जिसे अपनी टीम को एकजुट रखने में संघर्ष करना पड़ रहा है, और वह अपनी पार्टी के सदस्यों को BJP के आकर्षण से बचा नहीं पा रही हैं. लेकिन अगर वह किसी बात के लिए मशहूर हैं, तो वह है जुझारूपन. इस मोड़ पर खड़े होकर यह मान लेना कतई बेवकूफाना होगा कि वह कमज़ोर पड़ रही हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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